
कन्हैया कुमार बिहार की राजनीति में एक नया नाम हैं क्योंकि उन्होंने वहां सिर्फ एक लोकसभा चुनाव लड़ा है जिसमें भी उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था. छात्र नेता से नेता बने कन्हैया ने 2019 में बेगूसराय से सीपीआई उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा था. इस बार के विधानसभा चुनाव में कन्हैया कुमार मैदान में नहीं उतर रहे हैं. हालांकि फिर भी वह अपने बयानों के जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं.
कैसा रहा शुरुआती सफर
साल 2015 में जेएनयू छात्रसंघ का अध्यक्ष बनने के बाद से कन्हैया कुमार को बतौर छात्र नेता पहचान मिली. इसके एक साल बाद कैंपस में कथित देश विरोधी नारेबाजी के आरोप में जेल जाना कन्हैया के लिए सियासी वरदान साबित हुआ. इस पूरे घटनाक्रम ने कन्हैया को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई और वह छात्रों की आवाज बनकर उभरे. देश विरोधी नारेबाजी के केस में अब भी कानूनी लड़ाई जारी है और यह मामला कोर्ट के विचाराधीन है.
कब लड़ा पहला चुनाव
छात्र नेता के तौर पर अपनी पहचान स्थापित करने के बाद 2018 में सीपीआई ने कन्हैया को अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल किया. इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में वह बीजेपी के गिरिराज सिंह के खिलाफ अपने गृह जिले बेगूसराय से लोकसभा चुनाव लड़े थे. हालांकि इस चुनाव में उन्हें गिरिराज सिंह के हाथों बड़ी हार का सामना करना पड़ा था.
इस बार की क्या है तैयारी?
कन्हैया कुमार ने सीएए और एनआरसी के खिलाफ बिहार में कई बड़ी रैलियां की थीं. उनकी रैलियों में उमड़ रही भारी भीड़ से अंदाजा लगाया जा रहा था कि कन्हैया इस बार विधानसभा चुनाव में भी ताल ठोकते नजर आएंगे. फिर लॉकडाउन लगने के बाद से वह सियासी तौर पर कम सक्रिय दिखाई दिए. अब कन्हैया अपने एक इंटरव्यू में साफ कर चुके हैं कि वह इस बार का विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे और पार्टी ने उन्हें अन्य उम्मीदवारों को मजबूत करने की जिम्मेदारी दी है.
बिहार की सियासत में कन्हैया की पार्टी सीपीआई का कोई ज्यादा सियासी रसूख नहीं है. ऐसे में इस बार सीपीआई महागठबंधन के घटक के तौर पर आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर ही चुनाव लड़ेगी. हालांकि किस पार्टी के खाते में कितनी सीटें जाएंगी इस पर फैसला होना अभी बाकी है.