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मुश्किल सीटें, कम प्रचार, यूं ही नहीं हुआ बिहार में कांग्रेस का बंटाधार

कांग्रेस बिहार की 70 सीटों पर चुनाव लड़कर महज 19 सीट ही जीत सकी है, जो कि पिछले चुनाव से 8 सीटें कम हैं. इस तरह से कांग्रेस का बिहार चुनाव में महज 27 फीसदी ही स्ट्राइक रेट रहा. कांग्रेस के बिहार में प्रदर्शन का नुकसान देश के दूसरे राज्य में भी पार्टी को उठाना पड़ सकता है. यही नहीं विपक्ष बिहार की हार को लेकर राहुल गांधी पर निशाना साधने लगा है जबकि दूसरी तरफ अगले साल जनवरी तक कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में राहुल गांधी की वापसी की तैयारी चल रही थी.

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राहुल गांधी और तेजस्वी यादव
राहुल गांधी और तेजस्वी यादव
स्टोरी हाइलाइट्स
  • कांग्रेस बिहार में आरजेडी की जूनियर पार्टनर
  • कांग्रेस 70 में से 19 सीटें जीतने में कामयाब रही
  • प्रियंका गांधी बिहार चुनाव प्रचार में नहीं उतर सकीं

बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का फीका प्रदर्शन तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन को महंगा पड़ा है. यही वजह रही कि आरजेडी बिहार में नंबर वन पार्टी बनने के बाद भी बहुमत के आंकड़े को नहीं छू सकी. इसी तरह से कांग्रेस के निराशाजनक प्रदर्शन ने तजेस्वी यादव के मुख्यमंत्री बनने के अरमानों पर भी पानी फेर दिया.  कांग्रेस बिहार की 70 सीटों पर चुनाव लड़कर महज 19 सीटें ही जीत सकी, जो कि पिछले चुनाव से 8 सीटें कम हैं. इस तरह से कांग्रेस का बिहार चुनाव में महज 27 फीसदी ही स्ट्राइक रेट रहा. कांग्रेस के बिहार में प्रदर्शन का नुकसान देश के दूसरे राज्य में भी पार्टी को उठाना पड़ सकता है. यही नहीं विपक्ष बिहार की हार को लेकर राहुल गांधी पर निशाना साधने लगा है जबकि दूसरी तरफ अगले साल जनवरी तक कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में राहुल गांधी की वापसी की तैयारी चल रही थी, जिसे बिहार चुनाव की हार से गहरा धक्का लग सकता है. 

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महागठबंधन में सबसे खराब परफॉर्मेंस कांग्रेस का रहा है जबकि वामपंथी दलों का सबसे बेहतर स्ट्राइक रेट रहा है. कांग्रेस 70 सीटों पर चुनाव लड़ी, लेकिन सिर्फ 19 सीटों ही जीत सकी है. कांग्रेस अगर 10 से 15 सीटों पर और बढ़त बना लेती तो तेजस्वी यादव को सीएम की कुर्सी आसानी से मिल जाती. कांग्रेस ने साल 2015 का विधानसभा चुनाव आरजेडी और जेडीयू के गठबंधन में लड़ा था और 41 सीटों में से उसे 27 सीटों पर जीत मिली थी. कांग्रेस का 1995 के बाद यह सबसे बेहतर प्रदर्शन था, लेकिन इस बार के चुनाव में कांग्रेस अपने पुराने नतीजे को दोहराने में सफल नहीं रह सकी. 

बिहार चुनाव में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन का सीधा राजनीतिक असर केरल, पश्चिम बंगाल और असम विधानसभा चुनावों के पार्टी की तैयारियों पर पड़ सकता है, जहां पार्टी ने वापसी की उम्मीदें लगा रखी हैं. उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में पार्टी की हालत पर पहले ही सवालिया निशान लग चुके हैं. यही नहीं अगस्त में अपनी ही पार्टी के 23 नेताओं के निशाने पर आए राहुल गांधी के लिए बिहार चुनाव की हार ने उन्हें सवाल खड़े करने का मौका दे दिया है. कोरोना महामारी और देश की बिगड़ी आर्थिक व्यवस्था के मुद्दे पर जनता के बीच नाराजगी को भुनाने में कांग्रेस विफल रही है. कांग्रेस के बिहार में निराशाजनक प्रदर्शन के पीछे की वजह यही है. 

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महागठबंधन में सीट बंटवारा
बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 70 सीटों पर चुनाव लड़कर महागठबंधन में दूसरी बड़ी साझेदार थी. काफी मशक्कत के बाद ही आरजेडी 2015 के चुनाव की तुलना में कांग्रेस को 30 सीट अधिक देने पर राजी हुई, लेकिन पार्टी सूत्रों का कहना है यही कांग्रेस की सबसे कमजोर कड़ी साबित हुई. कांग्रेस को मिली 70 सीटों में से 45 सीटें एनडीए के मजबूत गढ़ की सीटें थीं, जिन्हें कांग्रेस पिछले चार चुनावों में नहीं जीत सकी थी. इसके अलावा लोकसभा चुनाव में 70 में से 67 सीटों पर एनडीए को बढ़त मिली थी. यह वो सीटें थीं, जहां आरजेडी और कांग्रेस में रस्साकस्सी चल रही थी. वहीं, वाम दलों को मिली 29 सीटें ऐसी थीं, जिनमें से कई सीटें परंपरागत रूप से कांग्रेस की रही हैं. इस तरह से कांग्रेस की मजबूत माने जाने वाली सीटें लेफ्ट दलों को मिली हैं. 

