scorecardresearch
 

बंगाल चुनाव: नंदीग्राम में भीषण संग्राम, 62 हजार मुस्लिम वोट, पाला बदलने पर क्या शुभेंदु को लगेगी चोट?

क्या नंदीग्राम का 'भूमिपुत्र' मतदाता शुभेंदु अधिकारी की तरह ही अपनी निष्ठा TMC से BJP की ओर शिफ्ट करेगा? ये वो सवाल है जिस पर 2021 के सबसे हाई वोल्टेज सीट का नतीजा निर्भर करेगा. दरअसल ममता की परछाई और अपने प्रभुत्व के दम पर टीएमसी और शुभेंदु दोनों ने ही नंदीग्राम में खूब मलाई खाई है. लेकिन अब समीकरण सीधे विपरित धुव्र में आ गए हैं.

Advertisement
X
नंदीग्राम में हाई वोल्टेज टक्कर होने जा रही है.
नंदीग्राम में हाई वोल्टेज टक्कर होने जा रही है.
स्टोरी हाइलाइट्स
  • बंगाल में 2011 में आई TMC, नंदीग्राम 2009 में ही जीती
  • नंदीग्राम में चलता है अधिकारी परिवार का सिक्का
  • क्या शुभेंदु की तरह 'भूमिपुत्र' भी बदलेंगे अपनी निष्ठा

पश्चिम बंगाल के 2016 के विधानसभा चुनाव में नंदीग्राम सीट पर बीजेपी को साढ़े 5 फीसदी से भी कम वोट मिले थे. इस सीट पर कुल वैध मतों की संख्या  2 लाख 01 हजार 552 थी. इनमें से बीजेपी उम्मीदवार बिजन कुमार दास को मात्र 10 हजार 713 वोट मिले थे. 

Advertisement

मगर 2016 में ममता बनर्जी के निष्ठावान और तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार शुभेंदु अधिकारी ने उस चुनाव में इस सीट पर महाजीत हासिल की थी. उन्होंने अपने नजदीकी प्रतिद्वंदी सीपीआई के अब्दुल कबीर शेख को 81 हजार 230 वोटों से हराया था. शुभेंदु अधिकारी ने 1 लाख 34 हजार 623 वोटों के साथ 67.2 प्रतिशत मत हासिल किए. जबकि अब्दुल कबीर शेख को मात्र 53 हजार 393 वोट मिले थे. BJP यहां लंबे मार्जिन से तीसरे नंबर पर रही.

19 दिसबंर 2020 से नंदीग्राम में BJP न के बराबर थी 

इन आंकड़ों से कई निष्कर्ष निकलते हैं. पहला ये कि नंदीग्राम में 19 दिसबंर 2020 से पहले बीजेपी का कोई बड़ा दबदबा नहीं था. 19 दिसंबर 2020 वो तारीख थी जब शुभेंदु अधिकारी ने ममता के साथ अपना लगभग 13 साल साथ तोड़ते हुए बीजेपी में शामिल हो गए थे. 

Advertisement

2016 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 5.4 प्रतिशत वोट तब मिले जब 2014 में दिल्ली में मोदी के नाम का डंका बज चुका था. लेकिन नंदीग्राम की क्रांतिकारी जमीन में भगवा फसल नहीं लहलहा सकी. नंदीग्राम सीट से बीजेपी के बिजन कुमार दास 2009 से पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन टीएमसी वाले शुभेंदु के गढ़ और ममता की आंधी में कभी उनका अता पता नहीं चला.  

नंदीग्राम में चलता है शुभेंदु का सिक्का

दूसरा तथ्य यह है कि नंदीग्राम में अधिकारी फैमिली जबरदस्त लोकप्रिय रहे हैं. इसकी गवाही आंकड़े देते हैं. 2016 में शुभेंदु ने 80 हजार वोटों के साथ चुनाव तो जीता ही था. इससे पहले 2009 से यह इलाका अधिकारी परिवार का राजनीतिक किला रहा है. 

