पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव को लेकर सियासत जिस तेजी से बढ़ रही है, वैसे-वैसे टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी की मुश्किलें भी बढ़ती जा रही हैं. अस्सी के दशक में बंगाली सिनेमा पर राज करने वाली शताब्दी रॉय टीएमसी की बीरभूम से सांसद हैं और अब उन्होंने भी बागी रुख अपना लिया है.
शताब्दी रॉय ने फेसबुक पर पोस्ट लिखकर कहा कि 16 जनवरी को दोपहर दो बजे अपने राजनीतिक करियर को लेकर बड़ा फैसला ले सकती हूं. माना जा रहा है कि शताब्दी रॉय का टीएमसी से मोहभंग हो गया है. ऐसे में वो अगर टीएमसी छोड़ने का फैसला करती हैं तो ममता बनर्जी के लिए बीरभूम क्षेत्र में सियासी तौर पर बड़ा झटका होगा.
शताब्दी रॉय ने फेसबुक पर लिखा है, 'लोग मुझसे पूछते हैं कि मैं बीरभूम में होने वाले पार्टी के कार्यक्रमों में क्यों नहीं दिखाई देती. मैं कैसे शामिल होऊं, जब मुझे उनका शेड्यूल ही पता नहीं रहता? मुझे लगता है कि कुछ लोग नहीं चाहते कि मैं वहां रहूं. ऐसे मैं क्या कर सकती हूं?'
आगे उन्होंने लिखा, 'आप सभी ने मेरा समर्थन किया है, 2009 से मुझे लोकसभा भेजा है. मेरे सांसद बनने से बहुत पहले बंगाल के लोग मुझे अभिनेत्री शताब्दी रॉय के रूप में प्यार करते थे. मैं अपने कर्तव्यों का पालन करना जारी रखूंगी. इसलिए इस नए साल में मैं एक निर्णय लेने की कोशिश में हूं, ताकि मैं आपके साथ पूरी तरह से रह सकूं.' शताब्दी रॉय के पोस्ट से साफ जाहिर होता है कि वो दुखी हैं और राजनीतिक तौर पर कदम उठा सकती हैं.
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अस्सी के दशक में बंगाली सिनेमा पर राज करने वाली शताब्दी रॉय ने बंगाल की सियासत में अपनी छाप छोड़ी है. शताब्दी रॉय का जन्म 05 अक्टूबर 1969 में उत्तर 24 परगना जिले के अगरपारा में हुआ. उनके पिता का नाम सैलेन रॉय और मां का नाम लालिमा रॉय है. शताब्दी रॉय की शादी मृगांक बैनर्जी से हुई है. उन्हें एक बेटा और एक बेटी है.
1986 में तृप्ति सिन्हा की बंगाली फिल्म अतांका से शताब्दी रॉय ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की और बंगाली फिल्म की जाना पहचाना चेहरा बन गईं. 90 के दशक में शताब्दी रॉय ने पश्चिम बंगाल के कृष्णानगर के तापस पॉल के साथ दो फिल्मों में अभिनय किया था, जो बॉक्स ऑफिस पर हिट रहीं. शताब्दी रॉय न सिर्फ दबंग अभिनय के लिए जानी जाती हैं बल्कि वो एक निर्देशक और कवयित्री के रूप में भी अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहीं. इस दौरान उन्हें दो बार बीजेएफए सम्मान से भी नवाजा गया. बंगाली सिनेमा में अपनी छाप छोड़ने के बाद शताब्दी रॉय ने राजनीति में कदम रखा.
शताब्दी रॉय ने टीएमसी से अपना सियासी सफर शुरू किया. ममता बनर्जी ने बीरभूम इलाके में शताब्दी रॉय को पार्टी का चेहरा बनाया. 2009 में पहली बार वो टीएमसी से सांसद चुनी गईं, जिसके बाद उन्होंने पलटकर नहीं देखा. 2019 में तीसरी बार शताब्दी रॉय अपनी लोकप्रियता के दम पर टीएमसी से संसद पहुंचीं. इस दौरान उन्होंने रेलवे में स्थायी समिति का सदस्य, महिला अधिकारिता समिति, सामाजिक न्याय और अधिकारिता समिति के सदस्य के रूप में अपनी सेवा दी. हालांकि, अब शताब्दी राय का टीएमसी से मोहभंग हो रहा है. माना जा रहा है कि टीएमसी छोड़कर बीजेपी का दामन थाम सकती हैं, जिसका फैसला शनिवार को दोपहर दो बजे लेंगी.