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बीते साल यानी 2019 में बिहार की 5 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए थे. इन पांचों विधानसभा सीटों में से एक सीट ऐसी भी थी जिसने बिहार एनडीए के आलाकमान की टेंशन बढ़ा दी थी. इस सीट का नाम दरौंदा है. सीवान जिले के दरौंदा विधानसभा सीट से जेडीयू की कविता सिंह के इस्तीफा की वजह से उपचुनाव हुआ था.
इस उपचुनाव में बीजेपी और जेडीयू के स्थानीय नेताओं के बीच जमकर जुबानी जंग हुई थी और सीट एनडीए के हाथ से फिसल गई. अब एनडीए के बीच एक बार फिर उपचुनाव जैसा माहौल बनता दिख रहा है. कहने का मतलब ये है कि इस सीट को लेकर एक बार फिर एनडीए नेताओं के बीच घमासान हो रहा है.
फूट का फायदा किसको?
इसका फायदा सबसे ज्यादा मुख्य विपक्षी पार्टी राजद को मिलने की उम्मीद है. वैसे तो राजद की ओर से कई उम्मीदवार दावा ठोक रहे हैं लेकिन सबसे प्रबल दावेदार शैलेंद्र कुमार यादव हैं. ऐसा माना जा रहा है कि दरौंदा की राजनीति के इंजीनियर शैलेंद्र कुमार यादव पर राजद दांव खेल सकती है..
कौन है शैलेंद्र कुमार यादव?
शैलैंद्र कुमार यादव दरौंदा की राजनीति के काफी चर्चित नेता हैं. उनके पिता शिवप्रसन्न यादव बिहार विधान परिषद् में जेडीयू के सदस्य रह चुके हैं. करीब 45 साल के शैलेंद्र कुमार यादव ने सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. वह एयरपोर्ट अथॉरिटी आॅफ इंडिया के अलावा भारतीय रेलवे में भी अहम पद पर रह चुके हैं. उन्होंने भारतीय रेलवे के सीनियर सेक्शन इंजीनियर पद से इस्तीफा देकर दरौंदा की राजनीति में हाथ आजमाया है.
2015 में निर्दलीय मैदान में?
शैलेंद्र यादव साल 2015 में दरौंदा विधानसभा से निर्दलीय मैदान में उतरे थे. हालांकि, इस चुनाव में कुछ खास कमाल नहीं कर सके. राजद के प्रदेश महासचिव पद पर रह चुके शैलेंद्र कुमार यादव ने 2019 के उपचुनाव में भी निर्दलीय भाग्य आजमाया.
उपचुनाव में दिखाई ताकत
दरौंदा उपचुनाव में शैलेंद्र यादव निर्दलीय मैदान में थे. निर्दलीय होने के बावजूद उन्होंने राजद उम्मीदवार उमेश सिंह समेत बीजेपी के बागी व्यास सिंह और जेडीयू के अजय सिंह को चुनौती दी थी. मतगणना के दिन शुरुआती चरणों में शैलेंद्र यादव ने सभी प्रत्याशियों की टेंशन बढ़ा दी थी. स्थानीय पत्रकार कुमार राहुल बताते हैं कि अगर राजद शैलेन्द्र यादव पर दांव खेलती है तो सीट पक्की हो सकती है. कुमार राहुल के मुताबिक पार्टी कार्यकर्ताओं में शैलेंद्र यादव की मजबूत पकड़ है.
पिछले विधानसभा उपचुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी होने के बावजूद भी राजद उम्मीदवार के करीब-करीब वोट मिले थे. कुमार राहुल के मुताबिक शैलेंद्र यादव का हायर एजुकेशन भी स्थानीय लोगों को पसंद आ रहा है. आपको बता दें कि अब तक दरौंदा विधानसभा में जो प्रमुख उम्मीदवार दिख रहे हैं उनमें शैलेंद्र यादव सबसे ज्यादा शिक्षित हैं.
शैलेंद्र यादव के पक्ष में फैक्टर
कुमार राहुल बताते हैं कि दरौंदा विधानसभा के उपचुनाव में हार के बाद राजद एक बार फिर अपने माई यानी मुस्लिम और यादव समीकरण की ओर लौटने का प्रयास कर रही है. आपको बता दें कि बीते साल उपचुनाव में सवर्ण को टिकट दिए जाने से स्थानीय स्तर पर राजद के अंदर नाराजगी थी. इसी का नतीजा था कि सारे वोट छिटक गए और राजद प्रत्याशी उमेश सिंह को हार मिली.
एनडीए के अंदर घमासान
दरौंदा की राजनीति में एनडीए के अंदर जबरदस्त घमासान चल रहा है. दरअसल, इस लड़ाई की पटकथा पिछले साल के उपचुनाव में ही लिख दी गई थी. इस विधानसभा सीट पर एनडीए गठबंधन की ओर से जेडीयू के अजय सिंह मैदान में थे. वहीं राजद ने उमेश सिंह को उम्मीदवार बनाया था. लेकिन इन दोनों को मात देते हुए निर्दलीय प्रत्याशी करणजीत उर्फ व्यास सिंह ने बाजी मार ली. आपको यहां बता दें कि निर्दलीय चुनाव जीतने वाले व्यास सिंह बीजेपी के बागी नेता हैं. उन्होंने उपचुनाव से कुछ दिन पहले ही बीजेपी से दूरी बनाई थी और जीत हासिल कर ली.
पूर्व बीजेपी सांसद का समर्थन
अहम बात यह है कि व्यास सिंह को बीजेपी के पूर्व सांसद ओमप्रकाश यादव का भी समर्थन था. उन्होंने खुलकर निर्दलीय व्यास सिंह के लिए प्रचार किया और जेडीयू के अजय सिंह को हराने की अपील की. इसका नतीजा ये हुआ कि सांसद कविता सिंह के पति अजय सिंह को करारी शिकस्त मिली. इस हार की बौखलाहट अभी तक खत्म नहीं हुई है. यही वजह है कि स्थानी बीजेपी और जेडीयू के नेताओं के बीच एक बार फिर तू-तू, मैं-मैं हो रही है. बीजेपी के पूर्व सांसद ओमप्रकाश यादव का कहना है कि अजय सिंह अपराधी छवि के हैं.