बिहार विधानसभा चुनाव 2020 की तैयारियां जोरों पर चल रही हैं. सीधा मुकाबला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) और महागठबंधन के बीच माना जा रहा है. बिहार में एनडीए का नेतृत्व बिहार के सीएम नीतीश कुमार कर रहे हैं. वहीं, महागठबंधन का नेतृत्व लालू यादव के बेटे और बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव कर रहे हैं. हालांकि बिहार चुनाव में कई छोटे दल भी अपना दम दिखाने को तैयार हैं. ऐसे पांच दल मैदान में हैं. जो बिहार की राजनीति में अपनी जोरदार मौजूदगी दर्ज करवा चुके हैं. ये दल राजनीति की हवा बदल सकते हैं.
इनमें राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के अध्यक्ष जीतन राम मांझी, जन अधिकार पार्टी के मुखिया और मधेपुरा के पूर्व सांसद पप्पू यादव, विकासशील इंसान पार्टी के अध्यक्ष सन ऑफ मल्लाह के नाम से फेमस मुकेश सहनी और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल-मुस्लिमीन (AIMIM) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी का नाम शामिल हैं. इन सभी पार्टियों की तैयारियों को देखकर माना जा सकता है कि यह छोटे दल भी बड़े दलों के लिए सरदर्द बन सकते हैं.
उपेंद्र कुशवाहा - सबसे पहले बात रालोसपा के मुखिया उपेंद्र कुशवाहा की करते हैं. 2014 आम चुनाव में कुशवाहा एनडीए के साथ थे. तब काराकट सीट से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे. मोदी सरकार में मंत्री बने. दिसंबर 2018 में सीट बंटवारे को लेकर अनबन हुई. 2019 लोकसभा चुनाव से पहले उनकी पार्टी एनडीए से बाहर हो गई. कुशवाहा राजद के नेतृत्व वाली महागठबंधन में शामिल हो गए. तब महागठबंधन में राजद के साथ कांग्रेस, रालोसपा, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) थे. 2019 के चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा दो सीटों पर लड़े. लेकिन दोनों हार गए. उपेंद्र कुशवाहा कोइरी जाति से आते हैं. जिनकी जनसंख्या बिहार के कुल आबादी का 8 प्रतिशत है. माना जा रहा है बिहार विधानसभा चुनाव में भी वो महागठबंधन के साथ होंगे. तेजस्वी को सीएम बनाने के लिए जोर लगाएंगे.
जीतन राम मांझी- जीतन राम मांझी बिहार के सीएम रह चुके हैं. 1980 से लगातार चुनाव जीतकर विधानसभा में अपनी सीट का नेतृत्व करते रहे हैं. मांझी अनुसूचित जाति से आते हैं. वो नीतीश सरकार में अनुसूचित जाति और जनजाति मंत्री भी रह चुके हैं. मांझी पहली बार चर्चा में 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद आए थे. तब 2014 चुनाव में हार के बाद नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था. जीतनराम मांझी को बिहार का मुख्यमंत्री बना दिया गया था. हालांकि बाद में जब नीतीश ने उन्हें पद से हटने को कहा, तब उन्होंने मना कर दिया. फरवरी 2015 में फ्लोर टेस्ट में मांझी बहुमत साबित नहीं कर पाए. पद छोड़ना पड़ा. मांझी ने 2015 में ही हम पार्टी का गठन किया. 2018 में वो महागठबंधन में गए. 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई. पिछले महीने वो महागठबंधन छोड़कर एनडीए में शामिल हो गए हैं.
पप्पू यादव- जन अधिकार पार्टी के मुखिया राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव पांच बार सांसद रह चुके हैं. वो 1991, 1996, 1999, 2004 और 2014 में सांसद चुने गए थे. लेकिन साल 2019 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इससे पहले 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी 40 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. लेकिन एक भी सीट नहीं जीत पाई थी. उनकी पार्टी को तब सिर्फ 2 फीसदी वोट मिला था. इस बार के चुनाव में भी उनकी पार्टी अकेले ही चुनाव लड़ सकती है. क्योंकि पप्पू यादव न तो एनडीए के और न ही महागठबंधन के करीबी हैं.
मुकेश सहनी- बॉलीवुड में बतौर सेट डिजाइनर काम कर चुके मुकेश सहनी बिहार की राजनीति में जाना-पहचाना नाम बन चुके हैं. सहनी दरभंगा जिले के सुपौल गांव के हैं. वो गांव छोड़कर मुंबई भाग गए थे. वहीं नाम और पहचान बनाई. वो मशहूर फिल्म देवदास का सेट बना चुके हैं. वो 2014 में बिहार वापस आए. तब के लोकसभा चुनाव में उन्होंने बीजेपी के लिए कैंपेन किया था. 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी वो बीजेपी के लिए प्रचार करते दिखे थे. 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने खुद की पार्टी बना ली. नाम रखा विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी). पार्टी 3 सीटों पर चुनाव लड़ी. लेकिन कहीं भी जीत नहीं मिली. सन ऑफ मल्लाह के नाम से मशहूर सहनी निषाद जाति से आते हैं.
असदुद्दीन ओवैसी- ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल-मुस्लिमीन के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी भी बिहार चुनाव में अपनी किस्मत आजमाएंगे. ओवैसी की नज़र मुस्लिम वोट बैंक पर है. बिहार में मुसलमानों की जनसंख्या कुल आबादी का 16.9 फीसदी है. बात चाहे 2014 के लोकसभा चुनाव की करें या फिर 2019 के चुनाव की. दोनों मौके पर मुसलमानों का वोट राजद, कांग्रेस और जदयू के बीच बंट गया था. रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा पर भी मुसलमानों ने भरोसा जताया था. अक्टूबर 2019 में उपचुनाव जीतकर एआईएमआईएम ने बिहार की राजनीति में एंट्री मारी थी. तब किशनगंज से कमरूल होडा ने बीजेपी की स्वीटी सिंह को हराया था. बिहार की राजनीति में एआईएमआईएम की एंट्री से राजद और कांग्रेस को बड़ा नुकसान होने की संभावना जताई जा रही है.