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बिहार: 7 सरकारों में मंत्री, 5 पार्टियों में ठिकाना, फिर NDA के हुए जीतनराम मांझी

जीतन राम मांझी ने एनडीए के साथ मिलकर बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है और गुरुवार को औपचारिक रूप से इसकी मुहर लग जाएगी. मांझी अपने चार दशक से सियासी सफर में सिद्धांत से ज्यादा समय और सत्ता को अहमियत देते रहे हैं. इसी का नतीजा रहा है कि बिहार के 7 सरकारों में वो मंत्री रहे और अभी तक पांच पार्टियों में अपना सियासी ठिकाना बना चुके हैं. 

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पूर्व सीएम जीतनराम मांझी
पूर्व सीएम जीतनराम मांझी
स्टोरी हाइलाइट्स
  • जीतन राम मांझी पहली बार 1980 में विधायक बने
  • चंद्रशेखर सरकार से लेकर नीतीश सरकार में रहे मंत्री
  • कांग्रेस, जनता दल, आरजेडी से जेडीयू तक का सफर

महागठबंधन से नाता तोड़कर हिंदुस्तान आवाम मोर्चा के प्रमुख जीतन राम मांझी एक बार फिर एनडीए की नाव पर सवार हो गए हैं. मांझी ने एनडीए के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है और गुरुवार को औपचारिक रूप से इसकी मुहर लग जाएगी. जीतनराम मांझी अपने चार दशक से सियासी सफर में  सिद्धांत से ज्यादा समय को अहमियत देते रहे हैं. इसी का नतीजा रहा है कि बिहार के 7 सरकारों में वो मंत्री रहे और अभी तक पांच पार्टियों में अपना सियासी ठिकाना बना चुके हैं. 

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अस्सी के दशक में कांग्रेस के साथ अपना राजनीतिक सफर शुरू करने वाले जीतन राम मांझी ने कई बार सियासी पाला बदल चुके हैं. 1980 में कांग्रेस की टिकट पर फतेहपुर विधानसभा सीट से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे. 1983 में चंद्रशेखर सिंह ने सत्ता की कमान संभाली तो मांझी उनकी कैबिनेट में मंत्री बन गए. इसके बाद 1985 में दोबारा से मांझी कांग्रेस से विधायक बनने में कामयाब रहे और बिंदेश्वरी दुबे के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में मंत्री बनने में सफल रहे. इसके बाद कांग्रेस के सत्येंद्र नारायण सिन्हा और जगन्नाथ मिश्र के नेतृत्व वाली कैबिनेट में भी मंत्री बने. 

लालू कैबिनेट में मिली जगह

जीतनराम मांझी को साल 1990 में फतेहपुर सुरक्षित विधानसभा क्षेत्र से पराजय झेलनी पड़ी थी. इसके बाद 1990 में जनता दल का दामन थाम लिया. इसके बाद 1996 में जनता दल टूट गई और लालू प्रसाद यादव ने अपनी पार्टी आरजेडी बना ली. जीतन राम मांझी भी लालू प्रसाद यादव के साथ गए और 1996 में बाराचट्टी विधानसभा सीट से विजयी हुए और विधायक बने. लालू यादव की कैबिनेट में जगह मिली और एक बार फिर मंत्री बनने में कामयाब रहे. इसके बाद 2000 में राबड़ी देवी के नेतृत्व में सरकार बनी तो मांझी उसका अहम हिस्सा रहे. 

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आरजेडी के सियासी ग्राफ डाउन होते ही जीतनराम मांझी ने लालू यादव का साथ छोड़कर 2005 में नीतीश कुमार का दामन थाम लिया और जेडीयू के नेता बन गए. 2005 में नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार बनी तो मांझी कैबिनेट का अहम हिस्सा बने. इसके बाद 2014 में लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार को हार मिली तो उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया. इसके बाद मांझी ने अपने आपको बिहार की सियासत में महादलित नेता के तौर पर अपनी जगह बनाने की कोशिश की. 9 महीने के बाद नीतीश ने मांझी को उनकी सीट से बेदखल कर खुद एक बार फिर मुख्यमंत्री बने और उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया. 

हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा पार्टी बनाई

जीतन राम मांझी ने साल 2015 के सत्ता संघर्ष में नीतीश कुमार से मात खाने के बाद हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा नामक अपनी पार्टी बना ली. इसके बाद बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के साथ मिलकर 2015 में विधानसभा चुनाव लड़े, लेकिन खुद के अलावा कोई दूसरी सीट नहीं जीत सके. इसके बाद एनडीए से अलग होकर महागठबंधन में शामिल हो गए और 2019 के लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नहीं सके. हालांकि, आरजेडी की मदद से अपने बेटे संतोष सुमन को एमएलसी बनवाने में कामयाब हो गए. मौके की नजाकत को समझते हुए एक बार फिर उन्होंने एनडीए की नाव पर सवार होने का ऐलान किया है. 

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बता दें कि बिहार के गया जिला के खिजरसराय के महकार गांव के मुसहर जाति में  6 अक्टूबर 1944 को जीतन राम मांझी का जन्म हुआ. उनके पिता रामजीत राम मांझी एक खेतिहर मजदूर थे. जीतन राम मांझी को भी बचपन में जमीन मालिक द्वारा खेतों में काम पर लगा दिया जाता था, लेकिन उनके मन में ललक ने उन्हें काबिल बनाया. जीतन राम मांझी की शिक्षा की बात करें तो 1962 में उच्च विद्यालय में शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने 1967 में गया कॉलेज से इतिहास विषय से स्नातक की डिग्री हासिल की. 

गरीब परिवार से आने वाले मांझी को 1968 में डाक एवं तार विभाग में लिपिक की नौकरी मिली, लेकिन 12 साल डाक विभाग में नौकरी करने के बाद 1980 में छोड़ दी. इसके बाद कांग्रेस का दामन थाम लिया और चार दशक के सियासी सफर में 6 बार विधायक और सात मुख्यमंत्रियों की कैबिनेट में मंत्री बनने के साथ-साथ सत्ता की कमान भी संभाली. हालांकि, 9 महीने ही मुख्यमंत्री पद पर रह सके हैं. 


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