पश्चिम बंगाल की सियासत में ग्रामीण इलाकों के हाथ में ही हमेशा सत्ता की चाबी रही है, वाम मोर्चा सरकार अगर 34 सालों तक सत्ता में बनी रही तो उसके पीछे ग्रामीण वोटरों की अहम भूमिका थी. मुख्यमंत्री और टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी भी ग्रामीण वोटरों की इस नब्ज को अच्छी तरह पहचान चुकी हैं. इसीलिए बंगाल की सियासी जंग में बीजेपी के राजनीतिक चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए ममता बनर्जी ग्रामीण वोटरों पर खास फोकस कर रही हैं और उन्हें अपने साथ साधे रखने के लिए लगातार ग्रामीण इलाकों में दस्तक दे रही हैं.
ममता बनर्जी बंगाल में सत्ता की हैट्रिक लगाने के लिए लगातार सक्रिय हैं. चुनाव में टीएमसी के प्रचार अभियान के लिए रणनीतिकार प्रशांत किशोर अपना काम कर रहे हैं, लेकिन राजनीतिक अभियान को ममता बनर्जी ने फिर से अपने हाथ में ले लिया है. वे पश्चिम बंगाल के मिजाज को ध्यान में रखकर अपने चुनावी अभियान को आगे बढ़ा रही हैं. वो एक के बाद हर रोज अलग-अलग क्षेत्रों में रैली कर रही हैं.
ममता बनर्जी ज्यादातर रैली ग्रामीण इलाके में ही कर रही हैं. हाल ही में ममता बनर्जी ने बीरभूमि, पुरुलिया और पूर्व मिदनापुर में जाकर जनसभाएं की है, जो पूरी तरह से ग्रामीण इलाके में आता है. बंगाल में लोगों से जुड़ाव मजबूत करने के लिए लगातार सक्रिय हैं. माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के इन प्रयास से पार्टी के नेताओं, कार्यकर्ताओं के बीच में आ रहे अंतर को कम करने में काफी मदद मिल सकती है. साथ ही टीएमसी नेताओं और कार्यकर्ताओं की नाराजगी को दूर करने में अहम साबित हो सकता है.
वरिष्ठ पत्रकार अनामित्रा कहते हैं कि पश्चिम बंगाल में जनता को राजनीतिक पदयात्राएं काफी लुभाती हैं, जिसका सियासी तौर पर काफी असर होता है. ममता बनर्जी इसीलिए जमीन पर सक्रिय हो गई हैं. ऐसे में वो खासकर अपने ग्रामीण इलाके की वोटों को सहेजकर रखना चाहती है, क्योंकि शहरी इलाकों के वोटों पर बीजेपी का ग्राफ बढ़ा है, लेकिन ग्रामीण इलाके में अभी भी टीएमसी का आधार है. यही वजह है कि ममता फिलहाल ग्रामीण इलाके पर ही चुनावी प्रचार का फोकस किए हुए हैं.
बता दें कि बंगाल की सियासत में वाम मोर्चा ने भूमि सुधारों और पंचायत व्यवस्था की सहायता से सत्ता के विकेंद्रीकरण के जरिए ग्रामीण इलाकों में अपनी जो पकड़ बनाई थी, जिसके सहारे करीब 34 साल तक सत्ता को अपने हाथ में रखा था. साल 2008 के पंचायत चुनावों में ग्रामीण इलाकों में पैरों तले की जमीन खिसकते ही साल 2011 विधानसभा चुनाव में वाममोर्चा का लालकिला भरभरा कर ढह गया था.
लेफ्ट के बंगाल की सत्ता से बेदखल होते ही ममता बनर्जी सबसे पहले अपने शहरी वोटों के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों पर खास मेहरबान रही हैं. ममता बनर्जी ने ऐसी तमाम सरकारी योजनाएं शुरू की, जिनके केंद्र बिंदु में ग्रामीण इलाके रहे. इनमें कन्याश्री योजना के तहत युवतियों को सालाना 25 हजार रुपए देना, सबूज साथी योजना के तहत 40 लाख छात्र-छात्राओं को मुफ्त साइकिलें देना, खाद्य साथी के तहत दो रुपए किलो चावल और गेहूं मुहैया कराना और बेरोजगारों को वित्तीय सहायता देने के लिए शुरू युवाश्री योजना शामिल है.
इसके साथ ही अपने अभियान के दौरान ममता बेहद सुनियोजित तरीके से इन योजनाओं का प्रचार भी करती रही हैं. अपनी रैलियों में वह वित्तीय तंगी के बावजूद सरकार की ओर से किए गए विकास कार्यो को गिनाती रही हैं. बंगाल की कुल 294 विधानसभा सीटों में से करीब 223 सीटें ग्रामीण या कस्बाई इलाकों की हैं. इन सीटों पर ग्रामीण मतदाता ही जीत हार तय करते हैं.
वरिष्ठ पत्रकार अनामित्रा कहते हैं कि पश्चिम बंगाल में ग्रामीण इलाके ही हमेशा सत्ता की चाबी रही है. यही वजह है कि ममता ने अपना सारा फोकस फिलहाल ग्रामीण इलाकों पर फोकस कर रखा है. ग्रामीण इलाकों में टीएमसी के वोटों का हिस्सा 50 फीसदी रहा है. खासकर दक्षिण बंगाल के ग्रामीण वोटरों ने पिछले चुनावों में टीएमसी का का खुल कर समर्थन किया था, लेकिन इस बार इसी इलाके में ममता के लिए चुनौती खड़ी है.
ममता के करीबी रहे शुभेंदु अधिकारी ने टीएमसी छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया है, जिसके चलते दक्षिण बंगाल के इलाके में टीएमसी का समीकरण गड़बड़ा गया है. यही वजह है कि बंगाल के दक्षिणी इलाकों को साधने के लिहाज से ममता को पूर्व मिदनापुर के रैली कर अपनी सियासी ताकत दिखानी पड़ी है. इतना ही नहीं उन्होंने नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का ऐलान करके शुभेंदु अधिकारी के खिलाफ मास्टरस्ट्रोक चला है.