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बिहार: पूर्व सीएम के बेटों के सामने अपने पिता की विरासत बचाए रखने की चुनौती 

बिहार की सत्ता की कमान संभाल चुके पूर्व मुख्यमंत्रियों के बेटे भी सियासी ताल ठोकते नजर आ रहे हैं. ऐसे में इनके सामने अपने पिता की राजनीतिक विरासत बचाने की चुनौती है. जगन्नाथ मिश्रा से लेकर लालू यादव और दरोगा प्रसाद राय जैसे नेताओं के वारिस किस्मत आजमाने के लिए सियासी समीकरण बनाने में जुटे हैं.

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तेजस्वी यादव और तेजप्रताप यादव
तेजस्वी यादव और तेजप्रताप यादव
स्टोरी हाइलाइट्स
  • लालू यादव की सियासी विरासत उनके बेटे के कंधों पर
  • दरोगा प्रसाद राय की विरासत चंद्रिका राय के हाथों में
  • जगन्नाथ मिश्रा के बेटे नीतीश मिश्रा बीजेपी से लड़ेंगे

बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी तपिश बढ़ गई है. सूबे की सत्ता की कमान संभाल चुके पूर्व मुख्यमंत्रियों के बेटे भी सियासी ताल ठोकते नजर आ रहे हैं. ऐसे में इनके सामने अपने पिता की राजनीतिक विरासत बचाने की चुनौती है. जगन्नाथ मिश्रा से लेकर लालू यादव और दरोगा प्रसाद राय जैसे नेताओं के वारिस किस्मत आजमाने के लिए सियासी समीकरण बनाने में जुटे हैं. ऐसे में विरासत में सियासत संभालने वाले नेताओं का भविष्य टिका हुआ है. 

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बिहार में इस बार सियासी लड़ाई काफी अहम होती जा रही है. इस बार सबकी नजर पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव और राबड़ी देवी के बेटे तेजस्वी यादव और तेजप्रताप यादव पर है, क्योंकि पिता जेल में होने से इन्हें खुद के साथ-साथ पार्टी को भी जिताने की चुनौती है. वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री दारोगा प्रसाद राय के बेटे पूर्व मंत्री चंद्रिका राय आरजेडी छोड़कर नीतीश कुमार का हाथ थाम चुके हैं. साथ ही पूर्व सीएम जगन्नाथ मिश्रा के बेटे नीतीश मिश्रा एक बार फिर बीजेपी से अपने पिता की राजनीतिक विरासत को बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. 

तेजस्वी की असल परीक्षा
आरजेडी प्रमुख लालू यादव के जेल जाने के बाद से उनकी राजनीतिक विरासत छोटे बेटे तेजस्वी यादव के कंधे पर है. तेजस्वी वैशाली जिले की अपनी परंपरागत सीट राघोपुर सीट से विधायक हैं. यह वह सीट है, जहां से लालू यादव और राबड़ी देवी जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. 2015 के विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार के सहारे बीजेपी के सतीश कुमार को शिकस्त देकर सदन पहुंचे थे, जिसके बाद सूबे के उपमुख्यमंत्री भी रहे. 

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हालांकि, इस बार तेजस्वी यादव के लिए 2015 की तरह सियासी राह आसान नहीं रहने वाली है. नीतीश एक बार फिर एनडीए की अगुवाई बिहार में कर रहे हैं. एनडीए में यह सीट बीजेपी लड़ती रही है. 2010 के चुनाव में राघोपुर सीट पर लालू यादव की पत्नी और पूर्व सीएम राबड़ी देवी को बीजेपी के सतीश कुमार ने हराया था. इस बार फिर वह बीजेपी से प्रमुख दावेदार माने जा रहे हैं. ऐसे में तेजस्वी यादव के लिए राघोपुर सीट पर एनडीए के चक्रव्यूह को तोड़ना बड़ी चुनौती होगी? 

