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बंगाल में अब सीधे मोदी बनाम ममता हुई चुनावी जंग, क्या रंग दिखाएगी?

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव सीधे-सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच की जंग बन गया है. ममता बनाम मोदी हुए इस मुकाबले के दोनों ही पार्टियों के लिए अपने-अपने फायदे नुकसान हैं. बीजेपी ने जहां मोदी को आगे कर अपना सबसे बड़ा चुनावी अस्त्र चल दिया है, वहीं ममता ने भी सीधे पीएम को ललकार कर बता दिया है कि बंगाल में उनसे बड़ा कोई नेता नहीं है.

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सीएम ममता बनर्जी और पीएम नरेंद्र मोदी
सीएम ममता बनर्जी और पीएम नरेंद्र मोदी
स्टोरी हाइलाइट्स
  • बंगाल में टीएमसी और बीजेपी की सीधी लड़ाई
  • ममता बनाम मोदी के बीच सियासी जंग का किसे फायदा
  • बंगाल में एंटी ममता वोट किसकी तरफ जाएगा

पश्चिम बंगाल में बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस एक-दूसरे पर जिस तरह से हमलावर हैं, उससे राज्य का विधानसभा चुनाव सीधे-सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच की जंग बन गया है. ममता बनाम मोदी हुए इस मुकाबले के दोनों ही पार्टियों के लिए अपने-अपने फायदे नुकसान हैं. बीजेपी ने जहां मोदी को आगे कर अपना सबसे बड़ा चुनावी अस्त्र चल दिया है, वहीं ममता ने भी सीधे पीएम को ललकार कर बता दिया है कि उनसे कद्दावर विपक्षी नेता इस समय न तो बंगाल में है और न ही देश में.

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मोदी 20 रैली करें या 120, फर्क नहीं पड़ताः ममता
ममता बनर्जी ने शुक्रवार 5 मार्च को जब अपनी पार्टी के उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की तो उनके निशाने पर पीएम मोदी ही रहे. ममता ने यहां तक कहा कि प्रधानमंत्री बंगाल में 20 रैली करें या 120, चुनाव परिणाण टीएमसी के पक्ष में ही रहने वाला है. ममता ने ऐसा कहकर सीधे-सीधे पीएम मोदी से मुकाबले की हुंकार भरी. ये एक ऐसा कदम है जिससे विधानसभा चुनावों में बीजेपी के विपक्षी नेता बचते रहे हैं. जिन राज्यों में बीजेपी का राज्य नेतृत्व मजबूत नहीं है वहां पार्टी की कोशिश पीएम मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ने की होती है. ऐसे में पहली नजर में ममता का मोदी पर निशाना बीजेपी की मुराद पूरी करने और खुद के लिए मुश्किलें बढ़ाने वाला कदम लगता है. हालांकि जानकार मानते हैं कि बंगाल की राजनीति दूसरे राज्यों से अलग है और ममता बनाम मोदी मुकाबला दोनों ही पार्टियों के लिए फायदे का सौदा है.

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मोदी को ललकार कर ममता ने अपने वोटरों को कई सियासी संदेश दिए हैं. पहला संदेश यही कि बंगाल में उनके मुकाबले विपक्षी खेमे में कोई नहीं है और उनसे लड़ने के लिए दिल्ली से बीजेपी नेता राज्य में आ रहे हैं. इसके अलावा ममता ये भी बता रही हैं कि कैसे एक तरफ केंद्र की ताकतवर सरकार, सरकारी एजेंसियां, मंत्रियों की फौज है तो दूसरी तरफ वे अकेली मोर्चा खोले हुए हैं. मोदी-शाह की जोड़ी को वो बाहरी बताकर खुद को बंगाल अस्मिता से जोड़ने की भी भरपूर कोशिश कर रही हैं, जिसकी पुख्ता काट बीजेपी अब तक नहीं तलाश पाई है. 

