अररिया में लोगों को दिन-रात यही बात सता रही है कि कहीं बाढ़ के पानी में उनका घर न बह जाए. वे घर को बचाने के लिए उसे ही तोड़ रहे हैं ताकि किसी सुरक्षित स्थान पर शरण ले सकें. एक बार फिर वैसा ही नजारा देखने को मिल रहा है. लोग फिर अपने घरों को तोड़ रहे हैं. इसके बाद वे किसी ऊंचे स्थान पर जाकर सुरक्षित रहने का प्रयास करेंगे. (रिपोर्टः अमरेंद्र कुमार सिंह)
2017 में अररिया में भीषण बाढ़ आई थी. परमान नदी में तेजी से कटान हो रहा था. घर में घुसे पानी से बचने के लिए कुछ लोग ऊंचे स्थानों पर शरण ले रहे थे. तभी नदी के मुहाने पर बसा किसान जितेन्द्र मंडल और मोहम्मद गनी का घर नदी में बह गया. प्रशासन से 5 डिसमल जमीन के साथ मुआवजे का भी आश्वासन मिला. लेकिन मुआवजा नहीं मिला.
बड़ी मुश्किल से जितेंद्र ने कर्ज आदि का सहारा लेकर पक्का घर बनाया मगर बदनसीबी ने उनका साथ नहीं छोड़ा. फिर एक बार नदी का कटान शुरू हुआ और पानी ने आंगन तक दस्तक दे दी. अब रात भर पूरे परिवार को जागना पड़ता है. जितेन्द्र को लगता है कि कहीं ऐसा ना हो कि किसी दिन घर के साथ-साथ वे परिजन भी नदी में विलीन हो जाएं.
अब जितेन्द्र घर को ही तोड़ रहे हैं ताकि किसी और जगह शरण ले सकें. इस संबंध में पीड़ित जितेंद्र ने बताया कि 2017 की बाढ़ में भी मेरा एवं मेरे पड़ोसी मोहम्मद गनी का घर नदी में डूब कर नष्ट हो गया था. सीओ द्वारा न केवल मुआवजा देने की बात कही गई थी बल्कि उन दोनों को 5-5 डिसमिल जमीन भी देने का आश्वासन दिया था. मगर आज तक प्रशासन ने उन लोगों की सुध ही नहीं ली.
जितेंद्र ने कहा कि कल से फिर पानी मकान को तोड़ रहा है. रात में कब किस परिस्थिति में घर सहित नदी में समा जाएंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि घर तोड़ने के बाद कहां रहेंगे इस बात को लेकर भी वे चिंतित हैं.