तेज की जंग आसान नहीं है
लालू यादव के बड़े बेटे पूर्व मंत्री तेज प्रताप यादव महुआ सीट से विधायक हैं. तेज प्रताप भी जेडीयू के बैसाखी के सहारे विधानसभा पहुंचने में सफल रहे थे. 2015 में उन्होंने हिंदुस्तान आवाम मोर्चा के उम्मीदवार रवींद्र राय को शिकस्त दी थी. रवींद्र राय महुआ सीट से आरजेडी विधायक रह चुके हैं, लेकिन 2015 में तेज प्रताप को पार्टी ने उतारा था. इस सीट पर चंद्रिका राय की भी नजर है और माना जा रहा है कि तेज प्रताप के खिलाफ जेडीयू से ऐश्वर्या राय उम्मीदवार बन सकती हैं. ऐसे में तेज प्रताप यह सीट छोड़कर दूसरी सीट तलाश रहे हैं. 

चंद्रिका राय को घर से चुनौती
बिहार की सियासत में पूर्व मुख्यमंत्री दारोगा प्रसाद राय की अपनी अहमियत थी. कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे दारोगा प्रसाद राय परसा सीट पर सात बार जीत दर्ज करने में कामयाब रहे थे. दरोगा प्रसाद के निधन के बाद उनकी पत्नी प्रभावती कांग्रेस के टिकट पर यहां से जीतने में सफल रही थीं और बाद में उनके बेटे चंद्रिका राय ने विरासत संभाली. वो कांग्रेस, आरजेडी और जेडीयू से विधायक बनने में कामयाब रहे हैं, लेकिन 2005-10 में दो बार चुनाव हार गए थे. 

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साल 2015 में आरजेडी के टिकट पर जीत दर्ज की थी, लेकिन लालू परिवार से रिश्ते में खटास आ जाने के बाद उन्होंने जेडीयू का दामन थाम लिया है. माना जा रहा है कि जेडीयू से वो प्रत्याशी हो सकते हैं, ऐसे में आरजेडी ने उन्हें घेरने की रणनीति बना रखी है. दरोगा प्रसाद राय के दूसरे बेटे की पुत्री डॉ. करिश्मा राय आरजेडी का दामन थाम चुकी हैं. माना जा रहा है कि परसा सीट पर चंद्रिका राय के खिलाफ आरजेडी उम्मीदवार के तौर पर किस्मत आजमा सकती है. ऐसे में दारोगा बाबू की विरासत पर सियासी संग्राम छिड़ गया है. 

जगन्नाथ मिश्रा की विरासत बचाने की चुनौती
बिहार की सिसायत के बेताज बादशाह कहे जाने वाले जगन्नाथ मिश्रा तीन बार मुख्यमंत्री बने. बिहार में ब्राह्ममों के सबसे बड़े चेहरा माने जाते थे और कांग्रेस में उनकी तूती बोलती थी. ऐसे में जगन्नाथ मिश्रा की राजनीतिक विरासत उनके बेटे नीतीश मिश्रा के कंधों पर है. नीतीश मिश्रा ने अपनी राजनीतिक पारी का आगाज जेडीयू से किया था और 2005 में झंझारपुर सीट से जीतकर विधानसभा पहुंचे और कैबिनेट मंत्री बने. 2010 में भी नीतीश जेडीयू से जीतने में सफल रहे.  

इसके बाद उनका जेडीयू से नाता टूट गया और उन्हें जीतनराम मांझी का दामन पकड़ लिया. हालांकि, 2015 के चुनाव उन्हें बीजेपी से टिकट मिला और वो मामूली वोटों से चुनाव हार गए. इस बार बीजेपी से एक बार किस्मत आजमाने की कवायद में हैं. राजनीतिक समीकरण भी अब उनके पक्ष में है. ऐसे में देखना है कि झंझापुर सीट पर कमल खिलाने में कामयाब रहते हैं कि नहीं? 
 

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