बिहार विधानसभा चुनाव की सियासी रणभूमि में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी मंगलवार को एंट्री मार दी. बीजेपी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के बाद योगी तीसरे सबसे कद्दावर नेता बनकर उभरे हैं. यही वजह है कि पार्टी सीएम योगी की उत्तर प्रदेश से सटे हुए बिहार के इलाकों वाली सीटों पर ज्यादा से ज्यादा रैलियां करा रही है. योगी को लेकर बीजेपी का फोकस खासकर उन सीटों पर ज्यादा है, जहां पर राजपूत मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहली रैली कैमूर जिले की रामगढ़ सीट पर हुई. यहां पर आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह छह बार विधायक रह चुके हैं. इस बार आरजेडी से जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह मैदान में हैं, जिनका मुकाबला बीजेपी के मौजूदा विधायक अशोक सिंह से है. बसपा की ओर से यहां से अंबिका सिंह प्रत्याशी हैं.
रामगढ़ के बाद योगी अरवल विधानसभा सीट पर बीजेपी के दीपक शर्मा के पक्ष में प्रचार करेंगे. इस सीट पर दीपक शर्मा का मुकाबला माले के महानंदा प्रसाद और आरएलएसपी के सुभाष चंद यादव से है. 2015 में आरजेडी के रविंद्र सिंह ने यहां से जीत दर्ज की थी, लेकिन इस बार यह सीट माले के खाते में चली गई है. अरवल की पहचान कभी नक्सलवाद, उग्रवाद और नरसंहार की खबरों से ज्यादा होती थी. सोन नदी के किनारे बसे इस इलाके में यूपी का काफी राजनीतिक प्रभाव है. यही वजह है बीजेपी ने सीएम योगी की रैली के लिए माहौल बनाने की कवायद की है.
सीएम योगी की तीसरी रैली रोहतास जिले के काराकाट विधानसभा सीट पर होगी, यह राजपूत बहुल सीट मानी जाती है. यहां से बीजेपी के राजेश्वर राय मैदान में हैं, जिनके खिलाफ सीपीआई माले के अरुण सिंह और आरएलएसपी से मालती सिंह चुनाव लड़ रहे हैं. यह सीट भी यूपी के लगी होने के साथ-साथ राजपूत बहुल मानी जाती है.
यूपी से सटी हुई सीटों पर योगी का प्रचार
बता दें कि यूपी के देवरिया से लेकर कुशीनगर तक सीमा पार बिहार के सिवान, छपरा, गोपालगंज, पश्चिमी चंपारण जैसे जिले गोरखपुर से कई मामलों में जुड़े हुए हैं. सीमावर्ती बिहार के छात्र गोरखपुर में पढ़ाई करते हैं तो वहां के लोगों के लिए इलाज और कारोबार का भी बड़ा केंद्र गोरखपुर ही है. इसके अलावा गोरक्षा पीठ से भी लोगों का आध्यात्मिक जुड़ाव रहा है.
माना जाता है कि इन कारणों से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का बिहार के इन इलाकों में बड़ा प्रभाव है. इसके अलावा उनकी प्रखर हिंदुत्ववादी छवि को भी बीजेपी बिहार की राजनीति में कैश कराना चाहती है.
गुजरात से लेकर कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और दिल्ली के विधानसभा चुनाव में मोदी-शाह के बाद सबसे ज्यादा रैलियां यूपी के सीएम योगी ने ही की थीं. कर्नाटक और त्रिपुरा में नाथ संप्रदाय के वोटरों को लुभाने के लिए बीजेपी ने सीएम योगी का सहारा लिया था. देखना है कि बिहार में सीएम योगी के जरिए कमल खिलाने की बीजेपी की रणनीति कितनी कारगर रहती है?