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क्या नीतीश की दलित राजनीति का नया दांव है जेडीयू में अशोक चौधरी की ताजपोशी?

जेडीयू ने अपने राजनीतिक समीकरण के मजबूत करने के लिए अशोक चौधरी को जेडीयू के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष का पद दिया है. विधानसभा चुनाव से ठीक पहले नीतीश ने महादलित समुदाय से आने वाले अशोक चौधरी की ताजपोशी कर बिहार के 16 फीसदी दलित वोटरों तक राजनीतिक संदेश पहुंचाने की कोशिश की.

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अशोक चौधरी नीतीश कुमार
अशोक चौधरी नीतीश कुमार
स्टोरी हाइलाइट्स
  • बिहार में दलित मतदाता 16 फीसदी हैं
  • अशोक चौधरी कांग्रेस के अध्यक्ष रहे हैं
  • दलित समुदाय को साधने में जुटी जेडीयू

बिहार विधानसभा चुनाव का बिगुल बज गया है. ऐसे में जेडीयू ने अपने राजनीतिक समीकरण मजबूत करने के लिए अशोक चौधरी को जेडीयू का प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष बनाया है. विधानसभा चुनाव से ठीक पहले नीतीश कुमार द्वारा महादलित समुदाय से आने वाले अशोक चौधरी की ताजपोशी को बिहार के 16 फीसदी दलित वोटरों तक राजनीतिक संदेश देने की कवायद के तौर पर देखा जा रहा है. 

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दरअसल, श्याम रजक जेडीयू छोड़कर आरजेडी में गए हैं और नीतीश कुमार को दलित विरोधी करार दे रहे हैं. दलित नेता उदय नारायण चौधरी पहले ही जेडीयू से अलग हो चुके हैं. वहीं, एलजेपी प्रमुख चिराग पासवान इन दिनों नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं. ऐसे में नीतीश कुमार की नजर दलित मतदाताओं पर है, जिसे साधने के लिए एक के बाद एक राजनीतिक दांव चल रहे हैं. इस कड़ी में उन्होंने जीतनराम मांझी को अपने साथ मिलाया और अब अशोक चौधरी को जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी सौंप दी है. 

अशोक चौधरी के लिए बनी जगह

जेडीयू के नीतीश कुमार के करीबी दलित नेताओं के साथ छोड़ने के बाद अशोक चौधरी को राजनीतिक अहमियत मिली है. लॉकडाउन के समय जिन गिने चुने लोगों से नीतीश कुमार हर दिन मुलाकात और वार्तालाप करते थे, उनमें अशोक चौधरी भी एक थे. ऐसे में नीतीश कुमार को उनको समझने का मौका मिला. श्याम रजक के जाने के बाद अशोक चौधरी जेडीयू में दलित चेहरा बनकर उभरे हैं. यही वजह रही कि नीतीश ने वर्चुअल रैली के वक्त भी अशोक चौधरी को अपने मंच पर जगह दी थी.

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कांग्रेस छोड़कर आए थे जेडीयू 

महादलित समुदाय से आने वाले अशोक चौधरी जेडीयू में आने से पहले बिहार कांग्रेस के चार साल से अधिक समय तक अध्यक्ष रहे हैं. राहुल गांधी के करीबी नेता माने जाते थे, लेकिन 1 मार्च 2018 को अशोक चौधरी ने कांग्रेस को अलविदा कह दिया था. 26 फरवरी 2018 को ही जीतनराम मांझी एनडीए छोड़कर महागठबंधन में गए थे और उसी समय अशोक चौधरी ने जेडीयू का दामन थामा था. इसके बाद नीतीश ने उन्हें जेडीयू की सदस्यता ही नहीं बल्कि अपनी कैबिनेट में शामिल किया था. 

एलजेपी अध्यक्ष चिराग पासवान लगातार नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं. इतना ही नहीं चिराग जेडीयू के खिलाफ प्रत्याशी उतारने तक की भी बात कह चुके हैं. ऐसे में चिराग पासवान अगर एनडीए से अलग होते हैं तो नीतीश कुमार एक बार फिर दलितों में पासवान समुदाय के वर्चस्व के खिलाफ जो महादलित वोट बैंक बनाया था उसे फिर से आक्रामक कर सकते हैं. चिराग अगर नीतीश के ऊपर हमला करेंगे तो अशोक उन्हें जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष होने के नाते जवाबी हमला कर सकते हैं. 

बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष रहे अशोक चौधरी को पार्टी चलाने का और चुनाव के समय क्या, कैसे करना है उसका अच्छा खासा अनुभव है और वो गठबंधन की बारीकियों को भी समझते हैं. ऐसे में नीतीश कुमार अशोक चौधरी को एक ट्रंप कार्ड के तौर भी इस्तेमाल कर सकते हैं. 

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दरअसल, नीतीश कुमार बिहार में दलित मतदाताओं को साधने की लगातार कोशिश कर रहे हैं. दलित के लिए कुछ दिन पहले नीतीश ने बड़ी घोषणा की थी कि प्रदेश में किसी भी दलित की हत्या होने पर उसके परिवार को सरकारी नौकरी दी जाएगी. 4 सितंबर 2020 को सीएम नीतीश कुमार ने अनुसूचित जाति- जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत सर्तकता और मानिटरिंग समिति की बैठक की थी, जिसमें उन्होंने यह फैसला लिया था. इसके अलावा सीएम नीतीश ने अधिकारियों को लंबित कांडों का निष्पादन सितंबर 2020 तक पूरा करने और विशेष न्यायालयों में विशेष लोक अभियोजक की नियुक्ति की प्रक्रिया में तेजी लाने का निर्देश दिया था.

नीतीश कुमार ने इस घोषणा को गांव तक पहुंचाने की जिम्मेदारी चार दलित मंत्री को दी है. भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी, उद्योग मंत्री महेश्वर हजारी, पथ निर्माण मंत्री संतोष निराला और अनुसूचित जाति जनजाति मंत्री कृष्ण कुमार ऋषि को इसकी जिम्मेदारी दी गई थी. इन चारों मंत्रियों ने अलग-अलग तारीखों में गांव-गांव जाकर सरकारी नौकरी देने की बात को घर-घर पहुंचाने का काम किया है. इसके अलावा जेडीयू 'मिशन दलित' कार्यक्रम भी शुरू कर रही है. दलित-महादलित समुदाय के लिए पिछले 15 सालों में नीतीश द्वारा किए गए कार्यों को बुकलेट जारी कर साधने की रणनीति अपना रही है. 

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