
बिहार में लालू यादव की विरासत संभालने का जिम्मा उनके छोटे बेटे तेजस्वी यादव को हासिल है. इस बात पर पुख्ता मुहर तब लगी जब 2015 की महागठबंधन सरकार में लालू ने अपने बड़े बेटे तेजप्रताप की जगह RJD के कोटे से तेजस्वी को राज्य का उप मुख्यमंत्री बनाया. हालांकि तेजप्रताब भी तब की नीतीश सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे. अब तेजस्वी बिहार में नेता प्रतिपक्ष हैं और जेडीयू-बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए से उनका सीधा मुकाबला है.
कैसा रहा शुरुआती सफर
राजनीति में आने से पहले तेजस्वी यादव की पहचान लालू यादव के बेटे के अलावा एक क्रिकेटर के तौर पर रही है. वह झारखंड की ओर से रणजी खेल चुके हैं और साल 2012 तक IPL में दिल्ली की टीम का हिस्सा थे. क्रिकेट के मैदान पर भले ही वह मध्य क्रम के बल्लेबाज रहे हों लेकिन बिहार की सियासी पिच पर आजकल उन्हें आक्रामक बल्लेबाजी करते देखा जा रहा है.
2015 में लड़ा पहला चुनाव
लालू यादव को चारा घोटाला मामले में दोषी करार दिए जाने के बाद उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगाई गई थी. इसके बाद 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव ने वैशाली की राघोपुर सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इस जीत के बाद उन्हें बिहार का उप मुख्यमंत्री बनाया गया.
तेजस्वी के पास डिप्टी सीएम का पद ज्यादा दिन नहीं रहा और 2017 में नीतीश के बीजेपी के साथ जाने से बिहार में सियासी तख्तापलट हो गया. फिर तेजस्वी सरकार से सीधे विपक्ष में आ गए और अब बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं.
भ्रष्टाचार के आरोप
तेजस्वी और उनके परिवार के सदस्यों पर जुलाई 2017 में सीबीआई की ओर से घोटाला का केस दर्ज किया गया. साथ ही ED ने भी खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग मामले की जांच कर रही है. इन्हीं आरोपों को आधार बनाते हुए नीतीश ने RJD का साथ छोड़कर बीजेपी के साथ सरकार बनाई थी.
बिहार यात्रा से बनाई पहचान
नीतीश कुमार ने जब से महागठबंधन से नाता तोड़कर बीजेपी के साथ सरकार बनाई है तब से ही तेजस्वी लगातार उनके खिलाफ माहौल बनाने में जुटे हैं. इसके लिए वह सड़क से लेकर सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं. इस क्रम में उन्होंने बिहार की यात्रा की और जगह-जगह नीतीश और बीजेपी के खिलाफ भाषण दिए. इस यात्रा से तेजस्वी को नई सियासी पहचान मिली. नीतीश सरकार में डिप्टी सीएम रहते हुए भी तेजस्वी इतने पॉपुलर फेस नहीं थे, जितना कि वह विपक्ष में आकर हो गए हैं.
फैसलों में लालू की झलक
तेजस्वी यादव अपने पिता लालू यादव के नक्शे कदम पर चल रहे हैं. इसकी झलक महागठबंधन से नाता टूटने के बाद दिखी. नीतीश कुमार और बीजेपी की साझा सरकार बन जाने के बाद जिस तरह तेजस्वी यादव ने विधानसभा में अपना भाषण दिया उसमें लोगों को लालू की झलक नजर आई. वह अपने भाषणों में ओबीसी, दलित और अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की बात करते हैं साथ ही सामाजिक न्याय और धर्म-निरपेक्षता के मुद्दे पर बीजेपी और जेडीयू को घेरने की कोशिश करते रहते हैं.
इस बार के बिहार विधानसभा चुनाव तेजस्वी ही विपक्ष का सबसे बड़ा चेहरा होंगे. लेकिन उनके सामने पार्टी को एकजुट रखने के अलावा विपक्षी एकता को बनाए रखने की भी चुनौती होगी. तेजस्वी के पास अपने पिता की तरह सियासी अनुभव नहीं है और न ही राजनीति में उनका कद अभी उतना बड़ा है. लेकिन तेजस्वी को बिहार की सियासत में खुद को स्थापित करने के लिए नई पहचान बनानी होगी और यह चुनाव उनके लिए लिटमस टेस्ट साबित होगा.