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MY के सत्तू पर भारी पड़ी हैदराबादी बिरयानी, तस्लीमुद्दीन की विरासत अब छोटे बेटे पर

बिहार के अररिया सीट पर तस्लीमुद्दीन के बड़े बेटे सरफराज आलम आरजेडी के टिकट पर लालू यादव के एम-वाई समीकरण के जरिए सत्तू घोलना चाहते थे, लेकिन छोटे बेटे शाहनवाज आलम AIMIM के टिकट पर हैदराबादी बिरयानी भारी पढ़ गई है. जोकीहाट सीट ने तस्लीमुद्दीन की विरासत का असल वारिस छोटे बेटे शाहनवाज आलम बनकर उभरे हैं और जीत दर्ज की है. 

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तस्लीमुद्दीन
तस्लीमुद्दीन
स्टोरी हाइलाइट्स
  • सीमांचल में ओवैसी का चला जादू, चार सीटों पर आगे
  • तस्लीमुद्दीन के छोटे बेटे ने AIMIM से जीत दर्ज की
  • बिहार में ओवैसी ने 20 सीटों पर उतारे अपने प्रत्याशी

बिहार के सीमांचल की राजनीति तस्लीमुद्दीन के इर्द-गिर्द सिमटी रही है. अब तस्लीमुद्दीन नहीं हैं और उनकी राजनीतिक विरासत पर काबिज होने को लेकर उनके दोनों बेटें मैदान में उतरे थे. तस्लीमुद्दीन के बड़े बेटे सरफराज आलम आरजेडी के टिकट पर लालू यादव के एम-वाई समीकरण के जरिए सत्तू घोलना चाहते थे, लेकिन छोटे बेटे शाहनवाज आलम की AIMIM के टिकट पर हैदराबादी बिरयानी भारी पढ़ गई है. जोकीहाट क्षेत्र की जनता की ओर से तस्लीमुद्दीन की विरासत का असल वारिस छोटे बेटे शाहनवाज आलम बनकर उभरे हैं और जीत दर्ज की है. 

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जोकीहाट विधानसभा सीट पर आरजेडी से सरफराज आलम और बीजेपी से रंजीत यादव मैदान में थे जबकि शाहनवाज आलम AIMIM से किस्मत आजमा रहे थे. इस सीट पर जेडीयू और AIMIM के बीच मुख्य मुकाबला रहा है. यहां ओवैसी की पार्टी से उतरे शाहनवाज आलम ने जीत दर्ज की है जबकि दूसरे नंबर पर तस्लीमुद्दीन के बड़े बेटे सरफराज आलम रहे. बीजेपी प्रत्याशी रंजीत यादव तीसरे नंबर पर रहे.  

अररिया जिले की जोकीहाट विधानसभा सीट पर तस्लीमुद्दीन परिवार का सियासी वर्चस्व पांच दशक से कायम है. जोकीहाट सीट पर 1967 से 2018 तक 15 बार चुनाव हुआ है. इसमें 10 बार तस्लीमुद्दीन और उनके पुत्र यहां से जीते. तस्लीमुद्दीन पांच बार खुद इस सीट से विधायक रहे जबकि उनके बड़े पुत्र सरफराज चार बार जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं. मौजूदा समय में तस्लीमुद्दीन के छोटे बेटे शहनवाज आलम विधायक हैं, जिन्होंने 2018 के उपचुनाव में पहली बार जीत दर्ज की थी और एक बार फिर जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं. 

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बिहार का सीमांचल का इलाका बंगाल से सटा हुआ है. ये वो इलाका है जहां भारी गरीबी है, हर साल बाढ़ से जिंदगी दूभर होती है और मुसलमानों की अच्छी खासी तादाद में आबादी है. अररिया जिले में 4 जनवरी 1943 को जन्मे तस्लीमुद्दीन ने छात्र राजनीति के जरिए सियासत में कदम रखकर सीमांचल की राजनीति के बादशाह बन गए. उन्होंने सरपंच और मुखिया से लेकर केंद्रीय गृह राज्य मंत्री का सफर तय किया. 


तस्लीमुद्दीन 1959 में सरपंच बने और 1964 में मुखिया बने. तस्लीमुद्दीन अपने राजनीतिक करियर में सात बार विधायक और पांच बार सांसद रहते हुए बिहार से लेकर केंद्र तक में मंत्री भी रहे. 1989 में पहली बार वो लोकसभा के सदस्य चुने गए और 2014 के चुनाव में मोदी लहर में भी जीतने में सफल रहे थे. तस्लीमुद्दीन खुद जहां केंद्रीय राजनीति में आ गए थे तो अपने बड़े बेटे सरफराज आलम की 90के दशक में ही प्रदेश की राजनीति में एंट्री कर दी थी. सरफराज जोकीहाट सीट से चार बार विधायक रहे. 

तस्लीमुद्दीन के 17 सितंबर 2017 में के निधन के बाद सरफराज आलम ने अपने पिता की सियासी विरासत संभाली. सरफराज जेडीयू छोड़कर आरजेडी के टिकट पर 2018 में अररिया सीट पर हुए उपचुनाव में सांसद चुने गए. ऐसे में जोकीहाट विधानसभा सीट रिक्त हो गई, जहां से तस्लीमुद्दीन के छोटे बेटे शाहनवाज आलाम उपचुनाव जीतकर विधायक बने. इस तरह से तस्लीमुद्दीन के दोनों बेटे राजनीति में अपनी-अपनी जगह बना चुके थे, हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव में सरफराज आलम अररिया सीट से चुनाव हार गए थे, जिसके बाद अब वो जोकीहाट सीट से आरजेडी के टिकट लेकर मैदान में उतरे हैं. ऐसे में शाहनवाज आलम अब असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी से जीत दर्ज की. 

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