एक वक्त था जब बिहार में वाम दलों का कई विधानसभा सीटों पर प्रभाव था. उन सीटों पर अन्य दलों के जीत नामुमकिन सी दिखाई पड़ती थी. लेकिन अब का वक्त है कि भाकपा, माकपा और भाकपा माले जैसे दल अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ते नजर आते हैं. बिहार विधानसभा चुनाव के इतिहास में कई ऐसे मौके आए हैं, जब वामदलों को सीटों के नाम पर बोहनी तक नहीं हुई. आइये पार्टीवाइज उनके सबसे खराब रिकॉर्ड पर नजर डालें.
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
भाकपा बिहार में आजादी के बाद हुए पहले विधानसभा चुनाव से लड़ रही है. लेकिन पहले चुनाव में ही उसे जबरदस्त पराजय का सामना करना पड़ा. 1951 के पहले चुनाव में भाकपा के कुल 24 प्रत्याशी चुनाव लड़े थे. सभी को हार का सामना करना पड़ा था. ये इतिहास 2015 में फिर दोहराया जब भाकपा को एक भी सीट नहीं मिली. इसके पूर्व 2010 में भाकपा का सिर्फ एक प्रत्याशी जीत पाया था.
भाकपा का बिहार में चुनावी इतिहास
वर्ष सीटें
1951 0
1957 7
1962 12
1967 24
1969 25
1972 35
1977 21
1980 23
1985 12
1990 23
1995 26
2000 5
2005 (फर) 3
2005 (अक्टू) 3
2010 1
2015 0
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी
माकपा ने बिहार विधानसभा के लिए 1967 में पहली बार चुनाव लड़ा. पहले चुनाव में उसे 4 सीटें मिलीं. लेकिन 1972, 2010 और 2015 के चुनाव माकपा के लिए सबसे खराब रहे. इन तीनों चुनाव में माकपा का प्रदेश में खाता तक नहीं खुला. 1985 तथा 2005 के दोनों चुनाव भी माकपा के लिए निराशाजनक रहे. इसमें माकपा को एक-एक सीट ही नसीब हुई. सबसे अच्छा प्रदर्शन 2000 के चुनाव में था जब पार्टी के खाते में 14 सीटें आईं.
माकपा का बिहार में चुनावी इतिहास
1967 4
1969 3
1972 0
1977 4
1980 6
1985 1
1990 6
1995 6
2000 14
2005 (फर) 1
2005 (अक्टू) 1
2010 0
2015 0
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी-माले
भाकपा माले 1990 से बिहार विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी उतारती आ रही है. इस पार्टी का अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन 2015 फरवरी के चुनाव में था जब कुल 7 प्रत्याशियों को जीत हासिल हुई. हालांकि पार्टी के पहले चुनाव 1990 में तथा इसके बाद 2010 में सबसे खराब प्रदर्शन रहा जब पार्टी का एक भी प्रत्याशी जीत हासिल नहीं कर सका.
भाकपा-माले का बिहार में चुनावी इतिहास
1990 0
1995 6
2000 6
2005 (फर) 7
2005 (अक्टू) 5
2010 0
2015 3
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