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बिहार का जनादेशः तेजस्वी की साख बची, नीतीश की सरकार

बिहार में एनडीए को बस बहुमत मिल गया है और नीतीश कुमार का फिर से सीएम बनने का रास्ता साफ हो गया. 243 सीटों में एनडीए को 125 सीटें मिली. ये जादुई संख्या यानी स्पष्ट बहुमत 122 से सिर्फ 3 अधिक है.

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नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव (फाइल फोटो-PTI)
नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव (फाइल फोटो-PTI)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • 125 सीट पाकर फिर से एनडीए बनाएगी सरकार
  • तेजस्वी की अगुवाई में RJD बनी सबसे बड़ी पार्टी

बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि एनडीए और महागठबंधन में 100 और 99 का ही अंतर रहा. एनडीए को बस बहुमत मिल गया है और नीतीश कुमार का फिर से सीएम बनने का रास्ता साफ हो गया. 243 सीटों में एनडीए को 125 सीटें मिली. ये जादुई संख्या यानी स्पष्ट बहुमत 122 से सिर्फ 3 अधिक है. वहीं महागठबंधन को 110 सीटें मिली.

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चुनावी सभाओं में भीड़ भाड़, चुनावी सर्वे के आंकड़े और चुनावी पंडितों की भविष्यवाणी सभी आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन का पलड़ा ही झुका रहे थे, लेकिन जनता के मन को कोई थाह नहीं पाया. लोग भीड़ के वोट में तब्दील होने की बात कहते हैं, लेकिन बिहार में आरजेडी बढ़े वोट प्रतिशत को सीटों में तब्दील नहीं कर पाई.

महागठबंधन में भी आरजेडी का वोट प्रतिशत सबसे ज्यादा यानी 23.1 फीसद रहा, जबकि बीजेपी 19.46 फीसद और जेडीयू को 15.38 फीसदी वोट मिले. इस मारा-मारी में भी आरजेडी 2015 की साख बरकरार रखते हुए कुल 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी है. हालांकि 2015 की 80 सीटों के मुकाबले उसे इस बार 5 सीटों का नुकसान हुआ है. 

ये भी सच है कि मतगणना की शुरुआती रुझानों में एनडीए की तुलना में लगभग दोगुना सीटों पर बढ़त बनाने वाला महागठबंधन आगे अपनी रफ्तार बनाए नहीं रख सका और फिर फिसला तो लुढ़कता ही गया. बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी ने 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी का रुतबा बनाए रखा है.

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असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन यानी एआईएमआईएम और जनता के बीच मीम पार्टी के नाम से चर्चित पार्टी के उम्मीदवार भी बांग्लादेश की सीमा से लगे मुस्लिम बहुल आबादी वाली सीमांचल की पांच सीटें जीतने में सफल रहे. अब धीरे-धीरे एआईएमआईएम का दायरा बढ़ गया है.

महागठबंधन से बगावत कर एनडीए में आए मुकेश सहनी की पार्टी विकासशील इन्सान पार्टी यानी वीआईपी को 4 सीटें तो मिलीं, लेकिन पार्टी प्रमुख मुकेश सहनी खुद नहीं जीत पाए. वहीं लोक जनशक्ति पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा. राम विलास पासवान के निधन के बाद तो राजनीतिक पंडितों को एलजेपी के पक्ष में सहानुभूति लहर की उम्मीद थी.

हालांकि, एलजेपी को मिली सहानुभूति वोटों में वैसी नहीं बदली कि सीट दिला दे. लोजपा ने अकेले ताल ठोकी. उसे छह फीसदी से भी कम मत मिले और केवल 1 सीट मिली. यानी हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा से भी कम. इतना ही नहीं बिहार के राजनीतिक इतिहास के नए पुराने पहलवान भी चित्त हो गए.

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पप्पू यादव के दल जन अधिकार पार्टी यानी जाप और पुष्पम प्रिया की प्लूरल्स पार्टी का विधानसभा में खाता तक नहीं खुल पाया. इन दोनों दलों के मुखिया भी अपनी सीट तक नहीं जीत पाए. इस चुनाव में सबसे ज्यादा 23.1 प्रतिशत वोट आरजेडी को मिले, वहीं महागठबंधन की दूसरी बड़ी घटक पार्टी कांग्रेस ने 9.48% वोट हासिल किए.

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वामपंथी पार्टियों के हिस्से कुल डाले गए वोटों का 1.48% आया. एनडीए में बीजेपी ने 19.46%, जेडीयू ने 15.38% वोट लिए. यानी इस बार जेडीयू के साथ चुनाव लड़ने वाली बीजेपी का वोट प्रतिशत घटा है, जबकि आरजेडी का बढ़ा है. बीजेपी, जेडीयू, हम और वीआईपी का साझा मत प्रतिशत 40 फीसद से कम है. महागठबंधन को करीब 37 फीसदी मत मिले हैं.
 
इस चुनाव के नतीजों की 2015 के चुनावी नतीजों से तुलना करें तो जेडीयू को 28, राजद को 5, कांग्रेस को 8 और एलजेपी को 1 सीट का नुकसान हुआ है, जबकि बीजेपी को पिछले चुनाव की तुलना में 21 सीटों का फायदा हुआ है.

 

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