बिहार में एनडीए में सीट बंटवारे के दौरान एलजेपी को लेकर तमाम सवाल उठ रहे हैं जिसके जबाव में बीजेपी नेताओं की से जेडीयू के साथ ऑल-इज वेल बताया जा रहा है. बिहार में एलजेपी को लेकर एनडीए में संशय के बादल के छंटने की बात की जा रही है. इसके बावजूद अभी भी एनडीए में बहुत सारे सवाल बरकरार हैं, जो यह सोचने पर मजबूर कर रहे हैं कि जेडीयू के खिलाफ एलजेपी के उम्मीदवार उतारने के पीछे की रणनीति में कौन शामिल है?
बिहार की सियासी रणभूमि में जेडीयू के साथ खड़ी बीजेपी भले ही इनकार कर रही हो और लगातार यह संदेश देने की कोशिश कर रही हो की एलजेपी को इस स्थिति में लाने में उसका कोई हाथ नहीं है. इसके बाद भी कहीं ना कहीं मतदाताओं में यह मैसेज जरूर जा रहा है कि इस पूरे खेल में राजनीतिक दांव चले जा रहे हैं, क्योंकि बिहार में जिस तरीके से एलजेपी के टिकट पर बीजेपी से बेटिकट हुए नेता चुनाव लड़ने के लिए लालायित दिख रहे हैं उससे तो यही सियासी आभास होता नजर आ रहा है.
बीजेपी नेता एलजेपी से चुनाव लड़ने की जुगत में
एनडीए के तहत जेडीयू के कोटे में दिनारा सीट जाने के बाद बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष राजेंद्र सिंह ने एलजेपी का दामन थाम लिया. 2015 के विधानसभा चुनाव में राजेंद्र सिंह बीजेपी के उम्मीदवार के रूप में दिनारा से चुनाव लड़ रहे थे, लेकिन वो जेडीयू के प्रत्याशी से चुनाव हार गए थे. इस बार बीजेपी और जेडीयू के साथ आने की वजह से वह सीट जेडीयू के खाते में चली गई तो आरएसएस के प्रचारक रहे राजेंद्र सिंह ने एलजेपी का दामन थाम लिया. ऐसे में यह सवाल उठता है कि राजेंद्र सिंह के बगावत पर बीजेपी ने अभी तक कोई कदम क्यों नहीं उठाया है.
राजेंद्र सिंह ही नहीं बल्कि बीजेपी के एक अति पिछड़ा वर्ग से आने वाले कद्दावर नेता और पूर्व विधायक रामेश्वर चौरसिया ने भी एलजेपी से सिंबल ले लिया है. हालांकि, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने फोन करके रामेश्वर चौरसिया को एलजेपी में जाने से रोका और दिल्ली बुला लिया है. ऐसे ही बीजेपी के कई उम्मीदवार हैं जिन्हें पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी की तरफ से टिकट मिला था, लेकिन इस बार जेडीयू के चलते बेटिकट हो गए हैं और वो एलजेपी के टिकट पर फिर मैदान में उतरने की तैयारी में है.
बीजेपी की तरफ से यह बयान तो आया कि जो भी नीतीश कुमार के नेतृत्व को नहीं मानेगा वह एनडीए का हिस्सा नहीं है. ऐसे में मान लिया जाए कि एलजेपी के टिकट पर जो भी बीजेपी नेता चुनाव लड़ रहे हैं, क्या वह बीजेपी से बाहर कर दिए जाएंगे, हालांकि ऐसा कोई संदेश बीजेपी की तरफ से जारी नहीं किया गया है और यही एक बहुत बड़ा कारण यह सोचने पर मजबूर करता है कि आखिर बीजेपी चाहती क्या है?
बागी नेताओं पर बीजेपी कब लेगी एक्शन?
बीजेपी पर प्रश्न उठने का कारण सिर्फ ये है की एलजेपी के द्वारा जेडीयू के खिलाफ उम्मीदवार उतारने के फैसले पर उनकी प्रतिक्रिया काफी देरी से आई जिससे भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है. हालांकि मंगलवार को एनडीए के प्रेस कॉन्फ्रेंस होने से पहले बीजेपी के सभी बड़े नेता देवेंद्र फडणवीस, भूपेंद्र यादव, सुशील मोदी से लेकर बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल तक मुख्यमंत्री आवास पहुंचे था.
बीजेपी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए दिया संदेश
मुख्यमंत्री आवास पर यह बैठक करीब एक घंटे चली और जब बीजेपी नेता बाहर निकले तो उनके चेहरे पर मायूसी झलक रही थी, जिसके बाद बीजेपी को यह बयान जारी करने पर मजबूर होना पड़ा कि नीतीश के नेतृत्व को जो नहीं मानेगा वह एनडीए का हिस्सा नहीं होगा. हालांकि, इससे पहले बीजेपी की तरफ से एक और बयान आया था जिसमे कहा गया कि एलजेपी चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री के चेहरे या पोस्टर का इस्तेमाल नहीं कर सकती. इसपर एलजेपी ने भी जवाब दिया कि प्रधानमंत्री देश के हैं और कोई भी उनके चेहरे का इस्तेमाल कर सकता है. इसके बाद सुशील मोदी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए स्पष्ट तौर पर कहा कि वह चुनाव आयोग में लिखकर दे रहे हैं कि केवल एनडीए के ही जो चार घटक दल है बीजेपी जेडीयू वीआईपी और हम पार्टी ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे का इस्तेमाल कर सकते हैं बाकी अगर कोई करता है तो उन पर कार्रवाई की जाए.
बीजेपी नेताओं की इन सारी बातों के बाद भी एलजेपी पर क्या पार्टी और सख्त होगी? हालांकि यह बात बार-बार जरूर कही जा रही है कि केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान स्वस्थ नहीं हैं. ऐसे में एलजेपी पर कोई कार्रवाई करना उचित नहीं है. हालांकि संदेश देने के लिए बीजेपी की तरफ से मंगलवार से प्रयास की शुरुआत हुई और प्रेस कॉन्फ्रेंस में बार-बार बीजेपी के सभी बड़े नेताओं ने नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की और उसके बाद मुख्यमंत्री का चेहरा बताने की बात कही.
एलजेपी का दांव कहीं उल्टा न पड़ जाए
ऐसी परिस्थिति में एलजेपी का दांव उल्टा दिखाई दे रहा है, क्योंकि जिस रणनीति के तहत एलजेपी ने जेडीयू के खिलाफ उम्मीदवार उतारने का फैसला किया था. वह राजनीति अब पहले जैसी नहीं रही इसलिए हो सकता है कि एलजेपी को इसका नुकसान भी उठाना पड़े. हालांकि एलजेपी के अध्यक्ष चिराग पासवान ने तेजस्वी यादव की प्रशंसा करके एक तरीके से खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है. इसके अलावा एलजेपी ज्यादातर अपर कास्ट के उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारने की तैयारी में हो, लेकिन जेडीयू का आधार वोटबैंक अतिपिछड़ा है इसीलिए शायद इस रणनीति का ज्यादा प्रभाव नहीं पड़े.