जेपी आंदोलन जिससे खफा होकर तत्कालीन केंद्र सरकार ने देश में इमरजेंसी लागू कर दी थी. इस आंदोलन की शुरुआत मधुबनी से हुई थी. जेपी सेनानी बताते हैं कि मधुबनी के व्हटसन स्कूल के मैदान में जेपी सेनानी और कांग्रेसियों के बीच घंटों पत्थरबाजी हुई थी. कई बड़े नेताओं को रेलवे गोदाम में घंटों तक छुपकर रहना पड़ा था. जेपी एक ऐसा नाम था, जिसके खाते में भारत की दूसरी सबसे बड़ी क्रांति का क्रेडिट जाता है. बिहार की धरती पर पले-बढ़े जेपी यानी डॉ. जयप्रकाश नारायण ने तत्कालीन इंदिरा सरकार के विरुद्ध ऐसा बिगुल फूंका कि बिहार और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का सफाया हो गया था. (इनपुट- अभिषेक कुमार झा)
छात्र नौजवान सभी सड़कों पर उतर आए. केंद्र सरकार ने आपातकाल की घोषणा कर दी. हजारों लाखों आंदोलनकारियों को मीसा जैसे कानून का उपयोग करते हुए सलाखों के पीछे धकेल दिया गया. जिसमें मधुबनी जिले के भी सैकड़ों युवा शामिल थे. इस आंदोलन से निकले कई नेता आज प्रदेश एवं केंद्र की राजनीति में हैं. उन्हीं नेताओं में शामिल हैं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव और सुशील कुमार मोदी. इस आंदोलन की पहली आग मधुबनी में लगी थी.
सूरजनारायण सिंह की मौत के बाद लोग सड़कों पर उतरने लगे. बिहार जलने लगा, तो बिहार के मुख्यमंत्री बदल दिए गए और केदार पांडे की जगह अब्दुल गफूर को मुख्यमंत्री बनाया गया. अब्दुल गफूर कांग्रेस के वफादार नेताओं में से एक थे. वे स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कई बार जेल गए थे.
अब्दुल गफूर उस वक्त किसी सदन के सदस्य नहीं थे, इसलिए मधुबनी विधानसभा को खाली कराकर अब्दुल गफूर को कांग्रेस कैंडिडेट बनाया गया, जबकि संयुक्त विपक्ष की ओर से सूरज नारायण सिंह की पत्नी चंद्रकला को प्रत्याशी बनाया गया था. बात प्रतिष्ठा की थी इसलिए पूरे बिहार की राजनीति मधुबनी में केंद्रित थी.
एक तरफ कांग्रेस की बागडोर तत्कालीन बिहार के कद्दावर नेता ललित नारायण मिश्रा ने संभाल रखी थी, तो वहीं दूसरी ओर कर्पूरी ठाकुर संयुक्त विपक्ष का नेतृत्व कर रहे थे. उस समय जेपी आंदोलन में सक्रिय रहे जेपी सेनानी हनुमान प्रसाद ने बताया कर्पूरी ठाकुर ने ऐलान कर रखा था कि यदि चुनाव में धांधली हुई तो कलेक्ट्रेट को जला दिया जाएगा.
इसका नतीजा हुआ कि कर्पूरी ठाकुर को गिरफ्तार कर लिया गया. हनुमान प्रसाद ने बताया कि व्हटसन स्कूल में प्रोग्राम था, जहां कांग्रेस कार्यकर्ताओं और जेपी सेनानियों के बीच घंटों पत्थरबाजी हुई. कई बड़े नेताओं को रेलवे के गोदाम में छुपकर रहना पड़ा था. उन्होंने कहा, हालांकि चुनाव का नतीजा आया, जिसमें अब्दुल गफूर चुनाव जीत गए.