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ममता बनर्जी ने SC-ST को टिकट और वादों दोनों में दी जगह, जानिए- कितना असर रखते हैं ये समुदाय

बंगाल विधानसभा चुनाव की सियासी जंग फतह करने के लिए ममता बनर्जी ने हर परिवार के लिए मासिक आय सुनिश्चित करने का वादा अपने घोषणा पत्र में किया है. ममता ने एससी-एसटी-ओबीसी को सलाना 12 हजार रुपये और सामान्य वर्ग के परिवार को 6 हजार रुपये देने का ऐलान किया है जबकि इसी वोटबैंक पर बीजेपी की भी नजर है. ऐसे में देखना है कि किसकी तरफ इनका झुकाव होता है.

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ममता बनर्जी
ममता बनर्जी
स्टोरी हाइलाइट्स
  • ममता ने दलितों को साधने का बड़ा दांव चला
  • बंगाल में एससी और एसटी की करीब 30% आबादी
  • बीजेपी की नजर भी बंगाल के दलितों पर टिकी हुई है

बंगाल विधानसभा चुनाव में सत्ता की हैट्रिक लगाने के लिए टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने मास्टर स्ट्रोक खेला है. टीएमसी ने बंगाल के हर परिवार के लिए मासिक आय सुनिश्चित करने का वादा अपने घोषणा पत्र में किया है. टीएमसी ने खासकर अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित और ओबीसी को साधने का बड़ा दांव चला है जबकि इसी वोटबैंक पर बीजेपी की भी नजर है. ममता ने एससी-एसटी-ओबीसी को सलाना 12 हजार रुपये और सामान्य वर्ग के परिवार को सालाना 6 हजार रुपये देने का ऐलान किया है.

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बंगाल में काफी अहम है SC-ST समुदाय

बता दें कि 2011 की जनगणना के मुताबिक बंगाल में अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या करीब 53 लाख है. ये राज्य की कुल आबादी का करीब 5.8 फीसदी है. वहीं राज्य में दलित समुदाय की जनसंख्या 2.14 करोड़ है, जो कुल आबादी का करीब 24 फीसदी हिस्सा है. इस तरह से बंगाल में अनुसूचित जनजाति और दलित समुदाय की आबादी करीब 30 फीसदी बैठती है, जो राजनीतिक तौर पर काफी अहम है.

बंगाल में अनुसूचित जनजाति की आबादी दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी, अलीपुरद्वार, दक्षिणी दिनाजपुर, पश्चिमी मिदनापुर, बांकुड़ा और पुरुलिया इलाके में है. यहां अनुसूचित जनजाति के लिए 16 सीटें सुरक्षित हैं. वहीं, दलित समुदाय राज्य की करीब 68 सीटों पर सघन रूप से फैला हुआ है. इसके अलावा भी ये दोनों समुदाय अन्य सीटों पर सियासी प्रभाव रखते हैं. इसीलिए बीजेपी और टीएमसी दोनों ही पार्टी की नजर एसटी-एसटी समुदाय के वोटों पर है. 

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टिकट बंटवारे में भी रखा ध्यान

ममता बनर्जी बंगाल में दलित और अनुसूचित जनजाति को साधने के लिए उनके लिए मासिक आय का वादा ही नहीं किया है बल्कि बड़ी संख्या में टिकट भी देकर उन्हें मैदान में उतारा है. ममता ने 79 दलित उम्मीदवारों पर दांव लगाया है, जो सुरक्षित सीटों से 11 ज्यादा हैं. ऐसे ही 17 अनुसूचित जनजाति के प्रत्याशियों को टीएमसी का टिकट दिया गया है. बंगाल में एससी और एसटी समुदाय की आबादी को देखते हुए ममता ने बड़ी तादाद में उन्हें उतारकर बीजेपी को कड़ी टक्कर देने की रणनीति अपनाई है. 

वहीं, ममता ने कहा है कि फिर से उनकी सरकार बनी तो बंगाल में सामान्य वर्ग के परिवारों को प्रति माह 500 रुपये दिए जाएंगे जबकि एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग के परिवारों को प्रति माह 1,000 रुपए दिए जाएंगे. एक तरह से एससी-एसटी और ओबीसी समुदाय को सालाना 12 हजार रुपये जबकि सामान्य वर्ग के लिए 6 हजार मिलेंगे. यह बंगाल चुनावी जंग में टीएमसी के लिए मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है.

लोकसभा चुनाव के नतीजों से लिया सबक?
दरअसल, 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी की बंगाल में बड़ी जीत के पीछे एससी और एसटी समुदाय की अहम भूमिका रही है. बीजेपी ने राज्य की 42 में से 18 सीटों पर जीत हासिल की थी, जिसे अप्रत्याशित सफलता माना गया था. इतना ही नहीं बीजेपी को करीब 40 फीसदी वोट मिले थे. इस बार के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी उन्हें अपने साथ जोड़े रखने के लिए तमाम जतन कर रही है तो टीएमसी भी उन्हें अपने पाले में जोड़ने की कवायद में जुटी है. बंगाल में बीजेपी, टीएमसी ही नहीं बल्कि दूसरी पार्टियों की नजर भी इस वोटबैंक पर है. ऐसे में देखना है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में बंगाल के दलित और अनुसूचित जनजाति के समुदायों की पहली पसंद कौन सी पार्टी बनती है. 

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