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तेजस्वी से छांव क्यों समेट रहा है लालू के आंगन का सबसे बड़ा समाजवादी बरगद

रघुवंश प्रसाद सिंह आरजेडी के उन चुनिंदा नेताओं में से एक रहे हैं, जिन्होंने पार्टी की बुनियाद रखने से लेकर लालू यादव को बुलंदियों तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई है. रघुवंश प्रसाद ने अपनी समाजवादी विचाराधारा से कभी भी समझौता नहीं किया और न ही अपने दामन पर कोई भ्रष्टाचार दाग लगने दिया. ऐसे में लालू के आंगन का सबसे बड़ा समाजवादी बरगद माने जाने वाले रघुवंश प्रसाद सिंह आखिर तेजस्वी के सिर से अपनी छांव क्यों समेटना लेना चाहते हैं? 

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लालू यादव, रघुवंश प्रसाद, राबड़ी देवी
लालू यादव, रघुवंश प्रसाद, राबड़ी देवी
स्टोरी हाइलाइट्स
  • लालू-रघुवंश एक साथ सियासत में आए थे
  • रघुवंश के जाने से RJD को सियासी नुकसान होगा
  • लालू यादव समझते हैं रघुवंश की सियासी अहमियत

रघुवंश प्रसाद सिंह ने आरजेडी से इस्तीफा देकर लालू प्रसाद यादव से अपना रास्ता अलग करने का फैसला कर लिया है. रघुवंश आरजेडी के उन चुनिंदा नेताओं में से एक रहे हैं, जिन्होंने पार्टी की बुनियाद रखने से लेकर लालू यादव को बुलंदियों तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई है. अपने चार दशक के सियासी सफर में रघुवंश प्रसाद ने अपनी समाजवादी विचाराधारा से कभी भी समझौता नहीं किया और न ही अपने दामन पर कोई भ्रष्टाचार का दाग लगने दिया. लालू यादव के जेल जाने के बाद से उनकी सियासी विरासत उनके बड़े बेटे तेजस्वी यादव के हाथों में है. ऐसे में लालू के आंगन का सबसे बड़ा समाजवादी बरगद माने जाने वाले रघुवंश प्रसाद सिंह आखिर तेजस्वी के सिर से अपनी छांव क्यों समेटना लेना चाहते हैं? 

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रघुवंश प्रसाद सिंह और लालू यादव अपना सियासी सफर एक साथ और एक ही राजनीति विचारधारा के साथ करते रहे हैं. दोनों लोकदल में रहते हुए समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर के बेहद करीबियों में शामिल रहे थे. कर्पूरी ठाकुर के निधन बाद रघुवंश ही लालू यादव को बिहार की राजनीति में आगे बढ़ाने में सबसे बड़े सारथी के तौर पर खड़े नजर आए थे. तमाम विकट परिस्थितियों के बावजूद भी रघुवंश प्रसाद सिंह राजपूत समाज से आते हुए दलित-पिछड़ों की राजनीति करते रहे और आरजेडी का साथ नहीं छोड़ा.

लालू को 1988 में नेता प्रतिपक्ष बनने से लेकर जनता दल बनी तो रघुवंश ने लालू का साथ नहीं छोड़ा. भरोसे का रिश्ता तब और मजबूत हुआ जब 1997 में लालू ने जनता दल से अलग हटकर राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) बनाया. रघुवंश उसके संस्थापक सदस्यों में से थे. इतना ही नहीं यहां तक कि आरजेडी का संविधान भी लालू ने उनकी सहमति से ही फाइनल किया था. इसीलिए कहा जाता है कि लालू यादव जो सोचते रघुवंश बाबू उसे बोलते थे.  

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आरजेडी में रघुवंश प्रसाद सिंह एकमात्र ऐसे नेता थे जिनके दामन के ऊपर अब तक कोई दाग नहीं लगा. सादगी भरे रहन सहन और स्पष्टवादी होने की वजह से उनकी छवि एक ईमानदार नेता के तौर पर मानी जाती है. आज की तारीख में आरजेडी के कई नेता हैं, जो कई तरह के आरोपों में जेल में बंद हैं. ऐसे में रघुवंश प्रसाद ही एकमात्र ऐसे नेता थे जो आरजेडी में समाजवादी का झंडा बुलंद किए हुए थे. आरजेडी के सियासी संकट के बीच वो पार्टी के साथ खड़े रहे. हालांकि, कई बार अन्य दलों की ओर से उन्हें वरिष्ठ पद देने का ऑफर दिया जा चुका है, लेकिन रघुवंश प्रसाद सिंह ने लालू प्रसाद को छोड़कर कभी किसी दल में जाने की इच्छा नहीं जाहिर की. 

हाल के फैसलों पर रघुवंश को था एतराज

लालू यादव के जेल जाने के बाद आरजेडी में वरिष्ठ नेताओं की कमी हो गई है. रघुवंश प्रसाद ही वह चेहरा माने जाते हैं जो पार्टी के उम्रदराज कार्यकर्ताओं को पार्टी के साथ जोड़े रखने में अहम भूमिका अदा करते रहे हैं. लालू के बाद पार्टी की कमान तेजस्वी यादव के हाथ में है और वो पार्टी को अपने अंदाज में चलाना चाहते हैं. ऐसे में तेजस्वी वरिष्ठ नेताओं से राय मशवरा करने के बजाय अपने मर्जी से संगठन में नेताओं की नियुक्तियां कर रहे हैं और राजनीतिक फैसले ले रहे हैं. हाल ही में आरजेडी के अंदर ऐसे फैसले हुए हैं, जिन्हें लेकर रघुवंश प्रसाद ने खुलकर एतराज जाहिर किया था. 