ममता के सामने दो ही विकल्प- हमला या सरेंडर
बीजेपी जिस तरह से ममता, उनके कैडर और उनके परिवार पर हमले कर रही है, उसे देखते हुए बंगाल की मुख्यमंत्री के सामने दो ही विकल्प थे. या तो वे बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व पर हमला न कर सरेंडर करती दिखें या वो हमलावर रुख अपनाएं जिसके लिए वे जानी जाती हैं. दूसरे विकल्प के जोखिम जरूर हैं लेकिन राजनीति में संघर्ष कर हारना सरेंडर से हमेशा बेहतर रहता है. ये ममता की जुझारू छवि को मजबूत ही करेगा. जब मोदी के मुकाबले में केवल ममता दिखेंगी तो राज्य में बीजेपी विरोधी वोट भी लेफ्ट-कांग्रेस की बजाय सीधे-सीधे टीएमसी के खाते में जाएगा. खासतौर पर अब्बास सिद्दीकी, असदुद्दीन ओवैसी बंगाल में मुस्लिम वोटों में सेंधमारी की जो कोशिश कर रहे हैं वो ममता के इस दांव से विफल हो सकती हैं.  

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बीजेपी के लिए फायदे का सौदा रहा है ऐसा मुकाबला
बीजेपी के लिए भी मोदी बनाम विपक्ष का मुकाबला हमेशा से जीत का फॉर्मूला रहा है. केंद्र में टेस्टेड इस फॉर्मूले को बीजेपी ने राज्यों में जहां जहां अपनाया उसे सफलता मिली. दिल्ली, झारखंड, पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में जहां बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा वहां इसकी बड़ी वजह यही बताई गई कि वहां मुकाबला मोदी बनाम विपक्ष की जगह, स्थानीय बीजेपी नेतृत्व बनाम विपक्ष रहा. इसके अलावा मोदी बनाम ममता मुकाबला होने से ये बात भी साबित हो गई है कि बंगाल में ममता को टक्कर  केवल बीजेपी दे सकती है. ये राज्य में सत्ता परिवर्तन की आस लगाए वोटरों को सीधा संदेश है कि उनके लिए बीजेपी ही विकल्प है, लेफ्ट-कांग्रेस गठबंधन नहीं. पिछले चुनाव में महज तीन सीटें जीतने वाली पार्टी के लिए ये बड़ी उपलब्धि है.

राजनीतिक विश्लेषक बिश्वनाथ चक्रवर्ती कहते हैं कि अगर बीजेपी को ये विधानसभा चुनाव जीतना है तो टीएमसी के वोट शेयर में सेंध लगानी होगी. साथ ही 2019 के अपने लोकसभा चुनाव के वोट शेयर को बरकरार रखना होगा. बीजेपी ममता बनर्जी पर सीधे हमले कर संदेश दे रही है कि बंगाल में टीएमसी का विकल्प वही है ताकि एंटी ममता वोट लेफ्ट और कांग्रेस के बजाय उसके पास आएं. यही वजह है कि पीएम मोदी अपनी रैली में टीएमसी और लेफ्ट की आपसी सांठ-गांठ का जिक्र करते नजर आए.

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अस्मिता और बाहरी का दांव
कोलकाता के वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह कहते हैं कि ममता बनर्जी टीमएसी का चेहरा हैं और मुख्यमंत्री भी. टीएमसी का अपना यहां मजबूत संगठन है. ऐसे में वोटर जानते हैं कि अगर उनकी पार्टी जीती, तो मुख्यमंत्री कौन होगा.  दूसरी ओर बीजेपी में कोई मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं है. ममता के कद का नेता भी नहीं है. इसीलिए बीजेपी नरेंद्र मोदी को सामने रख रही है. इससे ममता बनर्जी को बंगाली बनाम बाहरी का कार्ड खेलने का मौका मिल गया है. इस तरह से ममता बंगाल अस्मिता का दांव चल रही हैं, जिसमें वो कामयाब भी हो सकती हैं. संतोष सिंह कहते हैं कि बीजेपी के पास मोदी का विकल्प नहीं था. उसे पीएम मोदी के नाम पर जितने वोट मिल सकते हैं उतने किसी दूसरे नेता के नाम पर नहीं.  

ऐसे जड़ें जमाई हैं बीजेपी ने
बंगाल में बीजेपी ने धीरे-धीरे अपनी जड़ जमाना शुरू किया था. साल 2011 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने कुल 294 सीटों में से 289 पर अपने उम्मीदवार खड़े किए, लेकिन उसे एक भी सीट हासिल नहीं हुई. इस चुनाव का पार्टी का वोट शेयर केवल चार फीसदी था. 2014 के लोकसभा चुनाव में उसे राज्य की 42 सीटों में से केवल दो पर जीत हासिल हुई. इस बार उसका वोट शेयर 17 फीसदी हो गया. पिछले 2016 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 10 फीसदी से कुछ अधिक वोट मिले और केवल तीन सीटें उसके हिस्से में आईं. वहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने 18 सीटें जीतीं. उसका वोट शेयर भी बढ़कर 40.64 प्रतिशत हो गया. यही वजह है कि बीजेपी को सत्ता की राह नजर आ रही है. 