शुभेंदु अधिकारी 2009 और 14 में तामुलक से सांसद बने, इसी तामलुक लोकसभा सीट के तहत नंदीग्राम विधानसभा क्षेत्र आता है. 2016 में विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए शुभेंदु ने इस सीट से इस्तीफा दे दिया, लेकिन दिल्ली जाने से पहले वो इस सीट का लोकतांत्रिक उत्तराधिकारी अपने भाई दिव्येंदु अधिकारी को बना गए. अभी दिव्येंदु इस सीट से सांसद हैं, लेकिन ममता से उनकी भी नहीं पट रही है. हाल में पीएम मोदी ने दिव्येंदु की तारीफ कर काफी कुछ संदेश दे दिया है.

Advertisement

क्या शुभेंदु की तरह भूमिपुत्र मतदाता भी बदलेगा अपनी निष्ठा?

तीसरी और सबसे अहम बात यह है कि क्या नंदीग्राम का 'भूमिपुत्र' मतदाता शुभेंदु अधिकारी की तरह ही अपनी निष्ठा TMC से BJP की ओर शिफ्ट करेगा? ये वो सवाल है जिस पर 2021 के सबसे हाई वोल्टेज सीट का नतीजा निर्भर करेगा. दरअसल ममता की परछाई और अपने प्रभुत्व के दम पर टीएमसी और शुभेंदु दोनों ने ही नंदीग्राम में खूब मलाई खाई है. लेकिन अब समीकरण सीधे विपरित धुव्र में आ गए हैं और इस घटनाक्रम के बाद सरसरी नजर में टीएमसी तो इस सीट पर घाटे में नजर आती है. 

बीजेपी के पास अब शुभेंदु है, यानी की शुभेंदु का वोटबैंक है. लेकिन ममता बनर्जी ने अपने लेफ्टिनेंट के सामने खुद अपनी ही उम्मीदवारी की चुनौती पेशकर यहां के मतदाताओं को पसोपेश में डाल दिया है. अब वोटर्स के सामने एक ओर तो पार्टी से जुड़ी वफादारी और ममता बनर्जी का चेहरा है तो दूसरी ओर अपने नेता शुभेंदु के साथ सालों का लगाव है, और धुआंधार प्रचार युद्ध कर रहे बीजेपी के साथ आने का लालच है.

नंदीग्राम की जनता किसको वोट देगी?

सवाल है कि नंदीग्राम की जनता किसको वोट देगी? क्या शुभेंदु अधिकारी मतदाताओं के अपनी ओर खींच पाएंगे. बंगाल के हुगली जिले के रहने वाले मोहन लाल मुखर्जी कहते हैं कि नंदीग्राम शुभेंदु अधिकारी का मदरलैंड है, वो काफी हदतक टीएमसी वोर्टस को अपने साथ ले आ सकेंगे. 

Advertisement

शुभेंदु ने तो पूर्व मिदनापुर में ममता बनर्जी को बाहरी करार दे दिया है. नंदीग्राम पूर्वी मिदनापुर जिले में ही आता है. नंदीग्राम से ममता की उम्मीदवारी फाइनल होने के बाद शुभेंदु ने कहा कि यहां के लोग मिदनापुर के बेटे को चाहते हैं, बाहरी लोगों को नहीं. हम उन लोग वोट की रणभूमि में देखेंगे, 2 मई को आप हारेंगी और बाहर जाएंगीं. नंदीग्राम में 1 अप्रैल को चुनाव है. शुभेंदु को मोदी शाह का पूरा समर्थन है, इसके अलावा उनकी अपनी लोकप्रियता और साख है इसके दम पर वह मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को तगड़ी चुनौती देने जा रहे हैं.

नंदीग्राम की पॉलिटिकल लिगेसी पर शुभेंदु का दावा

शुभेंदु अधिकारी नंदीग्राम की पॉलिटिकल लिगेसी पर दावा हुंकार भरते हुए करते हैं. वह सार्वजनिक रूप से एलान कर चुके हैं कि वह ममता बनर्जी को नंदीग्राम में 50 हजार से ज्यादा वोट से हराएंगे, नहीं तो वह राजनीति से संन्यास ले लेंगे. पूर्वी मिदनापुर की राजनीति में शुभेंदु अधिकारी, उनके पिता शिशिर अधिकारी भाई दिव्येंदु अधिकारी की चलती है. शिशिर अधिकारी इस वक्त कंथाई से TMC सांसद हैं, लेकिन उन्होंने कहा है कि शुभेंदु बड़ें अंतर से जीतेंगे.