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रघुवंश प्रसाद सिंह आरजेडी प्रमुख लालू यादव के समय भी अपनी बात बेबाकी से रखा करते थे. इस पर लालू भी कभी उन्हें लेकर सार्वजानिक रूप से कोई टीका टिप्पणी नहीं करते थे. लेकिन, अब लालू के बेटों को यह रास नहीं आता है कि उनके राजनीतिक निर्णयों पर पार्टी में कोई सवाल खड़ा करे. यही वजह रही कि बाहुबली रामा सिंह को आरजेडी में शामिल कराने की बात सामने आई तो रघुवंश प्रसाद ने विरोध किया. इस पर लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव ने कहा था की पार्टी एक समुद्र के समान होता है उसमें से एक लोटा पानी निकलने से समुद्र को कोई फर्क नहीं पड़ता. 

दरअसल, रघुवंश प्रसाद की राजनीतिक अहमियत को लालू यादव ही समझते थे, लेकिन उनके बेटे नहीं समझ रहे हैं. इसीलिए रामा सिंह ही नहीं कई ऐसे मामले हुए जिन्हें लेकर रघुवंश प्रसाद सिंह ने पार्टी में एतराज जताया, लेकिन तेजस्वी यादव ने उनकी बातों को दरकिनार कर अपने मन मुताबिक फैसले लिए. रामा सिंह ही नहीं जगदानंद सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की बात रही हो या फिर सवर्ण आरक्षण पर पार्टी के स्टैंड का सवाल रहा हो. इन सारे मामलों में तेजस्वी यादव ने रघुवंश की बातों को तवज्जो नहीं दी. ऐसे में रघुवंश प्रसाद सिंह ने आरजेडी से अलग होने का निर्णय कर लिया. 

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रघुवंश के छोड़ने से पार्टी को होगा बड़ा नुकसान

रघुवंश प्रसाद ने आरजेडी छोड़ने के लिए लालू यादव को पत्र लिखते हुए कहा था, 'जननायक कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद 32 वर्षों तक आपके पीठ पीछे खड़ा रहा, लेकिन अब नहीं. पार्टी के नेता, कार्यकर्ताओं और आमजन ने बड़ा स्नेह दिया, मुझे क्षमा करें.' रघुवंश प्रसाद के जाने से लालू प्रसाद यादव को दुख होना लाजिमी है, क्योंकि रघुवंश ऐसे नेता हैं जिनसे लालू अपना घरेलू सुख दुख भी शेयर किया करते थे. ऐसे में आरजेडी को जहां राजनीतिक नुकसान होगा, वहीं लालू को रघुवंश के पार्टी से अलग होने पर व्यक्तिगत नुकसान भी होगा. 

लालू यादव ने जेल में रहते हुए रघुवंश प्रसाद को पत्र लिखकर उन्हें मनाने की कोशिश की है.रांची स्थित होटवार जेल के अधीक्षक की अनुमति से पत्र मीडिया में जारी कराया. लालू प्रसाद यादव ने लिखा है, 'प्रिय रघुवंश बाबू, आपके द्वारा कथित तौर पर लिखी एक चिट्ठी मीडिया में चलाई जा रही है. मुझे वो विश्वास ही नहीं होता. अभी मेरे और मेरे परिवार के साथ ही आरजेडी परिवार भी आपको स्वस्थ होकर अपने बीच देखना चाहता है. चार दशकों में हमने हर राजनीतिक, सामाजिक और यहां तक कि पारिवारिक मामले में मिल बैठकर विचार किया है. आप जल्द स्वस्थ हों, फिर बैठ के बात करेंगे आप कहीं नहीं जा रहे हैं. यह समझ लीजिए.' 

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दरअसल, चार मामले में सजायाफ्ता लालू प्रसाद यादव के पास अब वैसी राजनीतिक ताकत नहीं है, जैसी कि पहले हुआ करती थी. सामाजवादी नेता रघुवंश प्रसाद सिंह का चुनाव से ठीक पहले आरजेडी का छोड़ना, लालू प्रसाद यादव के राजनीतिक ताकत को और भी कम कर देगा. हालांकि अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि रघुवंश प्रसाद सिंह किसी दूसरी पार्टी का दामन थामेंगे या नहीं, लेकिन लालू यादव ने जरूर उन्हें कहीं नहीं जाने की सलाह दी है. रघुवंश के आरजेडी छोड़ने के बाद समाजवादियों का भी लालू प्रसाद यादव से मोह भंग हो सकता है. रघुवंश प्रसाद सिंह राजपूत समाज के साथ-साथ अति पिछड़ा और पिछड़ा जाति में भी अपनी अच्छी पैठ रखते हैं, जिसके चलते पार्टी को नुकसान तय माना जा रहा है. हालांकि, जेडीयू उन्हें लगातार पार्टी में आने का ऑफर दे रही है.  


 

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