इंडिया टुडे कॉन्क्लेव (India Today Conclave East 2021) के चौथे संस्करण में आयोजित माइनोरिटी मैटर्सः वोट फॉर फेथ- एम्पॉवरमेंट ऑर डिविसिव डिस्कोर्स नाम के सेशन में अल्पसंख्यकों, उन्हें लेकर चुनाव की तैयारियों और उनके उत्थान को लेकर चर्चा हुई. इस चर्चा में मिजोरम के पूर्व एडवोकेट जरनल और टीएमसी प्रवक्ता बिश्वजीत देब, सीपीआई-एम नेता मोहम्मद सलीम, इंडियन सेक्युलर फ्रंट के नेता पीरजादा अब्बास सिद्दकी, पूर्व सांसद अभिजीत मुखर्जी और त्रिपुरा के पूर्व गर्वनर तथागत रॉय शामिल हुए.
त्रिपुरा के पूर्व गर्वनर तथागत रॉय ने कहा कि हम पूरे देश के लोगों को एक नजर से देखते हैं. माइनोरिटी को बतौर वोट बैंक की तरह नहीं देखते. हां ये बात सही है कि बहुसंख्यक बड़ा रोल प्ले करते हैं, वो चुनाव जिताने में मदद करते हैं. देश में कुछ पार्टियां हैं जो माइनोरिटी वोट पर ध्यान देती हैं. अगर आप पश्चिम बंगाल पर नजर डालेंगे तो आपको पता चलेगा कि सच्चर कमीशन के अनुसार पश्चिम बंगाल में मुस्लिम सबसे पीछे हैं. ये सब उन पार्टियों की वजह से है जो मुस्लिमों को आगे नहीं आने देते. आर्थिक, सांस्कृतिक रूप से आगे आने से रोकते हैं. खास तौर से महिलाओं को आगे नहीं आने दिया जाता. मुस्लिम महिलाओं को हमेशा पीछे रखा गया. ताकि वो सिर्फ वोट बैंक की तरह काम कर सकें.
इसके जवाब में टीएमसी प्रवक्ता बिश्वजीत देब ने कहा कि टीएमसी मानती है कि हर धर्म एक समान हैं. हमारे लिए सब बराबर हैं. टीएमसी सरकार ने माइनोरिटीज के लिए कई स्कीम चला रहे हैं. हमारी सरकार ने इस साल 19,24,000 कास्ट सर्टिफिकेट बांटे गए. इसमें 16 लाख से ज्यादा माइनोरिटी थे. 60 लाख से ज्यादा बुजुर्ग विधवाओं को पेंशन दिया गया. 800 करोड़ रुपए का स्कॉलरशिप दिया गया. 8 हजार से ज्यादा एससी छात्रों को स्कॉलरशिप मिली. हमारी सरकार पिछले 10 साल से विकास के रास्ते पर काम कर रहे हैं.
क्या इस बार बंगाल में भाजपा को फायदा होगा. इस पर तथागत रॉय ने कहा कि विभाजन की राजनीति भाजपा को कैसे फायदा पहुंचाएगी. हम इस पर विश्वास नहीं करते. बाकी पार्टियां कैसे और क्या काम कर रही हैं. इससे भाजपा का कोई लेना-देना नहीं है. बंगाल से कम्युनिस्ट और टीएमसी ने टाटा सहित कई उद्योगों को बाहर निकाल दिया.
सीपीआई-एम के नेता मोहम्मद सलीम की राष्ट्रीयता वाली बात पर त्रिपुरा के पूर्व गर्वनर तथागत रॉय ने कहा कि भारत में एक ही राष्ट्रीयता है. सलीम साहब ने तो कई राष्ट्रीयता गिना दी. हमारी तो राष्ट्रीयता तो भारतीय है. यही दिक्कत है कम्युनिस्ट पार्टी की, ये सभी कम्युनिस्ट पार्टी कहती हैं कि भारत में कई राष्ट्रीयता हैं. कम्युनिस्ट मानते हैं कि ये हिंदू हैं, मराठी, बंगाली आदि हैं. उनकी पार्टी तो 1942 में विभाजन की राजनीति से शुरू हुई थी. हिंदुत्व कोई एजेंडा नहीं है. ममता बनर्जी तो भाषा के आधार पर लोगों को बांट रही हैं. बंगाली और गैर-बंगाली के आधार पर बांट रही हैं.