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13 में से एक सीटः बीजेपी के लिए क्यों बंजर बनी हुई है कोसी की सियासी जमीन

बिहार के कोसी इलाके की राजनीतिक जमीन जेडीयू और आरजेडी के लिए काफी उपजाऊ रही है जबकि बीजेपी के लिए आज भी बंजर बनी हुई है. पिछले चुनाव में लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार ने मिलकर एनडीए का सफाया कर दिया था. हालांकि, इस बार समीकरण बदले हुए हैं, ऐसे में देखना है कि कोसी में कौन सियासी बाजी मारता है.

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बिहार चुनाव: बीजेपी रैली (फाइल फोटो)
बिहार चुनाव: बीजेपी रैली (फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • बिहार के कोसी में बीजेपी के पास महज एक सीट
  • नीतीश के साथ भी बीजेपी करिश्मा नहीं दिखा सकी
  • जेडीयू का मजबूत दुर्ग है बिहार का कोसी इलाका

बिहार का कोसी इलाका तकरीबन हर साल बाढ़ से तबाही का दंश झेलता है. इसी तबाही पर राजनीतिक दल अपनी सियासी फसलें भी काटते रहे हैं, लेकिन यहां की स्थिति जस की तस बनी हुई है. कोसी इलाके में न तो बाढ़ की तबाही रुक रही है और न ही यहां के लोगों का पलायन रुकने का नाम ले रहा है. विकास से कोसों दूर कोसी की सूरत 70 साल के बाद भी बदलने का नाम नहीं ले रही है जबकि पूर्व मुख्यमंत्री बीपी मंडल से लेकर लालू यादव, भोला पासवान शास्त्री और शरद यादव जैसे नेता यहां से प्रतिनिधित्व करते रहे हैं. 

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कोसी इलाके की राजनीतिक जमीन जेडीयू और आरजेडी के लिए काफी उपजाऊ रही है जबकि बीजेपी के लिए आज भी बंजर बनी हुई है. पिछले चुनाव में लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार ने मिलकर एनडीए का सफाया कर दिया था. हालांकि, इस बार समीकरण बदल गए है. नीतीश कुमार फिर से एनडीए में वापसी कर गए हैं, जिनके सहारे बीजेपी इस इलाके में कमल खिलाने की जुगत में है. वहीं, आरजेडी के लिए पप्पू यादव से लेकर एनडीए तक एक बड़ी चुनौती बने हुए हैं. 

बिहार के कोसी प्रमंडल में तीन जिले आते हैं, जिनमें मधेपुरा, सहरसा और सुपौल शामिल हैं. इन तीन जिलों में कुल 13 विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें से महज एक सीट बीजेपी को 2015 में मिली थी. वहीं, आरजेडी को 4 और जेडीयू को आठ सीटों पर जीत मिली थी. हालांकि, जेडीयू ने एक सीट पिछले साल गंवा दिया. पिछले दो चुनाव से इस क्षेत्र में कांग्रेस, वामदल, जन अधिकार मोर्चा सहित अन्य पार्टियां कोई खास असर नहीं दिखा सकी हैं. 

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मधेपुरा में जेडीयू का कब्जा 

मधेपुरा जिले में चार विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें आलमनगर, बिहारीगंज, सिंगेश्वर और मधेपुरा सीट शामिल हैं. 2015 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन ने क्लीन स्वीप किया था जबकि बीजेपी यहां खाता भी नहीं खोल सकी थी. जेडीयू ने आलमनगर, बिहारीगंज और सिंगेश्वर सीट पर जेडीयू ने जीत दर्ज किया था और मधेपुरा सीट पर आरजेडी ने जीत हासिल की थी. 

सहरसा में आरजेडी का कब्जा

कोसी के सहरसा जिले में चार विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें सोनवर्षा, महिषी, सहरसा और सिमरी बख्तियारपुर विधानसभा सीट शामिल हैं. 2015 के चुनाव में जेडीयू ने सोनवर्षा और सिमरी बख्तियारपुर सीट पर जीत दर्ज की थी और आरजेडी महिषी और सहरसा विधानसभा सीट जीतने में कामयाब रही थी. बीजेपी यहां भी खाता नहीं खोल सकी थी. वहीं, सिमरी बख्तियारपुर सीट से जेडीयू विधायक के सांसद बन जाने के बाद यहां हुए उपचुनाव में आरजेडी ने कब्जा जमाया था. इस तरह से तीन सीटों पर आरजेडी का कब्जा है. 

सुपौल जेडीयू का मजबूत दुर्ग

कोसी इलाके के तीसरे जिले सुपौल में पांच विधानसभा सीटें आती हैं. यहां सुपौल, निर्मली, त्रिवेणीगंज, पिपरा और छातापुर विधानसभा सीटें आती हैं. 2015 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन ने एनडीए का सफाया कर दिया था. जेडीयू ने सबसे ज्यादा तीन सीटें जीती थी, जिनमें सुपौल, निर्मली और त्रिवेणीगंज थी. वहीं, आरजेडी ने पिपरा और बीजेपी ने छातापुर की सीट जीतने में कामयाब रही थी. 

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कोसी में 2010 का समीकरण

2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में कोसी प्रमंडल के तीन जिलों की 13 सीटों में से आरजेडी को महज दो सीटें ही मिली थी. इनमें सहरसा जिले के महिषी और मधेपुरा जिले के मधेपुरा सीट पर आरजेडी के विधायक बने थे. वहीं, आलमनगर, बिहारगंज, सिगेंश्वर, सोनवर्षा के अलावा सुपौल, पिपरा, निर्मली, छातापुर और त्रिवेणीगंज पर जेडीयू ने कब्जा जमाया था. बीजेपी को 2010 के विधानसभा चुनाव में पिछली चुनाव की तरह सहरसा की एक मात्र सीट पर संतोष करना पड़ा था. 

 

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