scorecardresearch
 

गठबंधन की सीट शेयरिंग में कई दिग्गज नेताओं की बदल गई परंपरागत सीट

बिहार में गठबंधन में शामिल दलों के सहयोगी बदलने से सियासत भी बदल गई है. राजनीतिक समीकरण और गठबंधन के सीट शेयरिंग में कई दिग्गज नेताओं की परंपरागत सीटें बदल गई हैं. इसके चलते एनडीए और महागठबंधन के शामिल दलों के नेताओं को अन्य दूसरी सीट पर चुनाव लड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा रहा है या फिर चुनावी मैदान से ही खुद को बाहर कर लिया है.

Advertisement
X
राबड़ी देवी, तेजस्वी यादव और श्याम रजक
राबड़ी देवी, तेजस्वी यादव और श्याम रजक
स्टोरी हाइलाइट्स
  • आरजेडी नेता श्याम रजक की सीट माले के खाते में
  • रामेश्वर चौरसिया की नोखा जेडीयू के कोटे में चली गई
  • गठबंधन के चलते फराज फातमी की सीट बदली

बिहार विधानसभा चुनाव के बदले हुए राजनीतिक समीकरण और गठबंधन के सीट शेयरिंग में कई दिग्गज नेताओं की परंपरागत सीटें बदल गई हैं. इसके चलते एनडीए और महागठबंधन के शामिल दलों के नेताओं को अन्य दूसरी सीट पर चुनाव लड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा रहा है या फिर चुनावी मैदान से ही खुद को बाहर कर लिया है.

Advertisement

श्याम रजक 
बिहार के दलित नेता व पूर्व मंत्री श्याम रजक ने चुनाव से ठीक पहले जेडीयू का दामन छोड़कर आरजेडी में शामिल गए हैं. इसके बावजूद वो अपनी पारंपरिक विधानसभा सीट फुलवारी शरीफ से चुनावी मैदान में नजर नहीं आएंगे, क्योंकि महागठबंधन के सीट बंटवारे में उनकी यह सीट सीपीआई (माले) के खाते में चली गई है. ऐसे में वो आरजेडी से इस सीट पर चुनाव नहीं लड़ सकेंगे, जबकि 1995 से लगातार श्याम रजक यहां से जीत दर्ज करने में कामयाब रहे हैं. ऐसे में आरजेडी की लिस्ट में अभी तक दूसरी सीट से भी उनके नाम की घोषणा नहीं हुई है. 
 

रमेश्वर चौरसिया
बिहार में बीजेपी के अति पिछड़ा चेहरा माने जाने वाले रामेश्वर चौरसिया की परंपरागत नोखा विधानसभा सीट जेडीयू के खाते में चली गई है. ऐसे में उन्होंने बीजेपी छोड़कर एलजेपी का दामन थाम लिया है और अब जेडीयू के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरेंगे. रामेश्वर चौरस‍िया बीजेपी के ट‍िकट पर नोखा व‍िधानसभा सीट से लगातार तीन बार 2000 से लेकर 2015 तक व‍िधायक रह चुके हैं. ऐसे में अब वो एलजेपी से चुनावी मैदान में ताल ठोंकेंगे. 
 

Advertisement

डॉ. उषा और राजेंद्र सिंह
बीजेपी की वरिष्ठ नेता रहीं और पूर्व विधायक डॉ. उषा विद्यार्थी की पालीगंज सीट भी एनडीए के साथ बंटवारे में जेडीयू में चली गई है. ऐसे में वो वो अपनी ही सीट से चुनाव लड़ने के लिए एलजेपी का दामन थाम लिया है. इस सीट से 2010 में वो विधायक रह चुकी हैं. ऐसे ही बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष रहे राजेंद्र सिंह दिनारा सीट जेडीयू के कोटे में चली गई है. ऐसे में वे एलजेपी का दामन थामकर चुनावी मैदान में उतरे हैं. राजेंद्र सिंह बीजेपी के साथ-साथ संघ के प्रचारक भी रहे हैं.

राजीव रंजन और प्रेम रंजन पटेल
बीजेपी के प्रवक्ता प्रेमरंजन पटेल की परंपरागत सीट सूर्यगढ़ा इस बार जेडीयू के कोटे में चली गई है. ऐसे में उनके चुनाव लड़ने पर ग्रहण लग गया है. बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष राजीव रंजन की इस्लामपुर सीट जेडीयू के कोटे में चली गई है. 2010 में इस सीट से राजीव रंजन विधायक चुने गए थे और इस बार फिर चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी में थे, लेकिन अब वो कशमकश में फंस गए हैं. 

फराज फातमी की बदली सीट

ऐसे ही बीजेपी के विधायक संजय टाइगर की संदेश विधानसभा सीट भी जेडीयू के कोटे में चली गई है. पूर्व मंत्री और सांसद रह चुकी रेणु कुशवाहा के चुनाव लड़ने की अरमानों पर पानी फिर गया है. इसी फेहरिश्त में पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह का नाम जुड़ गया है. वहीं, आरजेडी छोड़कर जेडीयू में आए पूर्व केंद्रीय मंत्री अशरफ अली फातमी के बेटे फराज फातमी केवटी सीट से विधायक थे, लेकिन यह सीट बीजेपी के खाते में चली गई है. ऐसे में फराज फातमी को दरभंगा ग्रामीण सीट से जेडीयू ने टिकट दिया है. वहीं, आरजेडी की चार जीती हुई सीटें सीपीआई (माले) को चली गई है, जहां से अब उनके विधायकों के चुनाव लड़ने पर संकट के बादल छा गए हैं. 
 

Advertisement

 

Advertisement
Advertisement