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भद्रलोक सांसद दिनेश त्रिवेदी के टीएमसी छोड़ने से ममता को कितना बड़ा नुकसान?

अगर हम लोकप्रियता के पैमाने पर तौलें तो दिनेश त्रिवेदी, शुभेंदु अधिकारी जैसे लोकप्रिय नेता कभी नहीं रहे. दिनेश त्रिवेदी को भीड़ खींचने वाले या ग्रासरूट लीडर के तौर पर नहीं देखा गया. पिछले लोकसभा चुनाव में दिनेश त्रिवेदी बैरकपुर सीट से अर्जुन सिंह के हाथों हार गए थे

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दिनेश त्रिवेदी (फाइल फोटो)
दिनेश त्रिवेदी (फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • ममता बनर्जी को पहले से था त्रिवेदी के पार्टी छोड़ने का अंदाजा
  • डेरेक ओ ब्रायन से था त्रिवेदी का टकराव, फेस वैल्यू का नुकसान

तृणमूल कांग्रेस सांसद दिनेश त्रिवेदी ने शुक्रवार को नाटकीय अंदाज में राज्यसभा में अपने इस्तीफे का ऐलान कर दिया. विधानसभा चुनाव की घोषणा होने के ठीक पहले तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) से इस्तीफा देते हुए उन्होंने कहा कि मुझे पार्टी में घुटन हो रही है. एक ओर कुछ लोग इसे टीएमसी का बड़ा नुकसान बता रहे हैं तो वहीं टीएमसी इसे ज्यादा तवज्जो नहीं दे रही है. राज्यसभा से सांसद दिनेश त्रिवेदी के टीएमसी छोड़ने से क्या वाकई पार्टी को बड़ा नुकसान होगा?

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उससे भी पहले सवाल तो ये है कि त्रिवेदी ने इस्तीफा क्यों दिया? क्या तृणमूल और ममता बनर्जी को पहले से इसका अंदाजा था? इसका जवाब है हां. जनता को भले न पता रहा हो, लेकिन ममता बनर्जी और पार्टी को ये पता था कि दिनेश त्रिवेदी कभी भी पार्टी को अलविदा कह सकते हैं. हाल ही में उनकी गतिविधि‍यों से ये संदेह और पुख्ता हो गया था.

दिनेश त्रिवेदी का पार्टी छोड़ना किसी भी तरह से अप्रत्याशि‍त घटना नहीं है, लेकिन इस तरह से नाटकीय अंदाज में उनका इस्तीफा टीएमसी को एक झटका जरूर है. तृणमूल कांग्रेस भले कह रही हो कि इससे उसे खास नुकसान नहीं होगा, लेकिन यह निश्चि‍त तौर पर नुकसान है. अब ये देखा जाना बाकी है कि ये नुकसान कितना बड़ा होगा.

लंबे समय से लग रही थीं अटकलें

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दरअसल, 2015 से ही दिनेश त्रिवेदी के बीजेपी ज्वाइन करने की अटकलें लगनी शुरू हो गई थीं. हालांकि, उस दौरान ममता बनर्जी ने दिनेश त्रिवेदी को मना लिया था. पिछले कुछ साल में दिनेश त्रिवेदी का कद पार्टी में पहले जैसा नहीं रह गया था. टीएमसी ने 2019 में लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी उनको राजसभा की सीट इसीलिए दी क्योंकि वह दिल्ली में टीएमसी और दूसरी पार्टियों के बीच संपर्क का बड़ा चेहरा बने रहे. लेकिन बंगाल में उनको दरकिनार किया जाने लगा. पार्टी के कार्यक्रमों और हाल के चुनाव प्रचार में भी उनको जगह नहीं मिली. ऐसे में पार्टी से दिनेश त्रिवेदी का तनाव और बढ़ने लगा था. सूत्रों की मानें तो पिछले एक महीने से ही दिनेश त्रिवेदी बीजेपी के संपर्क में थे और कुछ दिनों से उनके ट्वीट से ये संकेत भी मिलने शुरू भी हो गए थे.

डेरेक ओ ब्रायन से टकराव

तृणमूल में डेरेक ओ ब्रायन, दिनेश त्रिवेदी के लिए बड़ी समस्या थे और दोनों के बीच काफी तनाव की स्थि‍ति थी. लेकिन ममता बनर्जी ये समझती हैं कि डेरेक ओ ब्रायन उनके प्रति वफादार हैं और वे धोखा नहीं देंगे. ब्रायन अभि‍षेक बनर्जी और पीके के भी करीबी हैं. इसके उलट, त्रिवेदी जल्दी में थे और अपने लिए ज्यादा ताकत चाह रहे थे.

