पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक सरगर्मी काफी तेज हो चुकी है. शुभेंदु अधिकारी के बीजेपी में जाने के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने गढ़ को बचाने किए के लिए नंदीग्राम से चुनावी मैदान में उतरने का ऐलान किया है. नंदीग्राम आंदोलन के जरिए ही ममता बनर्जी ने बंगाल की सत्ता पर तीस साल से काबिज लेफ्ट के दुर्ग को ध्वस्त किया था. इसके बाद से ही टीएमसी का सियासी वर्चस्व कायम है और अब ममता ने नंदीग्राम के जरिए बीजेपी से दो-दो हाथ करने का फैसला किया है.
नंदीग्राम का इलाका शुभेंदु अधिकारी का गढ़ माना जाता है, जहां टीएमसी का एक दौर में जनाधार काफी मजबूत माना जाता था. इसी इलाके के दम पर ममता एक दशक से बंगाल में काबिज हैं, लेकिन शुभेंदु अधिकारी के टीएमसी छोड़कर बीजेपी में चले जाने के बाद टीएमसी के लिए यह इलाका काफी चुनौती पूर्ण हो गया है. ऐसे में सोमवार को नंदीग्राम पहुंचकर ममता बनर्जी ने जिस तरह से शुभेंदु के गढ़ में चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. उससे बंगाल की राजनीतिक मुकाबाला काफी दिलचस्प होता नजर आ रहा है.
ममता ने कहा, 'मैं नंदीग्राम को भूली नहीं हूं. रक्त से सने उस दिन को कैसे भूलूंगी. नंदीग्राम मेरे लिए लकी है. नंदीग्राम से शुरुआत की है. हम फिर से जीतेंगे. नंदीग्राम की सभी सीटें जीतेंगे. कुछ लोग इधर-उधर कर रहे हैं. उतना चिंता करने की बात नहीं है. टीएमसी का जन्म हुआ था. उस समय वे नहीं थे. कोई कहीं भी जा ही सकते हैं. अच्छा ही किए हैं. राजनीति में तीन लोग होते हैं. लोभी, भोगी, त्यागी. किसी दिन त्यागी मां का गोद नहीं छोड़ेंगे. बीजेपी के नेता दिल्ली से बोल रहे हैं. या तो जेल या घर में रहें. बीजेपी वाशिंग मशीन और वाशिंग पाउडर है. काला होकर घुसेगा और सादा होकर निकलेगा.' इस तरह से ममता ने सुभेंदु अधिकारी पर निशाना साधा.
सीएम ममता बनर्जी भवानीपुर से विधानसभा चुनाव लड़ती थी, लेकिन इस बार उन्होंने नंदीग्राम से चुनाव लड़ने की घोषणा की. उन्होंने कहा कि वह भवानीपुर में भी अच्छा उम्मीदवार देंगी. यदि संभव हुआ तो भवानीपुर से भी चुनाव लड़ेंगी. नंदीग्राम का सियासी संग्राम काफी रोचक होने जा रहा है. इतना ही नहीं ममता ने जिस तरह से नंदीग्राम में भीड़ जुटाकर अपनी सियासी ताकत दिखाने की कोशिश है, उससे राजनीतिक मायने साफ हैं कि ममता इस इलाके को किसी भी सूरत में बीजेपी के हाथों में नहीं जाने देना चाहती हैं.
बता दें कि विधानसभा चुनाव से पहले ममता बनर्जी की नंदीग्राीम की सभा काफी खास है. यहां से शुभेंदु अधिकारी जीतते रहे हैं और अब ममता का साथ छोड़कर बीजेपी के पाले में चले गए हैं. इसके अलावा साल 2007 में जब तत्कालीन वाम मोर्चा की सरकार ने भूमि अधिग्रहण के लिए गांव वालों पर फायरिंग करवाई थी और 14 लोगों की मौत हुई थी उसके बाद यहां से व्यापक आंदोलन की शुरुआत हुई थी.
ममता बनर्जी उस समय विपक्ष की नेत्री थीं, इसीलिए आंदोलन का नेतृत्व किया था, लेकिन लोगों के विरोध प्रदर्शन के आंदोलन में शुभेंदु अधिकारी और उनके परिवार की अहम भूमिका रही है. इसी वजह से शुभेंदु यहां से लगातार जीतते भी रहे हैं. हाल में शुभेंदु अधिकारी ने यहां सभा कर ममता बनर्जी को चुनौती दी थी. इसी का जवाब ममता बनर्जी ने सोमवार दिया है. इतना ही नहीं ममता ने जिस तरह से खुद के नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का संकेत दिया है, उसके जरिए भवानात्मक तौर पर उन्होंने नंदीग्राम के लोगों से खुद को जोड़ने की कोशिश की है.
दरअसल, बंगाल के पूर्व मिदनापुर जिला स्थित नंदीग्राम का इलाका शुभेंदु अधिकारी के जाने के बाद टीएमसी के लिए काफी चुनौती पूर्ण हो गया है. शुभेंदु अधिकारी परिवार का इस इलाके की कम से कम 40 से 45 विधानसभा सीटों पर प्रभाव है और इसलिए जब तक शुभेंदु खुद छोड़ नहीं गए, मुख्यमंत्री ने उन्हें मनाने और समझाने की कोई भी कसर नहीं छोड़ी थी. ऐसे में अब उनके जाने के बाद खुद ममता इस इलाके में पार्टी के सियासी आधार को बचाने में जुट गई हैं. इसीलिए नंदीग्राम के सियासी रण से ममता ने बीजेपी से दो-दो हाथ करने के खुली चुनौती दे दी है.