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सत्ता मिली मगर कमान नहीं, बिहार में ऐसा रहा बीजेपी का सफर

2005 में सत्ता में भागीदारी के बाद बीजेपी का बिहार में ग्राफ बढ़ता चला गया. 2010 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 91 सीटें जीतीं. लेकिन सीएम पद नीतीश कुमार के पास ही रहा. जबकि डिप्टी सीएम पर सुशील मोदी ही बने रहे. ये सिलसिला 2013 में आकर जब रुका जब नीतीश कुमार ने बीजेपी से गठबंधन तोड़ दिया. इसके बाद 2015 में नीतीश कुमार ने आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और वो मुख्यमंत्री बने. इस बार डिप्टी सीएम पद पर सुशील मोदी की जगह लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव थे.

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बिहार में गठबंधन सरकार का हिस्सा रही है बीजेपी
बिहार में गठबंधन सरकार का हिस्सा रही है बीजेपी
स्टोरी हाइलाइट्स
  • बिहार में गठबंधन की सरकार चलाती आ रही बीजेपी
  • जेडीयू-बीजेपी का गठबंधन है पुराना
  • 2005 में बनी थी गठबंधन की सरकार

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र की सत्ता मिलने के बाद से भारतीय जनता पार्टी का कमल मुरझाया नहीं है. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज कर पार्टी लगातार दूसरी बार देश की सत्ता पर काबिज है. वहीं, उन राज्यों में भी बीजेपी ने सरकार बना ली है जहां पार्टी का अस्तित्व नहीं था. जिक्र बिहार का किया जाए तो बीजेपी यहां भी सरकार में भागीदार है, लेकिन हिंदी पट्टी का यह शायद एकमात्र राज्य है जहां बहुत मजबूत स्थिति में होने के बावजूद आज तक पार्टी का मुख्यमंत्री नहीं बन पाया है. 

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देश की आजादी और नया संविधान लागू होने के बाद से ही बिहार में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. 1952 में यहां पहला विधानसभा चुनाव हुआ, जिसमें भारतीय जनसंघ ने भी हिस्सा लिया. भारतीय जनसंघ, भारतीय जनता पार्टी की ही मदर पार्टी थी. आपातकाल के दौरान जब तमाम विरोधी खेमे एक हुए तब भारतीय जनसंघ का भी जनता पार्टी में विलय कर दिया गया था और केंद्र की तत्कालीन जनता पार्टी सरकार में इसके नेता अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी को मंत्रिपद मिले थे. हालांकि, जल्द ही जनता पार्टी बिखर गई और वाजपेयी ने 1980 में भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की. 

इससे पहले भारतीय जनसंघ बिहार में लगातार चुनाव लड़ रही थी और संघर्ष कर रही थी. पहले और दूसरे चुनाव में पार्टी का खाता भी नहीं खुला लेकिन 1962 में जब तीसरा विधानसभा चुनाव हुआ तो भारतीय जनसंघन के तीन उम्मीदवार जीतकर आए. बिहार में एकतरह से जनसंघ के नाम से ही सही, मगर बीजेपी को ये पहली जीत मिली थी. जीतने वाले उम्मीदवारों में सीवान सीट से जनार्दन तिवारी, हिलसा सीट से जगदीश प्रसाद और नवादा सीट से गौरी शंकर केसरी थे. 

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6 अप्रैल 1980 को भारतीय जनता पार्टी का नाम अस्तित्व में आया. जनसंघ के नेताओं ने अब बीजेपी के नाम से अपनी राजनीति को आगे बढ़ाना शुरू किया. 1980 में जब बिहार विधानसभा चुनाव हुए तो बीजेपी ने 324 सीटों वाली विधानसभा में 21 सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि कांग्रेस (आई) को 169 सीटें मिलीं. 
इसके बाद 1985 में बीजेपी को सिर्फ 16 सीटों पर जीत मिली. अगले पांच सालों में बीजेपी को थोड़ा फायदा पहुंचा और 1990 के चुनाव में पार्टी ने 39 सीटें जीतीं. इतना ही नहीं, बीजेपी के सहयोगी से जनता दल की सरकार भी बनी और लालू यादव मुख्यमंत्री बने. 

बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी

इसके बाद राजनीति का एक नया अध्याय शुरू हुआ. बीजेपी के दूसरे सबसे कद्दावर नेताओं में रहे लालकृष्ण आडवाणी ने रथयात्रा निकाली. बिहार में लालू यादव ने उनकी रथयात्रा को रोक दिया और आडवाणी को गिरफ्तार भी कर लिया. आडवाणी की रथयात्रा पूरे देश की सियासत में बदलाव लाने वाली मानी गई लेकिन 1995 में जब विधानसभा चुनाव हुए पार्टी को उसमें कुछ खास फायदा नहीं मिला और पार्टी सिर्फ 41 सीट ही जीत पाई. 

