बिहार विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए और तेजस्वी यादव की अगुवाई वाले महागठबंधन के बीच सीधी टक्कर मानी जा रही है. बिहार में कई ऐसे क्षेत्रीय दल और छोटी पार्टियां हैं, जो न तो एनडीए का हिस्सा हैं और न ही महागठबंधन के साथ हैं. ऐसे में ये दल आपस में हाथ मिलाकर किंगमेकर बनने का सपना संजोय हुए हैं, लेकिन ये एनडीए या महागठबंधन का जायका भी बिगाड़ सकते हैं.
बता दें कि बिहार में छोटे दलों में चिराग पासवान की एलजेपी, जीतन राम मांझी की हिंदुस्तान आवाम मोर्चा एनडीए के साथ है, जिसका नेतृत्व नीतीश कुमार के हाथ में है और बीजेपी मजबूत सारथी है. उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी की भी एनडीए में दोबारा से वापसी की चर्चाएं तेज हैं. वहीं, दूसरी ओर कांग्रेस, मुकेश सहनी वाली वीआईपी और वामपंथी दल तेजस्वी यादव वाले महागठबंधन के साथ हैं.
यशवंत सिन्हा तीसरा मोर्चा बनाने में जुटे
बिहार में इन दोनों गठबंधन से अलग राज्य में करीब डेढ़ दर्जन दूसरी छोटी पार्टियां हैं. एनडीए-महागठबंधन से इतर छोटे दलों के तीन गठबंधन सामने आ चुके हैं. पहला पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा छोटे-छोटे 16 दलों के साथ राज्य में तीसरा मोर्चा खड़ा करने की कोशिश में हैं. यशवंत सिन्हा तीसरा मोर्चा खड़ा कर पाए तो यह मोर्चा सरकार से नाराज मतों का बंटवारा ही करेगा. दूसरा पप्पू यादव ने तीन दलों के साथ मिलकर बनाया और तीसरी असदुद्दीन ओवैसी ने बनाया है.
पप्पू यादव किसका बिगाड़ेंगे खेल
सोमवार को जन अधिकार पार्टी के प्रमुख पप्पू यादव की अगुवाई में प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक अलायंस (पीडीए) का गठन किया गया है, जिसमें दलित नेता चंद्रशेखर आजाद की पार्टी बीएमपी और सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) शामिल है. पप्पू यादव ने आरएलएसपी के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा को भी गठबंधन में शामिल होने का निमंत्रण दिया है.
पप्पू यादव का राजनीतिक ग्राफ बिहार के सीमांचल और कोसी के इलाके में है. पूर्णिया और मधेपुरा से पप्पू यादव सांसद रह चुके हैं और यहां यादव और मुस्लिम समुदाय का अच्छा खासा वोट है. हालांकि, 2015 के विधानसभा चुनाव में पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी को 1.4 फीसदी वोट हासिल हुए थे, लेकिन एक भी सीट नहीं जीत सके थे. 2019 के चुनाव में पप्पू यादव मधेपुरा सीट पर तीसरे नंबर पर रहे थे, लेकिन इस बार का समीकरण बदला है.
पप्पू यादव पिछले कई महीनों से बिहार में सक्रिय हैं. वो लगातार प्रदेश के जिले को दौरे कर रहे हैं और उन्होंने दलित नेता चंद्रशेखर आजाद और एसडीपीआई के साथ गठबंधन कर बिहार में दलित-मुस्लिम-यादव वोटों का समीकरण बनाने की कवायद की है. इन्हीं तीनों समुदाय के सहारे आरजेडी ने बिहार में 15 साल राज किया है. अब इसी वोटबैंक में सेंधमारी पप्पू यादव कर रहे हैं. पप्पू यादव ने इस बार 150 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने का ऐलान किया है.
ओवैसी M-Y समीकरण के जरिए
वहीं, दूसरी तरफ ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी बिहार में अपने सियासी जनाधार को बढ़ाने के लिए गठबंधन की राह पर चलने का फैसला किया है. औवैसी ने बिहार में पूर्व केंद्रीय मंत्री देवेंद्र प्रसाद यादव की समाजवादी जनता दल के साथ गठबंधन किया, जिसे यूनाइटेड डेमोक्रेटिक सेक्युलर एलायंस (यूडीएसए) का नाम दिया गया है. ओवैसी यादव-मुस्लिम (MY) समीकरण के जरिए बिहार की सियासी जंग फतह करना चाहते हैं.
ओवैसी की निगाहें बिहार के सीमांचल इलाके पर है, जहां कई सीटें न सिर्फ मुस्लिम-बहुल हैं, बल्कि कई सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में है. सीमांचल में 24 सीटें आती हैं और यहां मुसलमानों की आबादी 40 फीसदी से भी ज्यादा है. ओवैसी ने 2015 में सीमांचल की 6 सीटों पर उम्मीदवार थे, लेकिन महागठबंधन की आंधी में सभी हार गए थे.
हालांकि लोकसभा चुनाव में किशनगंज सीट पर करीब 3 लाख वोट हासिल किया था और उपचुनाव में खाता खोलकर सबको चौंका दिया था. ऐसे में मुस्लिम वोटरों के एक बड़े तबके का ओवैसी की पार्टी की तरफ झुकाव बढ़ा है, जो महागठबंधन के लिए परेशानी का सबब बन गया है. इस बार ओवैसी ने भी देवेंद्र यादव की पार्टी से हाथ मिलाकर कांग्रेस और आरजेडी के लिए चिंता बढ़ा रखी है. प्रदेश की करीब 150 सीटों पर चुनाव लड़ने की योजना ओवैसी ने बना रखी है, जिसमें से 98 सीटों के नाम का भी ऐलान कर दिया है. ऐसे में देखना होगा कि छोटे दलों का मोर्चा किसका खेल बनाते हैं और किसका बिगाड़ते हैं. हालांकि, बिहार के पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में कोई खास असर नहीं दिखा सके हैं