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वरिष्ठ पत्रकार अरुंधति मुखर्जी कहती हैं कि बंगाल में बीजेपी जिस तरह से आक्रामक प्रचार कर रही है और ममता बनर्जी पर निशाना साध रही है. इसकी पीछे सियासी वजह यह है कि बंगाल में बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो ममता बनर्जी की 10 साल की सरकार से ऊब चुके हैं. वहीं, राज्य में बहुत सारे लोग ऐसे भी हैं, जो मोदी सरकार को पसंद नहीं करते. ये दोनों तरह के लोग कांग्रेस और वाम मोर्चे के गठबंधन के पक्ष में जा सकते हैं, लेकिन जिस तरह से ममता बनाम मोदी के बीच चुनाव होता दिखेगा तो ये उनके मन को काफी प्रभावित कर सकता है. 

इस बार वोटिंग अलग होगी

बंगाल के वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप शुक्ला कहते हैं कि बंगाल में ममता और मोदी के बीच सीधी लड़ाई में मेरे विचार में कांग्रेस और लेफ्ट के वोटर इस बार टैक्टिकल वोट करेंगे. मुसलमान ममता बनर्जी को वोट देते आए हैं, लेकिन उनका एक बड़ा हिस्सा नाराज है, क्योंकि मुसलमानों से नौकरियों और शिक्षा में बेहतरी के लिए किए गए वादे पूरे नहीं हुए. इसके बाद भी मुसलमान भी टैक्टिकल वोटिंग करेगा और बीजेपी जितनी आक्रमक होगी उतना ही टीएमसी की तरफ इनका झुकाव बढ़ेगा. 

पश्चिम बंगाल में बीजेपी में हर रोज दूसरे दलों से इतने लोग शामिल हो रहे हैं. बीजेपी के बड़े नेताओं की सभाओं में टीएमसी के बड़े नेता शामिल होते हैं तो उनकी बड़ी चर्चा होती है. ममता के मंत्री शुभेंदु अधिकारी, लक्ष्मी रतन शुक्ला और राजीब बनर्जी ने साथ छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया है. इसके जरिए बीजेपी बंगाल की सियासी रण में यह बताना चाहती हैं कि चुनावी माहौल टीएमसी के खिलाफ और बीजेपी के पक्ष में है. 

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ममता को मिल सकता है हमलों का फायदा
प्रदीप शुक्ला कहते हैं कि ममता बनर्जी की पहचान जमीनी नेता के तौर पर रही है और वे आक्रमक तेवर वाली नेता हैं. बीजेपी नेताओं के हमले से शांत बैठना उनके लिए महंगा पड़ सकता था. इसीलिए ममता ने भी जवाबी तौर पर आक्रामक तरीके से बीजेपी और पीएम मोदी पर हमले करके राजनीतिक माहौल को बदलने की कोशिश की और अपने वोटरों के सामने भी अपनी आयरन लेडी जैसी छवि पेश की. इतना ही नहीं केंद्रीय जांच एजेंसियों ने जिस तरह से ममता के परिवार के सदस्यों को निशाने पर लिया है, उसका बीजेपी को राजनीतिक नुकसान और ममता को सियासी फायदा होने की संभावना दिख रही है.  

वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह कहते हैं कि ममता ही नहीं बल्कि बीजेपी भी आक्रामक हो रही है. क्योंकि दिल्ली से उनके नेता और मंत्री लोग यहां आ रहे हैं, मगर बीजेपी का स्थानीय नेतृत्व बहुत कमजोर है. इसीलिए बीजेपी आक्रमक तरीके से हमले करके यह बताने की कोशिश कर रही है कि ममता के खिलाफ जमीन पर उसके सिवा कोई दूसरा नहीं है. वहीं, ममता अपने पुराने तेवर में दिख रही हैं, क्योंकि उनके सामने करो या मरो की स्थिति है. बंगाल में पहली बार टीएमसी को बीजेपी कांटे की टक्कर देती नजर आ रही है, लेकिन चुनावी बाजी कौन जीतेगा यह तय नहीं है. फिलहाल इनसब से बंगाल का चुनाव काफी दिलचस्प हो गया है.

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