बिहार विधानसभा चुनाव से पहले एनडीए में दरार पड़ गई है. लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) ने बिहार में एनडीए में रहते हुए जेडीयू के खिलाफ चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. एनडीए में मनचाही संख्या में सीट न मिलने के चलते चिराग पासवान ने 143 सीटों पर प्रत्याशी उतारने का फैसला किया है, लेकिन बीजेपी के प्रत्याशियों को एलजेपी का समर्थन रहेगा. ऐसे में जेडीयू के खिलाफ एलजेपी के ताल ठोकने से भले ही बीजेपी को सीधे तौर पर नुकसान होता न दिख रहा हो, लेकिन एनडीए के लिए जरूर चिंता का सबब बन सकता है?
एलजेपी के महासचिव अब्दुल खालिक ने कहा कि राज्य स्तर पर और विधानसभा चुनाव में गठबंधन में जेडीयू के साथ वैचारिक मतभेदों के कारण बिहार में एलजेपी ने अलग चुनाव लड़ने का फैसला लिया है. सूबे में कई सीटों पर जेडीयू के साथ वैचारिक लड़ाई हो सकती है ताकि उन सीटों पर जनता फैसला कर सके कि कौन-सा प्रत्याशी बिहार के हित में बेहतर है. साथ ही उन्होंने कहा है कि बीजेपी के साथ एलजेपी के रिश्ते सही है. बिहार में हम उनके साथ रहकर चुनाव लड़ेंगे और मिलकर सरकार बनाएंगे.
LJP के अलग होने से किसे नुकसान
एलजेपी प्रमुख चिराग पासवान की अध्यक्षता में रविवार को हुई संसदीय दल की बैठक में एक प्रस्ताव पास कर यह संदेश देने की कोशिश की गई है बीजेपी के साथ उनका गठबंधन बना हुआ है, लेकिन जेडीयू के साथ चुनावी मैदान में दो-दो हाथ करेगी. जेडीयू के खिलाफ एलजेपी के लड़ने से बिहार की आधी से ज्यादा सीटों पर एनडीए में उलझनें होंगी, जिससे वोट का बंटवारा होने की संभावना भी है. इससे महागठबंधन के हौसले बुलंद हो गए हैं और एनडीए के दरार में अपना चुनावी फायदा होता नजर आ रहा है.
एलजेपी और जेडीयू दोनों यह कहते आ रहे थे कि उनका गठबंधन बीजेपी से है. बीजेपी ने प्रत्यक्ष रूप से यही कोशिश की कि एलजेपी एनडीए में बनी रहे, लेकिन बात नहीं बन सकी. जेडीयू के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी कहते हैं कि जेडीयू और बीजेपी 2005 और 2010 में चुनाव लड़कर जीती हैं और इस बार भी दोनों दल मजबूती से चुनाव लड़ेंगे. एलजेपी के साथ जेडीयू ने कभी कोई विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ा है. ऐसे में कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है. वहीं, एलजेपी के नेता अब्दुल खालिक मानते हैं कि जेडीयू को चुनाव में समझ आ जाएगा.
वरिष्ठ पत्रकार अरविंद मोहन मानते हैं कि बिहार में एनडीए में जो हो रहा है वो चुनाव के लिए नहीं बल्कि चुनाव के बाद की सियासी पटकथा लिखी जा रही है. एलजेपी के अलग चुनाव लड़ने से निश्चित तौर पर जेडीयू को नुकसान होगा जबकि बीजेपी को चुनाव में सीधे तौर पर कोई नुकसान नहीं होगा. एलजेपी के पास दलितों के एक तबके का अच्छा खासा वोट है, जो जेडीयू के खिलाफ वोट कर सकता है. वहीं, बीजेपी बिहार में मजबूत बनकर उभरेगी तो चुनाव के बाद नीतीश कुमार ज्यादा बारगेनिंग की पोजिशन में नहीं होंगे.
बिहार में एलजेपी की सियासी ताकत
बिहार में दलित समुदाय की आबादी तो करीब 17 फीसदी है, लेकिन दुसाध जाति का वोट करीब पांच फीसदी है, जो एलजेपी का कोर वोटबैंक माना जाता है. 2015 के चुनाव में एनडीए में रहते हुए एलजेपी ने 42 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे, जिसमें महज 2 विधायक जीते थे. हालांकि एलजेपी को इन सीटों पर 28.79 फीसदी वोट मिले थे, जो की राज्य स्तर पर 4.83 फीसदी हैं. जबकि 2005 के विधानसभा चुनाव में एलजेपी को राज्य में 11.10 फीसदी वोट मिले थे. ऐसे में एलजेपी के एनडीए से अलग होने से जेडीयू को चुनाव में करीब पांच फीसदी वोट का नुकसान सीधे तौर पर उठाना पड़ सकता है. वहीं, बीजेपी की सीटों पर एलजेपी और जेडीयू दोनों का सहयोग रहेगा, जिससे निजी तौर पर उसे फायदा मिलेगा. हालांकि, जेडीयू के नुकसान से एनडीए को भी नुकसान है.
जेडीयू-बीजेपी का चुनावी समीकरण
हालांकि, जेडीयू-बीजेपी दोनों ही प्रमुख दलों को बिहार की जनता भी सिर आंखों पर बिठाती रही है. बिहार विधानसभा चुनाव के आंकड़े बताते हैं कि कि जब-जब ये दोनों दल साथ लड़े जेडीयू का वोट प्रतिशत हर बार बढ़ता चला गया. साल फरवरी 2005 फरवरी में बीजेपी और जेडीयू पहली बार एक साथ चुनाव लड़ी थी, जिनमें जेडीयू ने 138 उम्मीदवार उतारे थे और उसे 57 सीटों पर विजय मिली थी जबकि इस चुनाव में बीजेपी ने 105 सीटों में से 37 पर जीत दर्ज की थी. आरजेडी ने 81 सीटें जीती थीं, लेकिन इस त्रिशंकु विधानसभा में एलजेपी ने 29 सीटें पाकर किसी दल को समर्थन न देने का फैसला किया. इसके कारण राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करना पड़ा था.
2005 में पासवान किंगमेकर थे
रामविलास पासवान की यह बात बहुत मशहूर हुई थी कि सरकार बनाने की चाबी उनके पास है. उस समय एलजेपी ने 178 उम्मीदवार खड़े किये थे. इसके बाद अक्टूबर 2005 में हुए चुनाव में जेडीयू और बीजेपी गठबंधन ने 141 सीटें जीतकर एलजेपी के सत्ता की चाबी की अहमियत खत्म कर दी थी. इस चुनाव में जदयू ने 139 सीटों पर लड़कर 88 सीटें जीती थी. वहीं बीजेपी ने 104 सीटों में से 55 सीट पर जीत दर्ज की थी. साल 2010 में जेडीयू-बीजेपी एक साथ लड़ी थी. जेडीयू ने 141 सीटों पर चुनाव लड़कर 115 सीट पर जीत दर्ज की थी और बीजेपी ने 102 सीटों पर लड़कर 91 सीट जीती थी. वहीं, 2015 के चुनाव में रिश्ता टूट गया. जेडीयू आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ी और 101 सीटों में से 71 पर जीत हासिल की. जबकि बीजेपी 157 सीटों पर लड़कर 53 सीट जीती थी. हालांकि, इस बार का चुनावी मुकाबला काफी दिलचस्प होता जा रहा है और अब देखना है कि जेडीयू के खिलाफ एलजेपी मैदान में उतरकर क्या सियासी गुल खिलाती है.