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बिहार विधानसभा चुनाव

Banka: बिहार के इस गांव में बनती है चांदी की मछली, नदी पार कर जाना पड़ता है यहां

बिहार के मनिया गांव में मिलती है चांदी की मछली
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बिहार में चुनावी दौर चल रहा है इस बीच नेता अपने वोटरों को लुभाने के तमाम वादे करते हैं लेकिन चुनाव जीतने के बाद सब भूल जाते हैं. सरकार की अनदेखी के कारण राज्य में आज कई ऐसे लघु उद्योग बंद होने के कगार पर आ चुके हैं. ऐसी ही कहानी बांका के मनिया गांव की हैं. बिहार के बांका जिले के मनिया गांव में चांदी की मछली बनाई जाती है. 

बिहार के मनिया गांव में मिलती है चांदी की मछली.
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यहां के कारीगर श्याम सुंदर का कहना है कि एक महीने में करीब 12 चांदी की मछलियां बनाई जाती हैं. लेकिन हर महीने मछलियों का ऑर्डर नहीं मिलता, पिछले कई सालों से काम भी नहीं बढ़ा है. वहीं एक अन्य कारीगर जय कुमार यादव ने बताया कि मछली बनाने के लिए भागलपुर से तारपत्र लाया जाता है जिससे चांदी की मछली बनाई जाती है. एक किलो मछली बनाने में लगभग आठ से दस दिन लगता है. इसके बदले में महाजन 200 से 250 रुपये देता है.

बिहार के मनिया गांव में मिलती है चांदी की मछली.
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शादी विवाह और फंक्शन में होता है इस्तेमाल

चांदी की मछली बनाने वाले कारीगर टंकू कुमार ने बताया कि इसका इस्तेमाल गिफ्ट आईटम में किया जाता है. शादी विवाह और तमाम फंक्शन में इसका इस्तेमाल किया जाता है. शादी के दिनों में इसकी डिमांड बढ़ जाती है. बिहार में केवल मनिया गांव के लोग ही इस कला को जानते हैं. उन्होंने कहा कि अगर ये काम वे खुद करें तो उन्हें इस लघु उद्योग में दोगुना ज्यादा पैसा मिलेगा, लेकिन पूंजी के अभाव में वे इस काम को खुद नहीं कर पाते. इसलिए उन्हें महाजन द्वारा दी गई मजदूरी में ही गुजारा करना पड़ता है.

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बिहार के मनिया गांव में मिलती है चांदी की मछली.
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बैंक का काम मात्र पेपर वर्क तक ही सीमित

टंकू कुमार आगे बताते हैं कि सरकार की किसी भी योजनाओं का लाभ ग्रामीणों तक नहीं पहुंच पाता है. उनका कहना है कि उन्होंने कई बार बैंक के चक्कर लगाये लेकिन बैंक का काम मात्र पेपर वर्क तक ही सीमित रह गया है. किसी न किसी वजह से बैंक की ओर से हमें पैसे देने से मना कर दिया जाता है. इसलिए हम आज तक अपनी आजीविका चलाने के लिए महाजन पर आश्रित रहते हैं.
 

बिहार के मनिया गांव में मिलती है चांदी की मछली.
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गांव जाने के लिए नदी को पार करना पड़ता है. यहां के निवासियों का कहना है कि बांका जिले से हमारे गांव तक आने-जाने के लिए सिर्फ एकमात्र नदी का सहारा है. नदी पार करके ही हम अपने गांव से बांका जिले तक आ जा सकते हैं. यहां न तो सरकार द्वारा बनाई गई सड़क है और ना कोई साधन. इसलिए हम आमजन से खुद को अलग महसूस करते हैं. ये बोलते हुए ग्रामीण की आंखें नम हो गईं. उनका कहना है कि अगर ऐसे ही हालात रहे तो जल्द ही ये काम और हमारी रोजी रोटी खत्म हो जाएगी.

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