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बिहार: तीसरे चरण में महागठबंधन को महंगे पड़े शराबबंदी के खिलाफ बयान?

महागठबंधन की ओर से कई मौकों पर शराबबंदी का विरोध किया गया. जिसकी वजह से उन्हें कई जगहों पर नुकसान उठाना पड़ा. नीतीश कुमार की साइलेंट वोटर माने जाने वाली महिला वोटरों ने एक बार फिर एनडीए का साथ दिया.

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महागठबंधन को भारी पड़ा शराबबंदी का विरोध?
महागठबंधन को भारी पड़ा शराबबंदी का विरोध?
स्टोरी हाइलाइट्स
  • बिहार चुनाव में एनडीए की जीत
  • महागठबंधन को भारी पड़ा शराबबंदी का विरोध

बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन को हार का सामना करना पड़ा है. तेजस्वी यादव की अगुवाई में महागठबंधन सिर्फ 110 सीटों पर सिमट गया और सभी एग्जिट पोल को फेल करते हुए फिर राज्य में एनडीए की सरकार बनने का रास्ता साफ हो गया.

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चुनाव के दौरान महागठबंधन ने कुछ ऐसे मुद्दों को छुआ जो उनपर ही भारी पड़ गए, इनमें सबसे बड़ा मसला था शराबबंदी का. महागठबंधन की ओर से लगातार कहा गया कि अगर उनकी सरकार बनती है तो राज्य में शराब की बिक्री शुरू की जा सकती है, जिसका असर उलटा पड़ता दिख रहा है.

आंकड़ों के अनुसार महागठबंधन ने पहले चरण में बेहतर प्रदर्शन किया, लेकिन दूसरे-तीसरे चरण में एनडीए को बढ़त मिल गई. महागठबंधन को सबसे अधिक नुकसान तीसरे चरण में हुआ.

तीसरे फेज की 78 सीटों में से 53 सीटों पर एनडीए की जीत हुई, बाकी के 25 में से 5 पर औवैसी की पार्टी जीत गई. माना जा रहा है कि तीसरे फेज तक आते-आते तेजस्वी यादव राजद के पक्ष में लोगों को मोड़ नहीं पाए.

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महागठबंधन की ओर से हुई थी बयानबाजी...
बता दें कि यही वो वक्त था जब महागठबंधन के नेताओं की ओर से शराबबंदी पर सवाल खड़े किए जा रहे थे. दरभंगा की सीट पर राजद की ओर से चुनाव लड़ने वाले अमरनाथ गामी ने कहा था कि अगर राज्य में महागठबंधन सत्ता में लौटती है तो फिर शराब बिक्री शुरू करेंगे, गुजरात की तर्ज पर कोटा सिस्टम लाएंगे.

इतना ही नहीं कांग्रेस पार्टी ने तो अपने मेनिफेस्टो में शराबबंदी के निर्णय की समीक्षा तक की बात कह दी थी. कांग्रेस ने अपना घोषणापत्र जारी करते हुए कहा था कि शराबबंदी से राज्य के राजस्व को नुकसान हुआ है और राज्य में ढंग से शराबबंदी लागू नहीं हो सकी है. ऐसे में महागठबंधन की सरकार बनने पर इस फैसले की समीक्षा की जाएगी.


शराबबंदी क्यों बनी मुद्दा, नीतीश को कैसे फायदा
महागठबंधन के अलावा चिराग पासवान की ओर से भी नीतीश सरकार पर आरोप लगाया गया कि राज्य में शराबबंदी सही तरीके से लागू नहीं हुई है. कई जगहों पर महिलाओं की ओर से भी नाराजगी व्यक्त की गई थी. हालांकि, एक बड़ा वर्ग नीतीश कुमार के इस फैसले का समर्थन करता है और बड़ी सफलता मानता है. शराबबंदी जैसा ही फैसला है कि नीतीश कुमार के पक्ष में बड़ी संख्या में महिला वोटर साथ खड़े रहती हैं. लेकिन महागठबंधन इसको भांपने में चूक गया.

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खुद सीएम नीतीश कुमार ने अपनी सभाओं में इस बात का जिक्र किया था कि बिहार में शराबमाफिया उन्हें हराने में जुटे हैं, ताकि वो फिर से लौट आएं और शराब का कारोबार चल सके.

गौरतलब है कि नीतीश कुमार ने 2015 में शराबबंदी का ऐलान किया था, 2016 में इसे लागू किया गया था. खास बात ये है जब ये कानून बना था, तब सत्ता में राजद-कांग्रेस और जदयू थी. पिछले चार साल में शराबबंदी कानून के तहत 4 लाख लोगों की गिरफ्तारी हुई है, जबकि राज्य के राजस्व पर 4000 करोड़ रुपये तक का असर पड़ा.

 

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