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कोरोना वायरस के संकट काल में देश में पहली बार किसी राज्य में चुनाव हो रहे हैं. बिहार में मतदान के लिए कुछ ही दिन बाकी हैं, ऐसे में प्रचार प्रसार तेज हो गया है. कोरोना संकट के कारण चुनावी पंडितों और राजनीतिक दलों में ये शंका है कि इस बार मतदान प्रतिशत पर असर पड़ सकता है, जो हार-जीत का अंतर भी तय कर सकता है. लेकिन इन शंकाओं के बीच बिहार में हुए एमएलसी चुनाव एक उम्मीद की किरण दिखाते हैं.
बिहार में विधान परिषद की कुल आठ सीटों के लिए गुरुवार को मतदान हुआ. जिसमें तीस जिलों के 976 पोलिंग स्टेशन पर वोट डाले गए, इसमें मतदाताओं की संख्या करीब चार लाख से अधिक थी. कोरोना संकट के बीच ये देश में हुआ इतने बड़े लेवल का पहला चुनाव रहा. लेकिन चौंकाने वाली बात ये रही है कि इस बार पिछले चुनाव से भी अधिक मतदान हुआ है.
विधान परिषद की चार स्नातक और चार शिक्षक सीट पर इस बार करीब 60 फीसदी मतदान हुआ है. जो कि 2014 में ये आंकड़ा सिर्फ 56 फीसदी था यानी कुल मतदान चार फीसदी तक बढ़ गया है. ऐसे में अब ये आंकड़े बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीद जगाते हैं. हालांकि एक ओर विधानसभा परिषद के चुनावों में वोटरों की संख्या करीब चार लाख के आसपास थी तो विधानसभा चुनाव में ये संख्या सात करोड़ के पार पहुंचेगी.
गौरतलब है कि बिहार को देश के उन राज्यों में गिना जाता है, जहां का वोटर राजनीतिक रूप से काफी एक्टिव रहता है और हर राजनीतिक मसले पर अपनी कोई ना कोई राय जरूर रखता है. लेकिन इतना एक्टिव होने के बाद भी बिहार कई बार वोटिंग प्रतिशत के आंकड़ों में पीछे छूट जाता है.
डेटा के मुताबिक, बिहार में आखिरी बार सबसे अधिक मतदान प्रतिशत साल 2000 में पहुंचा था, यानी बीस साल पहले. उस वक्त राज्य के विधानसभा चुनाव में करीब 63 फीसदी वोट डाले गए थे. वहीं अगर 2015 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो कुल 57 फीसदी ही मतदान हो पाया था.
ऐसे में अब जब कोरोना वायरस का संकट है और तीन चरणों में मतदान हो रहा है, तो ऐसे में चुनाव आयोग और राजनीतिक दलों की ओर से काफी तैयारियां की गई हैं. चुनाव आयोग की कोशिश है कि वोट डालने में किसी को दिक्कत ना आए, इसके लिए कोरोना गाइडलाइन्स का पालन कराया जाएगा और बूथ की संख्या भी बढ़ी है. दूसरी ओर राजनीतिक दल कोशिश करना चाहेंगे कि उनका वोटर मतदान देने जरूर बाहर निकले.