पथरीली कच्ची सड़कों पर पहाड़ी सरीखी जमीन पर बसे इस गांव में करीब 60 परिवारों के 450 सदस्य रहते हैं. यहां के पानी में कुछ रासायनिक गड़बड़ियां हैं. नतीजतन पूरा गांव ही ऐसी बीमारियों की चपेट में है, जिससे उबरने में शायद पीढि़यां गुजर जाएं. सबकुछ जानते हुए भी ये उसी जहर रूपी पानी को पीते हैं क्योंकि इनके पास कुछ और विकल्प भी नहीं. ये स्याह हकीकत है बिहार के गया जिले से करीब 60 किमी दूर स्थित भूपनगर गांव की.
चुनाव यात्रा पर निकली दी लल्लनटॉप की टीम ने इस गांव की ग्राउंड रिएलिटी को देखा. सबकुछ हैरान करने वाला था. कैसे शासन और प्रशासन सबकुछ जानते हुए भी आंखें मूंदे बैठ सकता है, ये बात टीम को हैरान कर रही थी. गया जिले से लेकर मंडल तक, राज्यतस्तरीय अधिकारियों से लेकर शासन के मंत्री-विधायक और सांसद तक इस गांव के इस गांव के लोगों के लिए अभिशाप बने फ्लोरोसिस बीमारी के बारे में जानते हैं. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ हाइजीन एंड पब्लिक हेल्थ की टीम तक यहां सर्वे कर चुकी हैं.
पानी में है आर्सेनिक व फ्लोराइड
इस गांव में हर कोई फ्लोरोसिस नामक बीमारी से ग्रसित है. बच्चे, बूढ़े, जवान और महिलाएं, सब फ्लोरोसिस से प्रभावित हैं. इस बीमारी की वजह है यहां के भूजल में मौजूद फ्लोराइड और आर्सेनिक की अधिकता है. बीमारी के चलते कुछ शारीरिक रूप से दिव्यांग हो चुके हैं तो कुछ की हड्डियां टेढ़ी हैं. लगभग सभी के दांत पीले हैं और तेजी से झड़ रहे हैं. हड्डियों में ऐंठन की समस्या आम है. कोई भी बचा नहीं है. किसी में बीमारी का असर ज्यादा है तो किसी में कम लेकिन सब के सब प्रभावित हैं.
खराब बड़ा है वाटर ट्रीटमेंट प्लांट
इस गांव में स्थित राजकीय प्राथमिक विद्यालय के एकमात्र अध्यापक जितेन्द्र कुमार ने बताया कि गांव की दुश्वारियों पर लगातार खबरें छपने के बाद कुछ साल पहले यहां वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगा. लेकिन ये भी काफी वक्त से हाथी का दांत साबित हो रहा है. इस प्लांट के लिए जरूरी केमिकल खरीद का टेंडर नहीं हो रहा. मशीनों को मरम्मत की जरूरत भी है. प्लांट से पानी न मिलने के कारण सभी पहले की तरह हैंडपम्प का पानी पीने को मजबूर हैं, जो यहां के लोगों के लिए जहर से कम नहीं.
कोई और ऑप्शन ही नहीं
गांव के निवासी सुरेश यादव कहते हैं कि यदि हैंडपम्प का पानी नहीं पीएंगे तो क्या पीएंगे? दूसरा कोई विकल्प भी तो नहीं हैं. यहां सड़क, पानी की दिक्कत के बारे में सबको पता है. लेकिन होता कुछ नहीं है. गांव के प्रधान ने बताया कि उनके गांव में ज्यादातर अनुसूचित जाति के लोग रहते हैं जो बेहद गरीब हैं. गांव में स्वास्थ्य सुविधा का घोर अभाव है. कोई बीमार पड़े या प्रसव का मामला हो तो खटिया पर लादकर उसे दूर के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाना पड़ता है.
घर-घर में दिव्यांग
दी लल्लनटॉप की टीम ने यहां कई घरों में देखा तो पाया बुजुर्ग से लेकर महिलाएं तक दिव्यांगता की शिकार हैं. ये दिव्यांगता कुदरती नहीं है. सबकी एक ही वजह है फ्लोरोसिस जो यहां के जहरीले पानी की वजह से हुई. एक महिला अब अपने पैरों पर चल भी नहीं सकती. किशारों के दांत भी झड़ रहे हैं बुरी हालत में हैं. बिहार में चुनावी दौर में भी इस गांव की सुधि लेने वाला कोई नहीं है.