टिकटों के वितरण पर सवाल 
बिहार चुनाव में कांग्रेस के टिकट बंटवारे को लेकर भी सवाल उठे थे. पहले चरण की सीटों पर उम्मीदवारों के नामों की घोषणा होते ही पार्टी के कई नेता प्रदेश अध्यक्ष से लेकर अभियान समिति के अध्यक्ष बिहार प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल तक पर अनुचित टिकट बंटवारे के आरोप लगे थे. टिकटों के एवज में पैसे के आदान-प्रदान करने और स्थानीय पार्टी कार्यकर्ताओं की अनदेखी करने वाले पैराशूट उम्मीदवारों को वरीयता देने के भी आरोप लगे थे. नतीजा यह हुआ कि कुछ सीटों पर पार्टी हाईकमान को फिर से विचार करना पड़ा और लिहाजा सीट बंटवारे का काम खत्म होते ही दिल्ली की पूरी टीम बिहार में कैम्प कर गई. कांग्रेस महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला के नेतृत्व में तीन सदस्यीय नई टीम ने चुनाव संभाला. 

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प्रचार अभियान में धार नहीं दे सकी कांग्रेस
बिहार विधानसभा चुनाव प्रचार अभियान को कांग्रेस धार नहीं दे सकी दूसरे पार्टी नेताओं की तरह. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कुल 8 रैलियां कीं, जो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना में 4 रैलियां कम थीं. बिहार के अंतिम चरण में कांग्रेस 25 सीटों पर चुनाव लड़ रही थी, जिनमें से 11 सीटें उसके पास थी. इसके बावजूद राहुल गांधी ने इस इलाके में केवल चार रैलियां कीं. महागठबंधन को बिहार में सबसे बड़ा नुकसान तीसरे चरण में ही हुआ है. इसके अलावा पार्टी के स्टार प्रचारकों में शामिल रहीं महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा कांग्रेस उम्मीदवारों की मांग के बावजूद बिहार अभियान पर नहीं गईं. कांग्रेस का  प्रचार अभियान आक्रामक नहीं था और पार्टी के उम्मीदवार तेजस्वी यादव द्वारा रैलियों के लिए अनुरोध करते देखे गए. 

सीमांचल क्षेत्र में ओवैसी फैक्टर
कांग्रेस ने 2019 लोकसभा चुनाव के बाद किशनगंज सीट को  AIMIM के हाथों खो दिया, जो पार्टी का सबसे मजबूत गढ़ माना जाता है. यह वह इलाका है, जहां CAA विरोधी प्रदर्शनों के चरम पर था और मोदी सरकार के इस अत्यंत ध्रुवीकरण वाले कदम के प्रति कांग्रेस का रुख भ्रमित करने वाला था, जिससे अल्पसंख्यकों के बीच ओवैसी ने अपना ग्राफ मजबूत किया.

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सीमांचल क्षेत्र के जिलों जैसे किशनगंज, जहां मुस्लिम आबादी 70 प्रतिशत के करीब है और अररिया, कटिहार, पूर्णिया जिलों में मतदाताओं को लुभाने के लिए बहुत प्रयास नहीं किए जहां 40 प्रतिशत के करीब है.  AIMIM ने BSP और RLSP के साथ गठबंधन में 24 सीटों पर चुनाव लड़ा था. मुस्लिम बहुल सीमांचल क्षेत्र में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने 14 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा और पांच सीटें जीतने में कामयाब रही. इनमें से तीन सीटें वो थी जहां कांग्रेस दो दशक से काबिज थी. 

लालू यादव की 'बी टीम' कांग्रेस
बिहार की सियासत में कांग्रेस पिछले तीन दशक से लालू यादव की पिछलग्गू बनकर है. कांग्रेस नेतृत्व द्वारा इन तीन दशकों में अपने कैडर बेस का समूह बनाने और एक मजबूत नेतृत्व का निर्माण करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया. इसी का नतीजा है कि बिहार में 1995 के विधानसभा चुनावों से कांग्रेस 30 से अधिक सीटें नहीं जीत पाई है. यह 2005 में केवल नौ सीटें और 2010 के विधानसभा चुनावों में सिर्फ चार सीटें जीतने में कामयाब रही थी. इतना ही नहीं कांग्रेस का वोट फीसदी भी दो अंक में नहीं पहुंच पा रहा है. 


 

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