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Madhubani: यहां हुआ था राम सीता का मिलन... अनेक कहानियां जुड़ी हैं, बिहार के मधुबनी से

यहां हुआ था राम सीता का मिलन (फोटो आजतक)
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मर्यादा पुरुषोत्तम राम और मां जानकी के विवाह की कहानी जिस पुष्प वाटिका से शुरू हुई थी, वो बाग तराग बिहार के प्रमुख जिले मधुबनी में है. मधुबनी वैसे तो अपने स्वादिष्ट व्यंजन और मखाने के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन इसके अलावा इस जिले का बड़ा ही धार्मिक इतिहास भी है. ये इतिहास रामायण से जुड़ा है.

(इनपुट- अभिषेक कुमार झा)

यहां हुआ था राम सीता का मिलन (फोटो आजतक)
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मधुबनी के हरलाखी प्रखंड मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूर बसा एक छोटा सा गांव फुलहर, जो त्रेतायुग युग में भगवान राम और सीता के प्रथम मिलन का साक्षी रहा है. यहीं राष्ट्रीय राजमार्ग 104 से सटा एक प्राचीन सरोवर (तालाब) भी है, जिसको बाग तराग कहा जाता है. 

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इस सरोवर के सौंदर्य के संबंध में तुलसी कृत रामायण में भी जिक्र है. रामायण के बाल कांड के दोहा 227 में लिखा है "बागु तारागु बिलोकि प्रभु हरषे, बंधु समेत परम रम्य आराम यहु, जो राम ही सुख देत"  इसका अर्थ है कि जब दोनों भाई राम और लक्ष्मण विश्वामित्र आश्रम विशौल में ठहरे हुए थे और वे गुरु के लिए फूल तोड़ने के लिए वाटिका गए, तो वहां जनक नंदनी सीता भी थी. 

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यही वह स्थान है जहां पर दोनों का मिलन हुआ. सीता इस वाटिका से अपने इष्टदेव की पूजा करने के लिए फूल तोड़ने आती थीं. इसी प्रखंड में रामायणकालीन एक और ऐतिहासिक स्थान है. विश्वामित्र आश्रम विशौल. कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना मुनि विश्वामित्र ने की थी. इसके पास ही एक और मंदिर है कलना स्थान, जहां विवाह पंचमी के दौरान अयोध्या से आये बाराती रात्रि विश्राम करते हैं. रात्रि विश्राम के उपरांत बाराती जनकपुर के लिए प्रस्थान करते हैं. 

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मधुबनी के रहिका प्रखंड स्थित कपिलेश्वर स्थान को कपिल मुनि के नाम से जाना जाता है. कहते हैं इस मंदिर की स्थापना कपिल मुनि ने की थी. 52 एकड़ में फैला यह मंदिर एनएच 105 के किनारे है. आज भी हजारों लाखों लोग इस आश्रम में जल चढ़ाने आते हैं.  मधुबनी से सटा अहिल्या स्थान भी रामायणकालीन इतिहास का हिस्सा है. यह वही जगह है जहां गौतम मुनि के श्राप से ग्रसित अहिल्या को भगवान राम ने मुक्ति दिलाई थी.

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मधुबनी के उच्चैठ में उच्चैठ वासिनी का मंदिर है. कहते हैं यह वही मंदिर है, जहां कवि कालिदास को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. इसी मंदिर के बगल में कालिदास का डीह है. जहां उनकी स्मृति आज भी मौजूद हैं. इस मंदिर को रामायण सर्किट से जोड़ा गया है. 

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मिथिला और मधुबनी का जिक्र आते ही विद्यापति को याद किये बिना यह अधूरा प्रतीत होता है. जिले के बिस्फी प्रखंड में विद्यापति का जन्म हुआ था. विद्यापति ने संस्कृत बांग्ला और मैथिलि में कई रचना की. कहते हैं भगवान शिव विद्यापति के यहां नौकर बनकर रहे थे और जब वे वापस कैलाश लौटे तो विद्यापति यह वियोग बर्दाश्त नहीं कर पाए, भगवान शिव की दर दर तलाश करते हुए प्राण त्याग दिए.

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