विधानसभा चुनाव के ताप से बिहार की सियासी धरती तपने लगी है. कांग्रेस बिहार में पिछले तीस साल से सत्ता का वनवास झेल रही है और आरजेडी की पिछलग्गू बनकर रह गई है. इसके बावजूद पूर्णिया प्रमंडल आज भी कांग्रेस का सबसे मजबूद दुर्ग बना हुआ है, जहां पिछले चुनाव में महागठबंधन के सहारे वो सबसे ज्यादा सीटें जीतने में वो कामयाब रही है. इस बार के बदले हुए सियासी समीकरण में कांग्रेस के लिए अपना किला बचाए रखने की सबसे बड़ी चुनौती है.
बता दें कि बिहार के पूर्णिया प्रमंडल में किशनगंज, पूर्णिया, अररिया और कटिहार जिले की 24 विधानसभा सीटें आती हैं. मुस्लिम-यादव बहुल इस इलाके में कांग्रेस का एकछत्र राज कायम है जबकि बीजेपी और जेडीयू मिलकर सेंधमारी करने की जुगत में है. 2015 के चुनाव में कांग्रेस इस इलाके में सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी थी. कांग्रेस ने अकेले आठ सीटों पर जीत दर्ज की थी जबकि महागठबंधन को टोटल 17 सीटें मिली थी. वहीं बीजेपी को 6 और एक सीट सीपीआई माले को गई थी.
अररिया में एनडीए का पल्ला भारी
अररिया जिले में कुल 6 विधानसभा सीटें आती है, जिनमें नरपतगंज, रानीगंज, फारबिसगंज, अररिया, सिकटी और जोकीहाट सीट शामिल है. 2015 के विभानसभा चुनाव में जेडीयू और बीजेपी को दो-दो सीटों पर जीत मिली थी. बीजेपी के खाते में फारबिसगंज और सिकटी, आरजेडी को नरपतगंज और कांग्रेस को अररिया सीट मिली थी जबकि जेडीयू ने रानीगंज और जोकीहाट पर जीत दर्ज की थी.
कटिहार कांग्रेस का मजबूत दुर्ग
बिहार के कटिहार जिले में कुल सात विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें कटिहार, कदवा, बलरामपुर, प्राणपुर, मनिहारी, बरारी और कोढा सीटें शामिल हैं. 2015 के चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस बनकर उभरी थी. कांग्रेस ने तीन सीटें जीती जबकि बीजेपी को दो, आरजेडी को एक और सीपीआई माले को एक सीट मिली थी. हालांकि, 2015 के चुनाव में बीजेपी ने पांच सीटें यहां से जीती थी.
किशनगंज में कांग्रेस-जेडीयू
बिहार का किशनगंज जिला मुस्लिम बहुल माना जाता है. यहां कुल चार विधानसभा सीटें आती है, जिनमें बहादुरगंज, ठाकुरगंज, किशनगंज और कोचाधामन सीटें शामिल हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में जेडीयू और कांग्रेस को दो-दो सीटें मिली थीं. जेडीयू ने ठाकुरगंज और कोचाधामन जबकि कांग्रेस ने किशनगंज और बहादुरगंज की सीट पर कब्जा जमाया था. हालांकि, किशनगंज सीट पर पिछले साल हुए उपचुनाव में कांग्रेस से ओवैसी की पार्टी AIMIM ने छीन लिया है.
पूर्णिया में एनडीए का दबदबा
पूर्णिया में सात विधानसभा सीटे हैं, जिनमें कस्बा, बनमनखी, रुपौली, धमदाहा, पूर्णिया, अमौर और बैसी सीट शामिल है. 2015 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी को महज एक सीट मिली थी बाकी कांग्रेस, जेडीयू और बीजेपी दो-दो सीटें जीतने में कामयाब रही थी. रूपौली-धमदाहा सीट से जेडीयू के विधायक हैं तो पूर्णिया सदर व बनमनखी सीट से बीजेपी के विधायक हैं. वहीं, कसबा और अमौर में कांग्रेस और बायसी में आरजेडी विधायक का कब्जा है.
सीमांचल से तीन मंत्री
सीमांचल से बिहार सरकार में तीन मंत्री भी हैं. इसमें दो पूर्णिया व एक कटिहार जिले से हैं. बनमनखी से भाजपा विधायक कृष्ण कुमार ऋषि, रूपौली से जेडीयू विधायक बीमा भारती और कटिहार के प्राणपुर से भाजपा विधायक विनोद सिंह मंत्री हैं. सीमांचल में चार सीटें अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित हैं. पूर्णिया में बनमनखी विधानसभा, अररिया में रानीगंज, कटिहार में कोढ़ा और मनिहारी विधानसभा सीट सुरक्षित हैं.
राजनीतिक ट्रंप कार्ड AIMIM
मधेपुरा से पूर्व सांसद पप्पू यादव अपने राजनीतिक वजूद को बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. पप्पू यादव की जनाधिकार मोर्चा का पूर्णिया प्रमंडल में राजनीति पकड़ मानी जाती है. लगभग डेढ़ दर्जन विधानसभा क्षेत्रों की राजनीति को प्रभावित करने का माद्दा रखते हैं. इसके अलावा ट्रंप कार्ड के तौर पर असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM की दखल मुस्लिम समुदाय के बीच काफी बढ़ी है. यहां के आंकड़े बताते हैं कि यहां अनुसूचित जाति अल्पसंख्यक और पिछड़ों की संख्या ज्यादा है.
इस इलाके में आरजेडी की तूती बोलती थी, लेकिन बदलते राजनीतिक समीकरण के कारण अब सबकुछ बिखरा-बिखरा नजर आ रहा है. पूर्णिया प्रमंडल में जेडीयू के साथ आने से बीजेपी की पकड़ पहले से भी बेहतर मानी जा रही है. एनडीए को उम्मीद है कि ओवैसी के चलते मुस्लिम वोटों का बंटवारा हुआ तो इस पूरे इलाके में वो क्लीन स्वीप करने की जुगत में है. ऐसे में सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस के लिए बन गई है. पूर्णिया में कांग्रेस इस चक्रव्यूह में कैसे अपना सियासी जमीन बचाए रखने में कामयाब रहेगी?