आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव की राजनीतिक विरासत संभाल रहे तेजस्वी यादव बिहार की सत्ता में वापसी के लिए बेताब हैं. सामाजिक न्याय के मुद्दे पर आरजेडी ने 15 साल तक बिहार पर राज किया है, लेकिन तेजस्वी यादव इस बार के चुनावी संग्राम में विकास की नई इबारत लिखने का सपना बिहार के लोगों को दिखा रहे हैं. तेजस्वी आरजेडी को एम-वाई समीकरण से निकालकर ए-टू-जेड की पार्टी बनाने का दावा कर रहे हैं और 10 लाख युवाओं को रोजगार और नियोजित शिक्षकों को समान वेतन जैसे मुद्दों के साथ चुनावी अखाड़े में उतरे हैं.
युवाओं को रोजगार का वादा
तेजस्वी यादव ने बिहार में युवा मतदाताओं की संख्या को देखते हुए बेरोजगारी के मुद्दे पर नीतीश कुमार सरकार को घेरने में जुटे हैं. तेजस्वी लगातार वादा कर रहे हैं कि अगर उनकी सरकार बनती है तो पहली ही कैबिनेट मीटिंग में 10 लाख नौजवानों को रोजगार देने का काम करेंगे. यह नौकरी पूरी तरह से स्थायी तौर पर होगी. तेजस्वी ने कहा कि बिहार में नई सोच की सरकार चाहिए, जो प्रदेश में विकास की नई इबारत लिख सके.
बता दें कि बिहार में चुनाव अयोग के मुताबिक 20 से 29 आयु वर्ग के 1 करोड़ 60 लाख मतदाता हैं. 18 से 19 साल के 7 लाख 14 हजार वोटर हैं, जो पहली बार अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे. वहीं, 30 से 39 साल के एक करोड़ 98 लाख से ज्यादा वोटर हैं. इन्हीं आंकड़े को ध्यान में रखकर तेजस्वी यादव युवा मतदाताओं पर खास फोकस कर रहे हैं. इन युवाओं को अपने पाले में करने के लिए तेजस्वी यादव एक के बाद एक वादा कर रहे हैं और उन्हें पता है कि बेरोजगारी के मुद्दे पर युवा वर्ग का साथ मिल गया तो सूबे की सियासी जंग फतह कर सकते हैं.
नियोजित शिक्षकों पर दांव
महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी तेजस्वी यादव ने बिहार चुनाव में नियोजित शिक्षक का दांव भी चल दिया है. तेजस्वी ने वादा किया है कि हमारी सरकार आने पर बिहार में कार्यरत नियोजित शिक्षकों को भी नियमित शिक्षकों की तरह समान सेवा शर्त और समान काम के लिए समान वेतन दिया जाएगा. नियोजित शिक्षकों को नीतीश सरकार ने हमेशा धोखा दिया है. शिक्षकों की सभी समस्याओं का निदान किया जाएगा.
बता दें कि बिहार में नियोजित शिक्षकों का एक बड़ा मुद्दा है और चुनाव को प्रभावित करने की एक बड़ी ताकत रखते हैं. बिहार में करीब पौने चार लाख नियोजित शिक्षक हैं, जिनके वेतन का मुद्दा बड़ा है. ऐसे में एक शिक्षक के परिवार में चार सदस्यों का वोट मानकर चलें तो करीब 13 लाख मतदाता होता है. यही वजह है कि नीतीश कुमार ने भी पिछले दिनों नियोजित शिक्षकों को लेकर कई अहम फैसले लिए थे, पर तेजस्वी ने उन्हें समान वेतन का वादा कर एक बड़ी सियासी लकीर खींच दी है. झारखंड में नियोजित शिक्षकों की नाराजगी के चलते बीजेपी को अपनी सरकार गवांनी पड़ गई थी.
आरजेडी को ए-टू-जेड पार्टी बनाने की कवायद
तेजस्वी यादव अपने पिता के सामाजिक न्याय के एजेंडे से विपरीत जाकर केवल मुस्लिम, यादव और दलितों की बात करने के बजाय समाज के सभी वर्गों की बात कर रहे हैं. तेजस्वी पार्टी की कमान संभालते ही आरजेडी को यादव-मुस्लिम की छवि से बाहर निकालकर सर्वसमाज की पार्टी बनाने की दिशा में सक्रिय हैं. वो इस बात को लगातार दोहरा रहे थे कि आरजेडी सिर्फ एम-वाई की नहीं बल्कि ए-टू-जेड की पार्टी है. इस बार विधानसभा चुनाव में तेजस्वी ने भूमिहार समुदाय को टिकट न देने की प्रथा को खत्म कर दिया है. उन्होंने भूमिहार समुदाय के अनंत सिंह को प्रत्याशी बनाया है. इसके अलावा उन्होंने ब्राह्मण और राजपूत समुदाय के साथ अति पिछड़े समाज में अच्छे खासे टिकट देकर ए-टू-जेड की पार्टी होने का संदेश दिया है. आरजेडी ने पिछली बार से कम मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं.
RJD के पोस्टर से लालू-राबड़ी गायब
तेजस्वी यादव पहले ही अपने माता-पिता के दौर के शासन के लिए माफी मांग चुके हैं. बिहार के लोगों के मन मस्तिष्क से लालू राबड़ी राज को भुलाने के लिए पोस्टर और विज्ञापनों से उन्हें गायब कर चुके हैं. आरजेडी के सियासी इतिहास में पहली बार है जब लालू-राबड़ी की जगह पर उनके छोटे बेटे और पार्टी नेता तेजस्वी यादव की तस्वीरें छाई हुई हैं. दरअसल, लालू यादव चारा घोटाले के चलते जेल में सजा काट रहे हैं. ऐसे में विपक्ष लालू के मामले को मुद्दा न बना सके इसके लिए तेजस्वी ने राजनीतिक दांव चला है. 2019 में भी लालू के नाम पर तेजस्वी चुनावी किस्मत आजमा चुके हैं और उसका हश्र भी देख चुके हैं. यही कारण है कि तेजस्वी अब आगे की राजनीति में फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं.