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नीतीश के 6 सिपहसलार, जिनके ऊपर है जेडीयू की चुनावी रणनीति का जिम्मा

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए 2015 में प्रशांत किशोर ने चुनावी रणनीति बनाने का काम किया था, जिसके दम पर नरेंद्र मोदी के विजयरथ को रोक सके थे. इस बार नीतीश ने किसी प्रोफेशनल की मदद लेने के बजाय अपने मंझे हुए खास राजनेताओं को चुनावी अभियान की जिम्मेदारी सौंपी है. 

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संजय झा, ललन सिंह, केसी त्यागी और आरसीपी सिंह
संजय झा, ललन सिंह, केसी त्यागी और आरसीपी सिंह
स्टोरी हाइलाइट्स
  • बिहार चुनाव के पहले चरण का नामांकन कल से
  • जेडीयू के चुनावी रणनीति को धार देने में जुटे ये दिग्गज
  • आरसीपी सिंह से लेकर ललन सिंह तक संभाल रहे जिम्मेदारी

बिहार विधानसभा चुनाव की सियासी जंग फतह करने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हरसंभव कोशिशों में जुटे हैं. पिछले 15 सालों से गठबंधन के सहारे सत्ता पर बने रहने का इतिहास रचने वाले नीतीश कुमार के लिए यह चुनाव काफी अहम माना जा रहा है. नीतीश के लिए 2015 में प्रशांत किशोर ने चुनावी रणनीति बनाने का काम किया था, जिसके दम पर नरेंद्र मोदी के विजयरथ को रोक सके थे. इस बार नीतीश ने किसी प्रोफेशनल की मदद लेने के बजाय अपने मंझे हुए खास राजनेताओं को चुनावी अभियान की जिम्मेदारी सौंपी है. 

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आरसीपी सिंह
जेडीयू में नंबर दो की हैसियत रखने वाले राज्यसभा सांसद आरसीपी सिंह इस बार चुनावी अभियान की रूप रेखा से लेकर राजनीतिक समीकरण बनाने का काम कर रहे हैं. आरसीपी सिंह के पास बतौर नौकशाह लंबा प्रशासनिक अनुभव भी है. चुनाव के लिए प्रत्‍याशियों के चुनाव से लेकर सहयोगी दलों से बातचीत तक में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. नीतीश कुमार के सबसे करीबी नेता माने जाते हैं और जेडीयू के वार रूम में अहम रोल अदा कर रहे हैं. 

ललन सिंह
नीतीश कुमार के सबसे भरोमंद माने जाने वाले ललन सिंह मुंगेर से सासंद हैं. जेडीयू के भूमिहार चेहरा माने जाते हैं और महागठबंधन से नीतीश के अलग होने के बाद उनका सियासी कद काफी बढ़ा है. मौजूदा समय में नीतीश के आंख-कान माने जाते हैं. आरजेडी विधायकों और एमएलसी को तोड़कर जेडीयू खेमे में लाने के काम में ललन सिंह की अहम भूमिका रही है. विधानसभा चुनाव को लेकर नेताओं से जोड़-तोड़ और एनडीए में सीट शेयरिंग को लेकर सहयोगी दलों से बातचीत की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं. इतना ही नहीं जेडीयू के लिए सवर्ण वोट साधने का भी काम कर रहे हैं. 

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अशोक चौधरी

कांग्रेस से जेडीयू में आए अशोक चौधरी ने बहुत कम समय में नीतीश कुमार का विश्वास जीतने में सफल रहे हैं. दो दिन पहले ही नीतीश ने अशोक चौधरी को बिहार जेडीयू का कार्यकारी अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी है. वो महादलित समुदाय से आते हैं और कांग्रेस में रहने के दौरान चार साल तक प्रदेश अध्यक्ष की कमान भी संभाल चुके हैं, जिससे वे कुशल रणनीतिकार और सांगठनिक क्षमता को बखूबी समझते हैं. वर्चुअल रैली के दौरान उन्होंने अपनी जिम्मेदारी को बेहतर तरीके से निभाया है, जिसके चलते उन्हें दलित समुदाय को साधने की जिम्मेदारी मिली है. 

वशिष्ठ नारायण सिंह
जेडीयू के प्रदेश अध्‍यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह पार्टी के बुजुर्ग और नीतीश कुमार के भरोमंद माने जाते हैं. इन्हें जेडीयू कार्यकर्ता दादा कहकर पुकारते हैं. जेडीयू कार्यकर्ताओं और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीच पुल का काम करते हैं. जेडीयू के जो नेता और कार्यकर्ता अपनी बात नीतीश तक नहीं पहुंचा पाते हैं, वो वशिष्ठ नारायण के जरिए पहुंचाते हैं. बिहार में जेडीयू के सभी जिला और विधानसभा अध्यक्ष को सीधे तौर पर जानते हैं. ऐसे में चुनावी अभियान में उन्हें संगठन की जिम्मेदारी दी गई है. 

संजय झा
जेडीयू नेता संजय झा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी नेताओं में गिने जाते हैं. सोशल मीडिया में पार्टी और सरकार की मजबूती की जिम्मेदारी संजय झा के कंधों पर है. कोरोना संकट के बीच जेडीयू की वर्चुअल रैली को सफल बनाने में संजय झा की अहम भूमिका रही है. इस बार के चुनाव प्रचार अभियान को सोशल मीडिया में धार देने की जिम्मेदारी नीतीश कुमार ने उन्हें सौंपी है. इतना ही नहीं जेडीयू के साथ ब्राह्मणों को जोड़ने का काम भी उन्हें सौंपा गया है. 

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विजय चौधरी
जेडीयू नेता विजय चौधरी बिहार विधानसभा के अध्यक्ष हैं. नीतीश के सबसे भरोसेमंद माने जाते हैं, जिसके चलते 2015 में उन्हें स्पीकर की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. विजय चौधरी लाइमलाइट के बजाय खामोशी से पर्दे के पीछे से काम करते हैं. नीतीश कुमार के चुनावी चाणक्य माने जाते हैं और जीतन राम मांझी को जेडीयू के साथ लाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है. बिहार की राजनीति को बेहतर तरीके से समझते हैं और जातीय राजनीति के खिलाड़ी माने जाते हैं. 

 

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