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ममता का नंदीग्राम 'लौटना', क्या TMC के लिए बनेगी संजीवनी? समझें ऐलान के मायने

ममता बनर्जी के सामने अपना किला बचाने की चुनौती है और ऐसे मौके पर वो फिर अपनी 'जड़ों' की ओर लौट रही हैं. ये ना सिर्फ एक सोचा समझा मूव है बल्कि इससे जनता से इमोशनल कनेक्शन भी बनेगा.

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ममता बनर्जी ने नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का ऐलान किया है (फोटो-PTI)
ममता बनर्जी ने नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का ऐलान किया है (फोटो-PTI)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • शुभेंदु भी नंदीग्राम से ही विधायक रहे हैं
  • 'अपना नाम भूल सकती हूं नंदीग्राम नहीं'
  • नंदीग्राम ममता बनर्जी के लिए कर्मभूमि रही है

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के पहले बागियों से परेशान चल रही तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी ने अब तक का सबसे बड़ा दांव खेला है. सोमवार को उन्होंने पूर्व मिदनापुर के नंदीग्राम से 2021 विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान करते हुए, एक साथ कई समीकरण साधने की कोशिश की है. सिर्फ एक सीट या एक इलाका ही नहीं नंदीग्राम से ममता बनर्जी का चुनाव लड़ना टीएमसी के लिए खासकर साउथ बंगाल में बड़ा प्रभाव छोड़ सकता है. इस ऐलान के मायने को समझें तो कई समीकरण-संयोजन देखने को मिल सकते हैं.

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नंदीग्राम को चुनने का मतलब?

वाममोर्चा के खिलाफ लगातार छोटे-बड़े आंदोलन के बाद भी ममता बनर्जी और उनकी पार्टी को बड़ी सफलता नहीं मिली थी. फिर आया साल 2006 और दिसंबर में सिंगुर में किसानों की दखल के खिलाफ आंदोलन शुरू हुआ और कुछ महीने बाद ही  2007 नंदीग्राम में भी केमिकल हब बनाने का विरोध शुरू हो गया. बुद्धदेव भट्टाचार्य की सरकार आंदोलन के प्रभाव का आकलन अभी कर ही पाती, इससे पहले ही वहां 14 मार्च को गोलीकांड हो गया, जिसमें 14 किसानों की मौत हो गई. 100 से ज्यादा किसानों के गायब होने का दावा किया गया.

'अस्तित्व' की लड़ाई में नंदीग्राम 'लौटने' की कोशिश

ये दो आंदोलन ममता बनर्जी के राजनीतिक करियर के सबसे बड़े हथियार और वाम शासनकाल के पतन के कारण बने. करीब दस साल तक शासन करने के बाद ममता बनर्जी भी आज बीजेपी के सामने 'अस्तित्व' की लड़ाई लड़ रही हैं. बंगाल के कई राजनीतिक पंडित मान चुके हैं कि बीजेपी का प्रचार राज्य में बड़ी तेजी से प्रभाव डाल रहा है और इसका परिणाम 2019 लोकसभा चुनाव में दिख भी चुका है. ऐसे में ममता बनर्जी के सामने अपना किला बचाने की चुनौती है और यही ऐसे मौके पर वे फिर अपनी 'जड़' आंदोलन की ओर लौट रही हैं. ये ना सिर्फ एक सोचा समझा मूव होगा बल्कि जनता से इमोशनल कनेक्शन भी बनेगा.

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ममता के लिए 'लकी' क्यों है?

सोमवार को नंदीग्राम के तेखाली में रैली के दौरान ममता बनर्जी ने कई बार कहा- नंदीग्राम मेरे लिए लकी रहा है. मैंने यहां पहले प्रत्याशी का ऐलान किया था. मैं सोच रही थी कि क्यों ना इस बार मैं ही नंदीग्राम से चुनाव लड़ूं? भले ही ममता बनर्जी 18 जनवरी को नंदीग्राम में 5 साल बाद गईं हों, लेकिन वे कई बार कह चुकी हैं कि अपना नाम भूल सकती हैं लेकिन नंदीग्राम नहीं भूलेंगी. हालांकि, 2007 में आंदोलन के बाद ममता का नंदीग्राम दौरा बहुत कम ही हुआ है, लेकिन 14 साल बाद ये इलाका फिर टीएमसी के लिए खास हो गया है.

शुभेंदु को बड़ा चैंलेज, दांव पर लगी साख

टीएमसी से कई नेता बीजेपी में आए हैं लेकिन पिछले 4 महीने से सबसे ज्यादा चर्चा में बने हुए हैं शुभेंदु अधिकारी. शुभेंदु ना सिर्फ बड़े चेहरे के तौर पर बीजेपी में आगे बढ़ रहे हैं बल्कि बीजेपी को ये भी उम्मीद है कि वे मिदनापुर में कई सीटों पर प्रभाव डालेंगे. 2016 से शुभेंदु अधिकारी नंदीग्राम के विधायक हैं. बीजेपी में शामिल होने के बाद उन्होंने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया. अब अगर ममता बनर्जी नंदीग्राम से खुद चुनाव लड़ती हैं तो क्या बीजेपी शुभेंदु को ही उनके खिलाफ मैदान में उतारेगी? ये सवाल इसलिए भी है क्योंकि इस ऐलान के कुछ मिनट बाद ही टीएमसी ने शुभेंदु को चैलेंज कर दिया कि दम है तो इस बार फिर नंदीग्राम से चुनाव लड़कर दिखाएं.

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बीजेपी को जवाब

जेपी नड्डा ने एक महीने पहले ही अपने दौरे के दौरान ममता बनर्जी की सीट भवानीपुर और अभिषेक बनर्जी के गढ़ डायमंड हार्बर में सभा की थी. ये बीजेपी की बड़ी स्ट्रैटेजी मानी जा रही है. अब जिस शुभेंदु अधिकारी के बल पर बीजेपी नंदीग्राम में बड़ा बदलाव देखने की उम्मीद लगाए हुए है, वहां ममता ने खुद को प्रत्याशी बनाकर बीजेपी को जवाब भी दे दिया है. ये मैसेज साफ दिख रहा है.

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