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राज्यसभा में डेरेक ओ ब्रायन पार्टी के नेता थे और त्रिवेदी को उनकी बात माननी पड़ती थी. हालांकि उन्हें चुनाव हारने के बाद राज्यसभा भेजा गया था और उन्हें ये समझाया गया था कि ममता बनर्जी ने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि वे उन्हें तवज्जो देती हैं. अब जब उन्होंने पार्टी छोड़ने का सार्वजनिक ऐलान कर दिया है तो ममता उन्हें मनाने का जोखिम नहीं उठाएंगी, क्योंकि मनाने की कोशि‍शों के बाद भी अगर वे नहीं लौटे तो इससे पार्टी की और फजीहत होगी. टीएमसी का रवैया साफ है कि अगर आप पार्टी छोड़ना चाहते हैं तो जा सकते हैं.

टीएमसी को फेस वैल्यू का नुकसान

दिनेश त्रिवेदी टीएमसी के भद्रलोक नेता के तौर पर जाने जाते रहे हैं. एक ऐसे शिक्षित और शालीन नेता, जिनका गुजराती लिंक भी है क्योंकि वे गुजराती ब्राह्मण हैं. इस लिहाज से देखें तो दिनेश त्रिवेदी का जाना टीएमसी के लिए नुकसान का सौदा है. क्योंकि दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में दिनेश त्रिवेदी टीएमसी का चेहरा थे. चाहे कांग्रेस से बातचीत करनी हो या किसी भी राष्ट्रीय नेता से कोई संवाद करना हो तो दिनेश त्रिवेदी टीएमसी का प्रतिनिधित्व करते थे. गुजराती होने के नाते दिनेश त्रिवेदी का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के साथ भी अच्छा संपर्क है.

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अगर हम लोकप्रियता के पैमाने पर तौलें तो दिनेश त्रिवेदी, शुभेंदु अधिकारी जैसे लोकप्रिय नेता कभी नहीं रहे. दिनेश त्रिवेदी को भीड़ खींचने वाले या ग्रासरूट लीडर के तौर पर नहीं देखा गया. पिछले लोकसभा चुनाव में दिनेश त्रिवेदी बैरकपुर सीट से अर्जुन सिंह के हाथों हार गए थे. अगर खालिस वोटिंग परसेंटेज या सीट के परिपेक्ष्य में देखें तो दिनेश त्रिवेदी का टीएमसी से जाना कोई बड़ा नुकसान नहीं है.

त्रिवेदी के जाने से टीएमसी को न ही सीटों का नुकसान है और न ही दिनेश के साथ कोई बड़ा नेता टीएमसी छोड़ रहा है, जैसा कि शुभेंदु के वक्त हुआ था. शुभेंदु अधि‍कारी के साथ कई विधायक और बर्धमान के सांसद सुनील मंडल पार्टी छोड़कर बीजेपी में चले गए. लेकिन दिनेश त्रिवेदी का जाना तृणमूल कांग्रेस और ममता बनर्जी दोनों के लिए फेस वैल्यू का नुकसान जरूर है.

राजनीति में कांग्रेस से अपना सफर शुरू करने वाले दिनेश त्रिवेदी ने 1998 के बाद टीएमसी ज्वाइन की थी. ममता ने दिनेश त्रिवेदी को रेल मंत्री तक बनाया लेकिन रेल बजट में जब दिनेश त्रिवेदी ने किराए में वृद्धि की तो ममता के दबाव में उन्हें रेल मंत्रालय छोड़ना पड़ा.

बीजेपी के काम आ सकता है त्रिवेदी का अनुभव

बीजेपी दिनेश त्रिवेदी का इस्तेमाल ‘बंगाली बनाम बाहरी’ के मुद्दे से निपटने के लिए करेगी. साथ ही उनकी राजनीतिक क्षमता और बंगाली बोलने की कुशलता भी बीजेपी के काम आएगी. इसके अलावा बीजेपी त्रिवेदी के जरिये बंगाल बीजेपी में स्थानीय नेता की कमी की भी भरपाई कर सकती है.

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इस्तीफे के बाद अब दिनेश त्रिवेदी का बीजेपी में जाना तय माना जा रहा है. चर्चा है कि कुछ दिनों में ही वह बीजेपी ज्वाइन करेंगे और पार्टी उन्हें गुजरात से राज्यसभा का टिकट दे सकती है. हालांकि, टीएमसी में दम घुटने की बात कहकर पार्टी छोड़ने वाले दिनेश को बीजेपी में कितना ऑक्सीजन मिलेगा, ये भविष्य बताएगा क्योंकि वहां त्रिवेदी को हराने वाले अर्जुन सिंह जैसे नेता पहले से मौजूद हैं.

(अनुपम मिश्र और जयंत घोषाल का इनपुट)

 

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