पश्चिम बंगाल में चुनावी खेला शुरू हो चुका है. ममता बनर्जी ने शुक्रवार को हुंकार के साथ 291 उम्मीदवारों का ऐलान किया. वहीं दीदी ने अपना रणक्षेत्र नंदीग्राम को चुना है. अब बारी बीजेपी की है, जहां नंदीग्राम में दीदी के खिलाफ शुभेंदु अधिकारी के चुनाव लड़ने पर सस्पेंस बना हुआ है.
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने शुक्रवार को सियासी खेले का शंखनाद पूरे तेवर के साथ भरा. दीदी ने अपने 291 योद्धाओं का ऐलान किया और खुद के लिए उस नंदीग्राम के मैदान को चुना, जहां से दीदी के टर्निंग प्वाइंट की कहानी शुरू हुई थी.
पश्चिम बंगाल के महाभारत का कुरूक्षेत्र अब नंदीग्राम बन चुका है, जहां से तय होगा कि बंगाल के सिंहासन पर कौन बैठने वाला है. 10 तारीख को दीदी नंदीग्राम से पर्चा दाखिल करेंगी तो वहीं 11 तारीख को महाशिवरात्रि के दिन वो नंदीग्राम के मंच से हुंकार भरेंगी.
ममता बनर्जी के इस फैसले ने साफ कर दिया की दीदी अब फ्रंट फुट पर आकर खुला खेल खेलने के मूड में हैं. पहले ममता के दो सीटों पर चुनाव लड़ने की अटकलें थीं, लेकिन दीदी ने अपनी पारंपरिक सीट भवानीपुर से चुनाव ना लड़ने का ऐलान किया जिसकी जिम्मेदारी अब शोभन देव चटोपाध्याय को सौंपी गई है.
क्या चुनौती देंगे शुभेंदु?
ममता ने जिस सेनापति शुभेंदु को नंदीग्राम की कमान सौंपी थी आज वो बंगाल में बीजेपी का बड़ा कार्ड है. ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि क्या बीजेपी नंदीग्राम से शुभेंदु अधिकारी का दांव खेलेगी जिसका ऐलान अगले कुछ घंटों में हो सकता है. बीजेपी की बंगाल चुनाव पर हुई कोर मीटिंग में सबसे ज्यादा माथापच्ची नंदीग्राम को लेकर ही हुई जहां एक बार फिर शुभेंदु अधिकारी ने नंदीग्राम से चुनाव लड़ने की बात कहीं. वहीं दावा किया गया है कि वो ममता को कम से कम 50 हजार वोट से हराएंगे, लेकिन अभी बीजेपी ने अपने पत्ते खोले नहीं हैं. शुभेंदु ने कहा है कि 50 हजार वोट से जीतेंगे लेकिन अभी तय नहीं हुआ है कि कौन लड़ेगा.
नंदीग्राम वह जगह है जहां से ममता के पश्चिम बंगाल की सत्ता में आने का रास्ता खुला था. किसान आंदोलन का गढ़ रहे नंदीग्राम से ममता की राजनीतिक जमीन को मजबूती मिली था. साल 2007 में ममता बनर्जी का 'मां, माटी और मानुष' का आंदोलन भी यहीं से शुरू हुआ था. 2011 में प्रस्तावित इकोनॉमिक जोन के खिलाफ किसानों की जमीन बचाने के लिए ममता की पार्टी ने अभियान चलाया था. लेकिन जिस नंदीग्राम से ममता और शुभेंदु अधिकारी ने एक साथ जंग की शुरुआत की थी. उस अखाड़े में वो एक दूसरे के खिलाफ दंगल करेंगे.
नंदीग्राम के संग्राम से ममता बनर्जी ने 34 साल के लेफ्ट शासन को उखाड़ फेंका था और सत्ता के शिखर तक पहुंची थीं. नंदीग्राम भले ही ममता का गढ़ रहा हो लेकिन शुभेंदु अधिकारी की यहां तूती बोलती है.
शुभेंदु के लिए चुनौती
साल 2016 में हुए विधानसभा में अधिकारी शुवेंदु ने सीपीआई के अब्दुल कबी को यहां से मात दी थी. शुभेंदु के दबदबे का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें 66.79% प्रतिशत वोट मिले वहीं दूसरे नंबर पर रहे अब्दुल कबी को 26.49% लोगों ने वोट किया. जीत का अंतर 40.3 प्रतिशत यानी 81230 था. वहीं बीजेपी को यहां सिर्फ 5.32% वोट ही मिले.
साफ है कि टीएमसी के साथ शुभेंदु के तड़के ने नंदीग्राम में कई रिकॉर्ड तोड़े. लेकिन अब समीकरण बदल चुका है. शुभेंदु बीजेपी के साथ हैं. ऐसे में बीजेपी के सिर्फ 5 प्रतिशत वोटबैंक को जीत में बदलना और सामने ममता बनर्जी का उम्मीदवार होना किसी चुनौती से कम नहीं है.