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बिहार चुनाव में बनेंगे कई रिकॉर्ड, बढ़ सकता है इलेक्शन में खर्च का दायरा

सभी पार्टियों का तर्क था कि कोरोना काल में चुनाव नहीं होने चाहिए. लेकिन जब हो ही रहे हैं तो चुनाव प्रचार के दौरान प्रोटोकॉल का पालन भी जरूरी है. जाहिर है प्रोटोकॉल के तामझाम में अतिरिक्त धन भी खर्च होगा.

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बिहार में होने हैं चुनाव (सांकेतिक तस्वीर)
बिहार में होने हैं चुनाव (सांकेतिक तस्वीर)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • कुछ ही महीनों में होंगे बिहार विधानसभा के चुनाव
  • देश के चुनावी इतिहास में कई काम होंगे पहली बार
  • खर्च सीमा को बढ़ाने के लिए की गई है सिफारिश

बिहार विधानसभा चुनाव कई मायनों में रिकॉर्ड बनाएगा. कई काम देश के चुनावी इतिहास में पहली बार होंगे. सामान्य से डेढ़ गुना ज्यादा संख्या में मतदान केन्द्र, मास्क, सैनिटाइजर, साबुन, शारीरिक दूरी बढ़ने के साथ चुनाव प्रचार खर्च की सीमा भी बढ़ेगी. निर्वाचन आयोग की सिफारिश केंद्रीय विधि और न्याय मंत्रालय तक पहुंच चुकी है. इस सिफारिश पर अमल के लिए चुनाव प्रबंधन नियमावली 1961 के रूल 90 में संशोधन करना होगा. 

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अब बस इस संशोधन के लिए सरकार की मुहर लगने की देर है. फिर विधानसभा चुनाव में हर एक उम्मीदवार के लिए चुनाव प्रचार और प्रबंधन की खर्च सीमा 28 लाख रुपये से 30 लाख 80 हजार रुपये तक हो जाएगी. यानी पूरे दस फीसदी का इजाफा. निर्वाचन आयोग के सूत्रों के मुताबिक पहले भी बिहार की कई राजनीतिक पार्टियों ने निर्वाचन आयोग से खर्च बढ़ाने की गुहार लगाई थी. फिर इसी साल मई में सत्ताधारी बीजेपी ने भी आयोग में अर्जी देकर खर्च बढ़ाने की बात कही थी. 

सभी पार्टियों का तर्क था कि कोरोना काल में चुनाव नहीं होने चाहिए. लेकिन जब हो ही रहे हैं तो चुनाव प्रचार के दौरान प्रोटोकॉल का पालन भी जरूरी है. जाहिर है प्रोटोकॉल के तामझाम में अतिरिक्त धन भी खर्च होगा. अब कार्यकर्ताओं के लिए सैनिटाइजर, मास्क, लिक्विड सोप, पीपीई किट, थर्मल स्क्रीनिंग डिवाइस वगैरह-वगैरह चाहिए ही चाहिए. इसमें कोई कटौती नहीं हो सकती.

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गाइडलाइन का पालन

इसके अलावा पिछले महीने जारी गाइडलाइन का भी पहला लिटमस टेस्ट भी बिहार चुनाव से ही होना है. अब गाइडलाइन के मुताबिक उम्मीदवार नामजदगी के पर्चे भरने जाएगा तो पांच की बजाय दो लोग ही उसके साथ जा सकते हैं. रोड शो में उम्मीदवार के साथ सिर्फ पांच गाड़ियां होंगी. 

घर-घर जाकर प्रचार करने वाले दल में सिर्फ तीन कार्यकर्ता होंगे. वो भी कोरोना सुरक्षा किट से पूरी तरह लैस. बड़ी चुनावी रैलियों की बजाय छोटी सभाएं सोशल डिस्टेंसिंग के साथ होंगी. वहां भी कोरोना किट रहेगी. ऐसे में सभी दल चुनाव खर्च सीमा बढ़ाने की मांग कर रहे थे. अब उन सबसे मीटिंग कर आयोग ने चुनाव खर्च में दस फीसदी इजाफा करने की अनुशंसा कर दी है. 

चुनावी खर्च

इतिहास के पन्नों पर नजर डालें तो 1952 से 1962 तक के तीन लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनावों पर प्रत्येक में दस करोड़ रुपये खर्च आया था. यानी प्रत्येक मतदाता पर 60 पैसे. इसके 42 साल बाद ​2004 में खर्च सीमा पैसों से आगे बढ़कर रुपयों में पहुंच कर 17 रुपये प्रति मतदाता तक पहुंच गई. हालांकि 2009 में यह घटकर प्रति मतदाता 12 रुपये कर दी गई. 

आयोग की नियमावली और एसओपी गाइडलाइन के मुताबिक कुल खर्च सीमा के मद भी तय हैं. मसलन कुल खर्च सीमा में से चुनाव प्रबंधन और प्रचार के लिए वाहनों पर 34%, प्रचार साधनों पर 23%, प्रचार रैलियों पर 13%, इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया में प्रचार पर 7% खर्च कर सकते हैं. इसके अलावा बैनर पोस्टर, होर्डिंग्स और पर्चों पर 4% और फील्ड यानी निर्वाचन क्षेत्र में आने जाने के लिए 3% रकम खर्च की जा सकती है. 

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इसके सुचारू हिसाब किताब के लिए उम्मीदवार को अलग बैंक खाता खोलना होता है. अगर उम्मीदवार के खिलाफ तय खर्च सीमा की लक्ष्मण रेखा पार करने के सबूत मिल जाते हैं तो उसका निर्वाचन रद्द तक हो सकता है यानी वो अयोग्य घोषित किया जा सकता है.

 

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