साल 2000 में दिखाया बीजेपी ने दम
साल 2000 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने बिहार में अपना असली दम दिखाया. ये वो वक्त था जब बीजेपी केंद्र की सत्ता में थी. केंद्र का असर बिहार में दिखाई दिया और बीजेपी दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. 324 में से बीजेपी ने 67 सीटों पर जीत दर्ज की जबकि आरजेडी को 124 सीटें मिलीं. किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला. समीकरण ऐसे बने कि बीजेपी के समर्थन से समता पार्टी के नाम पर महज 34 सीटें जीतने वाले नीतीश कुमार को सीएम पद की शपथ दिलाई गई. हालांकि, नीतीश बहुमत साबित नहीं कर सके और एक हफ्ते में ही उनकी सरकार चली गई. आरजेडी ने मैनेजमेंट कर लिया और राबड़ी देवी दूसरी बार सीएम बन गईं. लेकिन नीतीश कुमार को जैक लगाकर ऊपर उठाने का काम बीजेपी आगे भी करती रही. 

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2005 में हुआ बिहार में सबसे बड़ा उलटफेर
ये वो साल था जब केंद्र से वाजपेयी की सरकार जा चुकी थी और मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए की सरकार चल रही थी. आरजेडी के लालू प्रसाद यादव रेल मंत्री थी. दूसरी तरफ नीतीश कुमार ने अपनी समता पार्टी का जनता दल यूनाइटेड में विलय कर दिया था यानी इस चुनाव में वो जेडीयू के नाम पर चुनावी मैदान में थे.
फरवरी, 2005 में विधानसभा चुनाव हुआ. खंडित जनादेश आया. किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला. आरजेडी को 75, जेडीयू को 55 और बीजेपी को 37 सीटें मिलीं. जबकि एलजेपी ने 29 सीटें जीतीं. पासवान ने लालू यादव को समर्थन देने के लिए किसी मुस्लिम को सीएम बनाने की शर्त रख दी. लालू ने इस शर्त को नहीं माना. सरकार नहीं बन पाई और राष्ट्रपति शासन लागू हो गया. 

बिहार में चुनाव प्रचार के दौरा जेपी नड्डा व अन्य बीजेपी नेता

इसके बाद अक्टूबर 2005 में जब दोबारा विधानसभा चुनाव हुए तो लालू यादव की आरजेडी 54 सीटों पर सिमट गई और जेडीयू को 88, बीजेपी को 55 सीटें मिलीं. इस तरह जेडीयू-बीजेपी गठबंधन की सरकार बिहार में बन गई. नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया गया. जबकि बीजेपी की तरफ से सुशील कुमार मोदी को उपमुख्यमंत्री बनाया गया.

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सरकार का चेहरा नीतीश, बीजेपी का सुशील मोदी
2005 में सत्ता में भागीदारी के बाद बीजेपी का बिहार में ग्राफ बढ़ता चला गया. 2010 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 91 सीटें जीतीं. लेकिन सीएम पद नीतीश कुमार के पास ही रहा. जबकि डिप्टी सीएम पर सुशील मोदी ही बने रहे. ये सिलसिला 2013 में आकर जब रुका जब नीतीश कुमार ने बीजेपी से गठबंधन तोड़ दिया. इसके बाद 2015 में नीतीश कुमार ने आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और वो मुख्यमंत्री बने. इस बार डिप्टी सीएम पद पर सुशील मोदी की जगह लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव थे. दूसरी तरफ बीजेपी धराशायी हो गई और उसे महज 38 सीटें मिलीं. 
हालांकि, नीतीश कुमार और महागठबंधन का साथ भी ज्यादा वक्त नहीं चला और 2017 में नीतीश कुमार अलग हो गए और फिर से बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली. 
इस सरकार में भी सीएम पद पर नीतीश ही रहे और डिप्टी सीएम पद सुशील कुमार मोदी को मिला. बिहार सरकार का यही क्रम आज भी स्थायी रूप में है. आगामी विधानसभा चुनाव भी नीतीश कुमार के चेहरे पर ही लड़ा जा रहा है. बीजेपी की तरफ से पीएम नरेंद्र मोदी, अमित शाह से लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और सुशील कुमार मोदी तक सार्वजनिक रूप से नीतीश कुमार की लीडरशिप में चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके हैं. यानी अगर 2020 के विधानसभा में भी एनडीए की सरकार आती है तो सीएम के रूप में नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम के रूप सुशील कुमार मोदी की 2005 से चली आ रही जोड़ी एक बार फिर बिहार सरकार में नजर आ सकती है. 
बीजेपी संगठन की बात की जाए तो फिलहाल पार्टी अध्यक्ष की जिम्मेदारी डॉ. संजय जायसवाल संभाल रहे हैं. नवंबर 2019 में जायसवाल ने नित्यानंद राय की जगह संभाली थी. इससे पहले 2015 से ही बीजेपी यहां ओबीसी समुदाय से पार्टी अध्यक्ष बना रही है. 
 

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