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बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के लिए सभी पार्टियों ने कमर कस ली है. काफी बातचीत के बाद इस महीने की शुरुआत में महागठबंधन के घटक दलों के बीच सीटों का बंटवारा हो गया. महागठबंधन में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियां- सीपीआईएमएल, सीपीआई और सीपीएम शामिल हैं. राज्य में पहले चरण का चुनाव 28 अक्टूबर को होना है.
आरजेडी को ये अच्छी तरह से पता है कि वामपंथी दलों के पास किसी भी जाति-आधारित पार्टी- जैसे राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) या विकासशील इन्सान पार्टी (वीआईपी) की तुलना में ज्यादा समर्पित वोट बैंक है. बिहार चुनाव के पहले चरण में अपने प्रदर्शन और स्ट्राइक रेट में सुधार के लिए राजद ने महागठबंधन में कांग्रेस के अलावा वाम दलों के साथ रहने को तवज्जो दी है.
राजद ने पहले चरण की आठ सीटों पर सीपीआई (एमएल) के साथ गठबंधन किया है. हालांकि, राजद 42 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और उसे सीपीआई (एमएल) का कैडर वोट पाने की उम्मीद है. सीपीआई (एमएल) का इन सीटों पर मजबूत आधार है और लेकिन इतने पर्याप्त वोट नहीं हैं कि वह स्वतंत्र रूप से ये सीटें जीत सके.
हालांकि, आंकड़ों से पता चलता है कि धुरैया और गोह जैसी लगभग 10 सीटें हैं जहां पिछले विधानसभा चुनाव में लेफ्ट पार्टी के वोट जीत के अंतर से ज्यादा थे. 2015 में पार्टी 37 सीटों में से सिर्फ एक सीट- तरारी जीती थी. हालांकि, पार्टी ने इन सीटों पर करीब 3 फीसदी वोट हासिल किए.
ये वोट बैंक आगामी चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. राजद नेता और राज्यसभा सांसद मनोज कुमार झा का मानना है, "सीपीआई (एमएल), सीपीआई और सीपीआई (एम) के पास राज्य भर में समर्पित कैडर हैं और 60 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर उनके वोट निर्णायक हैं." लगभग हर पार्टी अपने जाति आधारित वोट बैंकों पर निर्भर है.
भाजपा का मजबूत आधार मुख्य रूप से उच्च जाति और व्यापारी समुदाय में है. इसमें राज्य की कुल आबादी का करीब 20 फीसदी शामिल है. राजद का आधार वोट मोटे तौर पर यादव और मुस्लिम समुदायों में है, जो राज्य की आबादी का लगभग 30 फीसदी है. इसी तरह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जद (यू) का मुख्य आधार कुर्मी जातियों में है.
बाकी दलित और अन्य पिछड़े समुदाय तय करते हैं कि बिहार में किसकी जीत होगी, क्योंकि वे बड़े पैमाने पर किसी एक पार्टी के साथ नहीं हैं. समय-समय पर छोटी पार्टियां उनकी प्रतिनिधि होने का दावा करती हैं- जैसे लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी), मुकेश सहनी की विकासशील इन्सान पार्टी (वीआईपी) वगैरह.
बड़ी राजनीतिक पार्टियां इस छोटे दलों को मोलभाव करके अपने साथ गठबंधन में शामिल करती हैं. लेकिन इस बार राजद ने सीपीआई (एमएल) जैसी पार्टी के साथ गठबंधन करना पसंद किया है, जिसका महादलित और पिछड़े समुदायों के बीच व्यापक और समर्पित जनाधार है.
बिहार में गठबंधन की चुनावी राजनीति में वामपंथी हमेशा विफल रहे, लेकिन उनके सहयोगी लाभान्वित हुए. लेफ्ट के समर्पित कैडर वोट बैंक आसानी से गठबंधन के उम्मीदवारों को ट्रांसफर हो जाते हैं, लेकिन दूसरी पार्टियों के वोट बैंक से लेफ्ट को उस अनुपात में वोट कभी नहीं मिलते.
बिहार विधानसभा चुनाव का पहला चरण 71 विधानसभा सीटों पर होगा. मुख्य विपक्षी दल राजद को अपना स्ट्राइक रेट बनाए रखने के लिए ये चरण खासा अहम है. पार्टी ने 2015 में 29 में से 27 सीटें जीती थीं. राजद वाम और कांग्रेस के साथ मिलकर अपने पिछले प्रदर्शन को दोहराने की कोशिश कर रही है.
243 सीटों के लिए बिहार विधानसभा का चुनाव तीन चरणों में 28 अक्टूबर, 3 नवंबर और 7 नवंबर को होगा. 10 नवंबर को चुनाव के नतीजे घोषित किए जाएंगे.