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रामविलास पासवान को भारतीय राजनीति का ऐसा नेता माना जाता है जो बहुत जल्द ही हवा का रुख पहचान लेते हैं. कभी कांग्रेस की सत्ता के खिलाफ इमरजेंसी के दौरान वह जेल गए तो उसी की अगुवाई वाली यूपीए सरकार में मंत्री भी रहे. तब जो बीजेपी उनकी नीतियों का विरोध करती थी आज के दौर में उसी एनडीए की सरकार में पासवान फिर से मंत्री हैं.
कैसा रहा शुरुआती सफर
रामविलास पासवान के पास लंबा राजनीतिक अनुभव है और वह छह प्रधानमंत्रियों की कैबिनेट में मंत्री रह चुके हैं. छात्र राजनीति में सक्रिय रामविलास पासवान ने जयप्रकाश नारायण के समाजवादी आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. साल 1969 में पहली बार पासवान बिहार के विधानसभा चुनावों में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीवदवार के रूप निर्वाचित हुए. 1974 में जब लोक दल बना तो पासवान उससे जुड़ गए और महासचिव बनाए गए. साल 1975 के आपातकाल का विरोध करते हुए पासवान जेल भी गए.
पहली बार कब बने सांसद
रामविलास पासवान पहली बार साल 1977 में जनता पार्टी के उम्मीददवार के रूप में हाजीपुर सीट जीतकर लोकसभा पहुंचे थे. हाजीपुर में उन्होंने रिकॉर्ड वोट से जीत हासिल कर सबसे ध्यान खींचा. इसके बाद साल 1980 के लोकसभा चुनावों में इसी सीट से जीत हासिल की.
6 प्रधानमंत्रियों के मंत्री
रामविलास पासवान ने 1983 में दलितों के उत्थादन के लिए दलित सेना का गठन किया और 1989 में नवीं लोकसभा में तीसरी बार लोकसभा के लिए चुने गए. केंद्र की वीसी सिंह सरकार में उन्हें पहली बार कैबिनेट में जगह मिली और श्रम कल्याण मंत्री बनाया गया. इसके बाद एचडी देवगौड़ा और आईके गुजरात की सरकार में साल 1996 से 1898 तक पासवान को रेल मंत्री बनाया गया.
रामविलास पासवान साल 1998 तक रेल मंत्री रहे फिर केंद्र का निजाम बदल गया. अब एनडीए की सरकार के हाथ में दिल्ली की सत्ता थी. लेकिन पासवान को फिर से 1999 की अटल बिहारी सरकार में सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्रालय का जिम्मा दिया गया. इसके बाद रामविलास पासवन को खनन मंत्री बनाया गया और वह 2001-02 में इस पद पर रहे. इस बीच उन्होंने साल 2000 में जनता दल यूनाइटेड से अलग होकर लोकजनशक्तिं पार्टी (लोजपा) का गठन किया.
गुजरात दंगों के बाद दिया इस्तीफा
पासवान साल 2002 के गुजरात दंगों के बाद विरोध में एनडीए से बाहर चले गए जिसके बाद उन्होंने यूपीए का हाथ थाम लिया. कहा ये भी जाता है कि पासवान पहले से ही वाजपेयी सरकार से बाहर जाने का रास्ता खोज रहे थे क्योंकि वहां उनका सियासी कद कम हो रहा था. इस बीच गुजरात के दंगों ने उन्हें एक तरह से सरकार से बाहर होने का एग्जिट गेट दिया और वह इस कदम से अपनी सेक्युलर नेता की छवि बनाने में भी सफल रहे.
साल 2004 में जब मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए की सरकार बनी तो रामविलास पासवान को रसायन एवं उर्वरक मंत्री बनाया गया. वह लगातार 5 साल इस पद पर रहे.
जब बनाया चौथा मोर्चा...
2009 के लोकसभा चुनाव में पासवान ने यूपीए का साथ छोड़ दिया और लालू यादव की आरजेडी के साथ मिलकर चौथा मोर्चा खड़ा किया. इस गठबंधन में उन्हें बाद में मुलायम सिंह यादव की सपा का भी साथ मिला. हालांकि 2009 के चुनाव में पासवान 33 साल में पहली बार अपनी परंपरागीत सीट हाजीपुर से चुनाव हार गए. साथ ही उनकी पार्टी लोजपा का लोकसभा चुनाव में खाता भी नहीं खुल सका.
इसके बाद पासवान को 2010 में आरजेडी की मदद से राज्यसभा के लिए चुना गया. लेकिन अपना कार्यकाल पूरा करने से दो साल पहले ही वह सदस्यता छोड़कर एनडीए का हिस्सा बनकर 2014 के लोकसभा चुनाव में उतर गए. इस बार उन्हें हाजीपुर की जनता ने निराश नहीं किया और उन्होंने इस सीट से एक बार फिर जीत हासिल की.
नरेंद्र मोदी की सरकार के पहले कार्यकाल में पासवान को उपभोक्ता मामलों का मंत्री बनाया गया. फिर 2019 में पासवान ने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया और वह राज्यसभा के रास्ते संसद भवन पहुंचे. लेकिन इस बार भी उन्हें फिर से खाद्य और उपभोक्ता मामलों का मंत्री नियुक्त किया गया है.
रामविलास पासवान देश के सबसे अनुभवी नेताओं में से एक हैं. उनके पास 5 दशक से भी ज्यादा का संसदीय अनुभव है जिसमें वह 9 बार लोकसभा और दो बार राज्यसभा सांसद रहे हैं. इससे साथ ही अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत में वह एक बार बिहार विधानसभा के लिए भी चुने जा चुके हैं.