केंद्र की मोदी सरकार और बिहार की नीतीश सरकार के धुरविरोधी दीपांकर भट्टाचार्य भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन के महासचिव हैं. भट्टाचार्य ने सीएए, एनआरसी और एनपीआर का जमकर विरोध किया था. उन्होंने केंद्र की मोदी सरकार पर देश में सीरियल इमरजेंसी लगाने का आरोप लगाया था.
इन दिनों दीपांकर बिहार चुनावों के मद्देनजर महागठबंधन में सीट शेयरिंग को लेकर मीडिया की सुर्खियों में बने रहते हैं. दरअसल आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने वामदलों को भी महागठबंधन में शामिल करने की कोशिश की थी. लेकिन सीट शेयरिंग पर पेंच फंसा हुआ है. दीपांकर का कहना है कि उनकी पार्टी सौ सीटों पर चुनाव लड़ती आई है ऐसे में 2015 के चुनाव परिणामों के आधार पर सीटों का बंटवारा उन्हें मंजूर नहीं है.
दीपांकर की मेहनत का नतीजा बिहार पिछले विधानसभा चुनावों में देख चुका है. पिछले चुनाव में लेफ्ट पार्टियों ने एक गठबंधन के तौर पर चुनाव लड़ा था. फिर भी जहां सीपीआई और सीपीआईएम का खाता नहीं खुला वहीं सीपीआई (एमएल) ने तीन सीटें अपने नाम कर ली थीं. माना जाता है कि लेफ्ट पार्टियों को एक करने के पीछे भी दीपांकर भट्टाचार्य ने काफी मेहनत की थी.
बता दें कि 2015 के विधानसभा चुनावों में सीपीआई (एमएल) और सीपीआई ने 98 सीटों पर चुनाव लड़ा था जबकि सीपीएम ने 38 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. दीपांकर की मेहनत ही थी कि जब चुनाव परिणाम आए तो सीपीआई (एमएल) बिहार में सबसे बड़ी वामपंथी पार्टी के तौर पर उभरी जिसे 1.5% वोट शेयर हासिल हुए थे. सीपीआई (एमएल) ने बलरामपुर, दरौली और तरारी सीट पर अपनी जीत दर्ज कराई थी.
भट्टाचार्य ने 1998 में पार्टी में विनोद मिश्रा की जगह ली थी. दीपांकर भट्टाचार्य का जन्म दिसंबर 1960 में गुवाहाटी, असम में हुआ था. दीपांकर एक रेलवे कर्मचारी के बेटे थे. उनके पिता का नाम बैद्यनाथ भट्टाचार्य था. उन्होंने कोलकाता के पास रामकृष्ण मिशन विद्यालय, नरेंद्रपुर में पढ़ाई की.
दीपांकर ने 1979 में पश्चिम बंगाल बोर्ड की उच्च माध्यमिक बोर्ड परीक्षा में पहला स्थान हासिल किया था. इसके बाद वे भारतीय सांख्यिकी संस्थान, कोलकाता में बी स्टैट कार्यक्रम में शामिल हुए. 1982 में दीपांकर बी स्टैट की डिग्री पूरी की. वहीं दीपांकर सीपीआई (एमएल) की राजनीति में सक्रिय हो गए. वामपंथी राजनीति में सक्रिय होने के बाद भी दीपांकर ने 1984 में अपनी एम स्टैट की डिग्री तय समय में पूरी की.
बाद में दीपांकर ने भारतीय पीपुल्स फ्रंट के महासचिव के रूप में और फिर पार्टी के ट्रेड यूनियन विंग 'ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियंस' (AICCTU) के महासचिव के रूप में काम किया. दीपांकर को दिसंबर 1987 में सीपीआई (एमएल) की केंद्रीय समिति और पोलित ब्यूरो का सदस्य चुना गया. 1975 के बाद से पार्टी के महासचिव की जिम्मेदारी संभाल रहे विनोद मिश्रा के आकस्मिक निधन के बाद, 1998 में दीपांकर भट्टाचार्य को सर्वसम्मति से इस पद के लिए चुना गया.
भट्टाचार्य का मानना है कि कि देश में जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा अपनी जरूरी चीजों से महरूम है जबकि एक छोटा हिस्सा राजनीतिक शक्ति पर दबदबा रखता है और अपनी आर्थिक प्रगति में उसका फायदा उठाता है. दीपांकर स्वास्थ्य और शिक्षा के निजीकरण और व्यावसायीकरण की नीतियों के भी विरोधी हैं.