बिहार विधानसभा चुनाव में जहां एक ओर कई सीटों पर धन और बाहुबल की लड़ाई है, वहीं कई प्रत्याशी ऐसे भी हैं जिनकी सादगी बेमिसाल है. अब लखीसराय सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में उतरे भरत महतो को ही ले लीजिए. इनके पांव में चप्पल यदा कदा ही देखने को मिलती है. मोबाइल भी इनके पास नहीं. हां, घर में एक छोटा मोबाइल है जिस पर बाहर मजदूरी करने गए इनके बेटे कॉल करके हाल-चाल पूछते रहते हैं. नामांकन के वक्त शपथपत्र में इन्होंने अपने साढू का नंबर दे रखा है. वजह ये है कि घर के मोबाइल में बैलेंस रहेगा या नहीं, इसकी कोई गारंटी नहीं.
धरतीपकड़ से कम नहीं हैं
72 वर्षीय भरत महतो किसी धरतीपकड़ से कम नहीं. अब तक दर्जनों बार ये चुनाव लड़ चुके हैं. लेकिन अब तक सभी चुनाव इन्होंने पंचायत स्तर के लड़े हैं. ये पहला मौका है जब वह विधानसभा चुनाव में कूदे हैं.
महतो ने मीडिया से हुई बातचीत में बताया कि अब तक वो कितने चुनाव लड़ चुके हैं, उन्हें खुद नहीं याद. कभी उन्होंने उसका हिसाब किताब रखने का सोचा भी नहीं. इतना याद है कि प्रधान से लेकर वार्ड, जिला परिषद, पंचायत समिति, पैक्स अध्यक्ष जैसे हर चुनाव में किस्मत आजमा चुके हैं लेकिन हर बार हार ही मिली.
पैसा कहां है जो जीतेंगे
मीडिया के सामने महतो ये कहने में जरा भी नहीं हिचकते कि हमारे पास पैसा कहां है जो हम चुनाव जीतेंगे. चुनाव वो जीतता है जिसके पास पैसा होता है. हम तो अपनी बेटी की शादी भी कर्ज लेकर किए हैं जो आज तक चुका रहे हैं. दो बेटे बाहर किसी फैक्ट्री में काम करते हैं. उन लोगों ने पैसा भेजा है तब तो नामांकन कर पाए हैं. जीतना तो इसमें भी नहीं है. लेकिन चुनाव तो हम लड़ेंगे ही.