''मुझे पहले सिर्फ राजद के लोगों से खतरा था लेकिन अब एनडीए में भी मेरी जान के दुश्मन हैं.'' ये बयान उस शख्स के हैं जिसने सीवान की राजनीति में शहाबुद्दीन के आतंक के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी और 10 साल सांसद भी रहे. हम बात कर रहे हैं सीवान के पूर्व सांसद ओमप्रकाश यादव की. विधानसभा चुनाव से पहले सीवान बीजेपी के सीनियर लीडर ओमप्रकाश यादव एनडीए नेताओं के निशाने पर हैं.
कौन है ओमप्रकाश यादव?
वैसे तो ओमप्रकाश यादव सीवान से लगातार दो बार ( 2009, 2014 ) सांसद रहे हैं लेकिन उन्होंने शहाबुद्दीन के खिलाफ संघर्ष कर एक खास पहचान बनाई है. यही नहीं, उन्होंने जंगलराज के प्रतीक मोहम्मद शहाबुद्दीन के खिलाफ चुनाव लड़ने की हिम्मत दिखाई. इसके साथ ही सीवान से शहाबुद्दीन के आतंक को भी खत्म किया. चर्चित तेजाब कांड में चंदा बाबू के बेटों की हत्या हो या पत्रकार राजदेव रंजन का मर्डर, हर मामले में ओमप्रकाश यादव ने खुलकर शहाबुद्दीन का विरोध किया. यही वजह है कि उन्हें शहाबुद्दीन के सबसे बड़े विरोधी के तौर पर जाना जाता है.
2019 में नहीं मिला टिकट
लगातार दो बार से बीजेपी के सांसद रहे ओमप्रकाश यादव को 2019 लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं मिला. दरअसल, इस चुनाव में सीवान लोकसभा सीट एनडीए गठबंधन के जेडीयू के खाते में चली गई. ऐसे में सीवान से जेडीयू की कविता सिंह ने चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. टिकट नहीं मिलने के बाद भी तब के सांसद ओमप्रकाश यादव ने बीजेपी के साथ अपनी निष्ठा दिखाई और एनडीए गठबंधन के प्रत्याशी कविता सिंह का समर्थन किया.
JDU के अजय सिंह का विरोध
हालांकि, 2019 के दरौंदा विधानसभा के उपचुनाव में ओमप्रकाश यादव ने सांसद कविता सिंह के पति अजय सिंह का खुलकर विरोध किया. आपको बता दें कि कविता सिंह दरौंदा से विधायक थीं, जो 2019 लोकसभा में सीवान की सांसद बन गईं. ऐसे में दरौंदा सीट पर उपचुनाव हुआ था. इस उपचुनाव में जेडीयू के प्रत्याशी अजय सिंह थे, जो हार गए. उपचुनाव में ओमप्रकाश यादव ने अजय सिंह के अपराध का हवाला देकर विरोध किया. ओमप्रकाश यादव का तर्क था कि सीवान को फिर से आतंक के अंधेर में नहीं ढकेल सकते हैं. यही वजह है कि उन्होंने खुलेआम एनडीए के उम्मीदवार अजय सिंह के विरोध में प्रचार किया. अब एक बार फिर विधानसभा में अजय सिंह दरौंदा से चुनाव लड़ना चाहते हैं.
BJP के मनोज सिंह के निशाने पर
ओमप्रकाश यादव के एक विरोधी बीजेपी के एमएलसी रह चुके मनोज सिंह भी हैं. दरअसल, मनोज सिंह रघुनाथपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं. इसके लिए वह चुनाव प्रचार कर रहे हैं. वहीं, ओमप्रकाश यादव के बेटे चंद्रविजय प्रकाश उर्फ हैप्पी यादव भी इस सीट पर अपना दावा ठोक रहे हैं. ऐसे में मनोज सिंह हमलावर हो गए हैं. आपको बता दें कि 2015 विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी के टिकट पर मनोज सिंह ने रघुनाथपुर विधानसभा से चुनाव लड़ा था लेकिन हार मिली थी. इस चुनाव में उन्हें राजद के हरिशंकर यादव ने हराया था. इससे पहले 2014 लोकसभा चुनाव में भी मनोज सिंह जेडीयू के टिकट पर भाग्य आजमा चुके हैं लेकिन उन्हें करारी शिकस्त मिली थी.
कौन है मनोज सिंह?
किसी वक्त में मनोज सिंह की पहचान शहाबुद्दीन के सबसे करीबी के तौर पर होती थी लेकिन बदलती परिस्थितियों में वह शहाबुद्दीन से अलग हो गए. अब मनोज सिंह एनडीए में हैं और खुद को शहाबुद्दीन के सबसे बड़े विरोधी के तौर पर स्थापित करने में जुटे हैं. मनोज सिंह पर हत्या समेत कई मामले हैं. बीते साल बहुचर्चित खाद व्यवसायी हरिशंकर सिंह हत्याकांड में मनोज सिंह पर आरोप लगा था.
ओमप्रकाश यादव निशाने पर क्यों
स्थानीय पत्रकार सुधीर कुमार बताते हैं कि ओमप्रकाश यादव की एनडीए में स्वच्छ छवि सबसे बड़ा फैक्टर है. अब तक का जो पैटर्न रहा है उसके मुताबिक चुनाव में उन्हें सीवान के हर वर्ग का साथ मिला है. खासतौर पर यादव वोट बैंक एकमुश्त ओमप्रकाश यादव के खाते में जाता रहा है. बतौर सांसद 10 साल के कार्यकाल में ग्रामीण क्षेत्रों में पकड़ बनाई है. ओमप्रकाश यादव की गंभीर और खामोशी की राजनीति असरदार साबित होती रही है.
विधानसभा चुनाव में कितना असरदार
सुधीर कुमार बताते हैं, ''ओमप्रकाश यादव को भले ही सीवान एनडीए में विरोध का सामना करना पड़ रहा हो लेकिन वह जिले के कुल आठ में से 6 विधानसभा सीट पर एनडीए के सबसे बड़े सूत्रधार बन सकते हैं. बीते साल उपचुनाव में दरौंदा विधानसभा पर अजय सिंह का विरोध कर उन्होंने अपनी ताकत का एहसास भी दिलाया है. हालांकि, ये भी चर्चा है कि वह खुद विधानसभा चुनाव के मैदान में उतर सकते हैं या पार्टी उन्हें एमएलसी बनाने का प्रस्ताव दे सकती है.'' बहरहाल, देखना अहम है कि सीवान एनडीए में ओमप्रकाश यादव कितना असरदार साबित होते हैं.