पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 8 चरणों में संपन्न कराए जाने की घोषणा के तुरंत बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपना गुस्सा जाहिर किया. उन्होंने सवाल उठाया कि दूसरे राज्यों में एक, दो या तीन चरणों में चुनाव हो रहा है तो पश्चिम बंगाल में 8 चरणों में चुनाव कराने की घोषणा क्यों की गई है?
पश्चिम बंगाल में ये पहला मौका नहीं है जब ममता ने इतने ज्यादा चरणों में चुनाव कराए जाने पर आपत्ति जताई है. 2019 के लोकसभा चुनाव में भी छह चरणों में चुनाव की घोषणा की गई थी, तब भी ममता बनर्जी ने इसका विरोध किया था. इससे पहले 2016 में भी जब 6 चरणों में चुनाव की घोषणा हुई थी, तब भी ममता बनर्जी ने आपत्ति जताई थी और बंगाल के साथ सौतेला व्यवहार करने का आरोप लगाया था.
दरअसल, 2016 के विधानसभा चुनाव में पहले चरण का मतदान दो तारीखों में मिलाकर संपन्न हुआ था- 4 अप्रैल और 11 अप्रैल. इसके बाद 17 अप्रैल, 21 अप्रैल, 25 अप्रैल, 30 अप्रैल और 5 मई को अन्य चरणों का मतदान हुआ था. अगर तारीखों के लिहाज से देखें तो यह सात चरण में था लेकिन चुनाव आयोग ने इसे छह चरण में विभाजित किया था. उस वक्त भी ममता बनर्जी ने बंगाल के साथ सौतेला व्यवहार करने का आरोप लगाया था.
ममता ने चुनाव आयोग पर उठाए सवाल
शुक्रवार को चुनाव की तारीखों की घोषणा होने के तुरंत बाद ममता ने सवाल उठाया कि क्या भाजपा को फायदा पहुंचाने के लिए बंगाल में चुनाव को 8 चरणों में बांटा गया है? क्या चुनाव आयोग प्रधानमंत्री के कहने पर ऐसा कर रहा है?
इस बारे में हमने कई टीएमसी नेताओं से बातचीत की. ममता बनर्जी और टीएमसी के वरिष्ठ नेताओं को लग रहा है कि भाजपा के कहने पर ही चुनाव आयोग ने 8 चरणों में चुनाव की घोषणा की है.
ममता के गुस्से के पीछे की खास वजह ये है कि ममता को लग रहा है कि बंगाल में चुनाव की तारीखें ऐसे सेट की गई हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह दूसरे राज्यों में चुनाव प्रचार के साथ यहां भी भरपूर समय दे सकें. गुस्से की दूसरी वजह है कि जिन जिलों में टीएमसी मजबूत है, वहां पर दो चरणों में चुनाव का बंटवारा किया गया है. जैसे दक्षिण 24 परगना, पूर्व मिदनापुर और कोलकाता. इन जिलों में टीएमसी काफी मजबूत है. ममता को लगता है कि इन जिलों में दो चरणों में चुनाव कराने से बीजेपी को फायदा और टीएमसी को नुकसान होगा.
बंगाल की सियासी हिंसा
पश्चिम बंगाल के चुनावी इतिहास को देखें तो हिंसा यहां का चरित्र रहा है. इस बार भी चुनावी हिंसा बड़ा फैक्टर है. माना जा रहा है कि बंगाल की हिंसक राजनीति को ध्यान में रखते हुए ही यहां आठ चरणों में चुनाव कराने का फैसला लिया गया है. चुनाव आयोग के लिए ये सबसे बड़ी चुनौती है कि किस तरह बंगाल चुनाव को हिंसा से मुक्त रखा जाए.
1996 से 2011 तक वामपंथी शासन काल के दौरान ममता बनर्जी खुद पश्चिम बंगाल में कई चरणों में चुनाव कराने के पक्ष में थीं और इसकी मांग करती थीं. 2011 में जब ममता बनर्जी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की, तब भी छह चरणों में ही चुनाव हुआ था.
पिछले पंचायत चुनाव में तो हिंसा की अति हो गई थी. जिस दक्षिण 24 परगना जिले की ममता बनर्जी दुहाई दे रही हैं, वहां पर पिछले पंचायत चुनाव में 93% सीटों पर टीएमसी बगैर चुनाव लड़े जीत गई थी. इसका साफ मतलब यह था कि डर के मारे विरोधियों ने उम्मीदवार तक खड़े नहीं किए या खड़े नहीं कर पाए. पिछले कई सालों में पश्चिम बंगाल में कॉलेज के चुनाव तक नहीं हो पाए हैं. कई जगहों पर नगर निगम तक के चुनाव नहीं हो पाए हैं.
बीजेपी ने पूछा, ममता डर क्यों रही हैं?
ममता बनर्जी की आपत्ति पर पश्चिम बंगाल बीजेपी के उपाध्यक्ष रितेश तिवारी का कहना है कि ममता को अपनी हार दिखाई पड़ रही है इसीलिए वे पहले से ही रो रही हैं. ममता कहती हैं कि उन्होंने बहुत काम किया है, लोग उनके साथ हैं. फिर 8 चरणों में चुनाव होने को लेकर डर क्यों रही हैं?
कोलकाता में कुछ दिनों पहले मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा था कि पश्चिम बंगाल में हिंसा मुक्त चुनाव करवाना ही सबसे बड़ी प्राथमिकता और चुनौती है. चुनाव आयोग की कोशिश है कि वोटर बेखौफ बूथ तक पहुंचें और वोट दें.
वहीं टीएमसी और ममता बनर्जी को लगता है कि इस दौरान बंगाल में बेहद गर्मी पड़ रही होगी. ऐसे में चुनाव लंबे समय तक खिंचने से आम लोगों को तकलीफ होगी और ये सच भी है. ऐसे में अगर ममता इन वजहों को दिखाकर आपत्ति जताएंगी तो उन्हे वोटर्स की सहानुभूति भी मिलेगी.