बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री व हिंदुस्तान आवाम मोर्चा के अध्यक्ष जीतन राम मांझी के महागठबंधन से अलग हुए दो सप्ताह होने जा रहे हैं, लेकिन अपना सियासी रास्ता तय नहीं कर पा रहे हैं. हालांकि, मांझी ने जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार से मुलाकात भी कर ली है, लेकिन अभी तक एनडीए में उनके शामिल होने की राजनीतिक तस्वीर साफ नहीं हो सकी है. हालांकि, मांझी की पार्टी से ओर से दावा किया गया है कि गुरुवार को राजनीति परिदृश्य साफ होगा.
बता दें कि आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन में लगातार उपेक्षा से खिन्न जीतन राम मांझी ने 22 अगस्त को अपनी पार्टी की कार्यसमिति की बैठक करके अपना रास्ता अलग कर लिया था. जीतन राम मांझी ने 27 अगस्त को मुख्यमंत्री आवास पहुंचकर नीतीश कुमार से मुलाकात की थी, जिसके बाद उनके एनडीए के सहयोगी के तौर पर चुनाव लड़ने के कयास लगाए जाने लगे थे. एनडीए में शामिल होने के सवाल पर उन्होंने कहा था कि 30 अगस्त को पूरी पिक्चर साफ हो जाएगी.
जीतनराम मांझी ने 30 अगस्त को तीसरे मोर्च की बैठक बुलाई थी, जिसे उन्होंने स्थागित करते हुए फिर 2 सितंबर की डेडलाइन तय कर दी है. बुधवार को होने वाली बैठक से एक दिन पहले मंगलवार को मांझी गया चले गए. ऐसे में दो सितंबर को होने वाली बैठक में वो शामिल नहीं रहेंगे और इसे एक बार फिर आगे बढ़ा दिया गया है.
जीतनराम मांझी की अभी तक जेडीयू के साथ डील फाइनल नहीं हो पाई है. मांझी का एनडीए में शामिल होने का निर्णय सीटों के बंटवारे के चक्कर में अटका है. बताया जा रहा है कि मांझी एलजेपी कोटे की दो सीट मांग रहे हैं, जिसके चलते पेच फंसा हुआ है. हालांकि, नीतीश कुमार उन्हें नौ सीट देने को राजी हो गए हैं, लेकिन मांझी कम से कम 12 सीटें मांग रहे हैं. ऐसे में सीटों की बात सुलझते ही मांझी एनडीए में शामिल होने की औपचारिक घोषणा कर सकते हैं. हम के प्रवक्ता दानिश रिजवान ने कहा कि गुरुवार को जेडीयू के साथ गठबंधन को लेकर घोषणा की जाएगी.
दरअसल, जेडीयू और एलजेपी में बढ़ती तल्खी के बीच बिहार में दलित चेहरा माने जाने वाले श्याम रजक ने सीएम नीतीश कुमार का साथ छोड़कर आरजेडी का दामन थाम लिया है. ऐसे में नीतीश कुमार अब डैमेज कन्ट्रोल में जुट गए हैं और वो रजक की विदाई से होने वाले नुकसान की भरपाई जीतनराम मांझी के जरिए करना चाहते हैं. ऐसे में मांझी के लिए बीजेपी से ज्यादा नीतीश कुमार सियासी पिच तैयार कर रहे हैं. बीजेपी ने अभी तक मांझी को लेकर किसी तरह का कई बयान नहीं दिया है.
बिहार में अनुसूचित जाति की जनसंख्या राज्य की कुल जनसंख्या का लगभग 16 प्रतिशत है. बिहार विधानसभा में कुल आरक्षित सीटें 38 हैं. 2015 में आरजेडी ने सबसे ज्यादा 14 दलित सीटों पर जीत दर्ज की थी. जबकि, जेडीयू को 10, कांग्रेस को 5, बीजेपी को 5 और बाकी चार सीटें अन्य को मिली थीं. इसमें 13 सीटें रविदास समुदाय के नेता जीते थे जबकि 11 पर पासवान समुदाय से आने वाले नेताओं ने कब्जा जमाया था. ऐसे में नीतीश कुमार किसी भी तरह से दलित मतों को साधने का दांव चल रहे हैं.