बिहार विधानसभा चुनाव में वैसे तो मुख्य मुकाबला नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले एनडीए तथा तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन के बीच रहा, लेकिन इस चुनाव में कई और गठबंधन भी थे. ऐसे ही एक गठबंधन डेमोक्रेटिक सेकुलर फ्रंट का नेतृत्व करने वाले उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली है. इसलिए अब सवाल उठाया जा रहा है कि आखिर राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा को बीएसपी और ओवैसी की पार्टी AIMIM से गठबंधन करके क्या मिला?
बिहार चुनाव में बीजेपी-जेडीयू, आरजेडी-कांग्रेस-वामदलों के महागबंधन के अलावा दो और गठबंधन थे- प्रगतिशील लोकतांत्रिक गठबंधन और ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेकुलर फ्रंट. प्रगतिशील लोकतांत्रिक गठबंधन का नेतृत्व पप्पू यादव कर रहे थे, जबकि डेमोक्रेटिक सेकुलर फ्रंट उपेंद्र कुशवाहा के प्रयासों से बना था. उपेंद्र कुशवाहा के फ्रंट में बहुजन समाज पार्टी और ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) शामिल थी.
उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी के हाथ शून्य
दिलचस्प यह है कि इस चुनाव में एआईएमआईएम को पांच सीटें और बसपा को एक सीट मिल गई, लेकिन खुद उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) के हाथ शून्य ही आया है. यही नहीं, कुशवाहा खुद अपनी सीट नहीं बचा पाए, जबकि गठबंधन की ओर से उन्हें सीएम उम्मीदवार घोषित किया गया था. हालांकि, आरएलएसपी ने दिनारा, केसरिया सहित कई सीटों पर अपनी अच्छी उपस्थिति दर्ज कराई. पिछली बार इनकी पार्टी को दो सीटें मिली थीं.
AIMIM और बीएसपी से ज्यादा वोट मिले
ज्यादा सीटों पर कैंडिडेट खड़े करने की वजह से RLSP को अपने सहयोगी एआईएमआईएम और बीएसपी से ज्यादा मत प्रतिशत मिले हैं. RLSP को इस चुनाव में 1.77 फीसदी, जबकि बीएसपी को 1.49 फीसदी और AIMIM को 1.24 फीसदी वोट मिले हैं. हालांकि, आरएलएसपी ने पिछली बार कुल मतदान का 2.56 फीसदी वोट हासिल किया था. यानी वोटों की प्रतिशतता के लिहाज से भी उपेंद्र कुशवाहा को नुकसान ही उठाना पड़ा. यह हाल तब है जब उन्होंने पिछली बार के मुकाबले इस बार करीब पांच गुना सीटों पर कैंडिडेट उतारे थे.
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चुनाव हारे लेकिन हिम्मत नहीं
राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी हार स्वीकार करते हुए ट्वीट किया, 'दोस्तों, हां, हम चुनाव हार गए. मगर ध्यान रहे, बस चुनाव हारे हैं, हिम्मत नहीं!
दोस्तों, हाँ, हम चुनाव हार गए ।
— Upendra Kushwaha (@UpendraRLSP) November 10, 2020
मगर ध्यान रहे, बस चुनाव हारें हैं, हिम्मत नहीं !
ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेकुलर फ्रंट में कुशवाहा की आरएलएसपी, असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM, मायावती की बीएसपी, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, समाजवादी जनता दल डेमोक्रेटिक और जनतांत्रिक पार्टी (समाजवादी) शामिल थी.
महागठबंधन को पहुंचाया नुकसान
उपेंद्र कुशवाहा को खुद कोई फायदा भले न हुआ हो, लेकिन उनकी पार्टी और उनके गठबंधन ने आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन और एनडीए के गठबंधन को कई सीटों पर नुकसान पहुंचाया है. आरएलएसपी ने दिनारा, केसरिया सहित कई सीटों पर अपनी अच्छी उपस्थिति दर्ज कराई और महागठबंधन को नुकसान पहुंचाया. सिर्फ आरएलएसपी ने 14 सीटों पर महागठबंधन और एनडीए गठबंधन के समीकरण को बिगाड़ा है.
बीएसपी ने यूपी से सटे बिहार की कई सीटों पर अपना दम दिखाया और महागठबंधन का ही नुकसान किया. रामगढ़ सीट पर बीएसपी के अंबिका सिंह और आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह में कड़ा मुकाबला रहा और आखिर में बीएसपी कैंडिडेट दूसरे नंबर पर रहे. इसी तरह गोपालगंज में भी बीएसपी दूसरे नंबर पर रही. इसके अलावा भोजपुर, शाहाबाद की कई सीटों का चुनावी गणित भी बीएसपी ने प्रभावित किया है.
इसी तरह उपेंद्र कुशवाहा के साथ गठबंधन में शामिल ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने मिथिलांचल से लेकर कोसी और सीमांचल के इलाके तक प्रभाव छोड़ा. ओवैसी की पार्टी ने आरजेडी के मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण में सेंधमारी की. एआईएमआईएम के प्रत्याशियों ने बडी संख्या में न केवल मुस्लिम वोट हासिल किए, बल्कि कोचाधामन, अमौर, बायसी, जोकीहाट और बहादुरगंज सीट पर जीत भी दर्ज की है.