नंदीग्राम में ममता बनर्जी की फाइटर छवि तपी और निखरी है

कोलकाता से 150 किलोमीटर दूर नंदीग्राम वो नाम है जहां ममता बनर्जी की फाइटर छवि तपी और निखरी है. नंदीग्राम ममता ब्रांड राजनीति की कर्मस्थली रही है. इसी संघर्ष के दम पर उन्होंने 2011 में 34 साल से जड़े जमाए CPM के बरगद को उखाड़ कर फेंक दिया.

Advertisement

बड़ा संयोग है कि 2007-08 में ये दोनों तब कॉमन राजनीतिक शत्रु सीपीएम के खिलाफ लड़ते थे. तब ममता आंदोलनकारीं थी और शुभेंदु उनके विश्वस्त आर्गनाइजर और मॉबलाइजर थे. नंदीग्राम में उद्योंगों के लिए भूमि अधिग्रण के खिलाफ चले आंदोलन ने न सिर्फ बंगाल बल्कि देश भर में ममता को एक स्ट्रीट फाइटर नेता के रूप में स्थापित कर दिया. 13 सालों में यहां की राजनीति फुल सर्कल पर आ चुकी है, अब सीपीएम नेपथ्य में चला गया है, और मंच पर ममता और शुभेंदु आमने-सामने हैं. टकराने के लिए तैयार.

नंदीग्राम में ममता का 'M' फैक्टर

नंदीग्राम सीट पर तृणमूल कांग्रेस का कब्जा 2009 से ही रहा है. TMC ने भले ही बंगाल में एट्री 2011 में ली हो, लेकिन पार्टी ने नंदीग्राम को 2009 के उपचुनाव में ही जीत लिया था, जब फिरोजा बीवी यहां से टीएमसी विधायक बनी थीं. 2011 में फिरोजा बीवी दूसरी बार चुनाव जीतीं. फिरोजा बीवी की चर्चा इसलिए क्योंकि यहां मुस्लिम वोटर निर्णायक स्थिति में हैं. 

नंदीग्राम विधानसभा में 2 ब्लॉक हैं. नंदीग्राम 1 और नंदीग्राम 2. रिपोर्ट के अनुसार ब्लॉक संख्या में  35 फीसदी मुस्लिम वोट है, जबकि ब्लॉक 2 में 15 फीसदी अल्पसंख्यक है. कुल मिलाकर ये वोट तकरीबन 62000 तक जाती है, जबकि नंदीग्राम में कुल वोटर्स सवा 2 लाख के करीब हैं. नंदीग्राम के इस संग्राम में ममता बनर्जी को इन वोटों से काफी उम्मीद है. 

Advertisement

शुभेंदु अधिकारी ने एक बार कहा भी था कि टीएमसी सुप्रीमो कुछ 62000 वोटों के सहारे नंदीग्राम से चुनाव लड़ना चाहती हैं, हालांकि तब उन्होंने स्पष्ट रूप से मुस्लिम वोट का नाम नहीं लिया था. 

हालांकि ये देखना दिलचस्प होगा कि यहां कांग्रेस सीपीएम और अब्बास सिद्दीकी की आईएसएफ किसे मैदान में उतारते हैं. या फिर इनकी ओर से ममता को वॉकओवर दिया जाता है और बीजेपी को संयुक्त चुनौती दी जाती है. इसके अलावा नजरें AIMIM सांसद ओवैसी पर भी हैं. बता दें कि कांग्रेस-सीपीएम गठबंधन ने इस सीट पर अभी तक अपने कैंडिडेट का नाम फाइनल नहीं किया है. 

फिलहाल ममता बनर्जी के सामने चुनौती ये है कि उन्हें साबित करना है कि नंदीग्राम से पैदा हुई सियासी क्रांति की असली हकदार वो हैं न कि शुभेंदु अधिकारी, इसके लिए उन्हें अपने ही कैबिनेट के पूर्व सहयोगी को सियासी अखाड़े में पटखनी देनी होगी.

 

Advertisement
Advertisement