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बिहार बैटलग्राउंडः बीजेपी का मेगा कैम्पेन; स्टार प्रचारक, वर्चुअल और डिजिटल पुश, माइक्रो-मैक्रो लेवल मैनेजमेंट

बिहार में बीजेपी ने अपनी रणनीति दो चुनौतियों को मात देने के इरादे से तैयार की है. एक चुनौती राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों की है. वहीं दूसरी चुनौती रैलियों और लोगों तक बड़े पैमाने पर पहुंचने में आड़े आ रही महामारी की बंदिशों की है.

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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पीएम मोदी (फाइल फोटो-PTI)
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पीएम मोदी (फाइल फोटो-PTI)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • बीजेपी ने अपनी रणनीति में दो महत्वपूर्ण पहलू जोड़े
  • दो चुनौतियों को मात देने के इरादे से बीजेपी है तैयार
  • बीजेपी ने प्रचार के लिए बड़े बड़े को बिहार में उतार दिया

बिना किसी हाइप और हलचल, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने प्रचार के लिए बड़े बड़े को बिहार में उतार दिया है, जहां महामारी के दौर में देश के पहले चुनाव होने जा रहे हैं. बीजेपी 2015 विधानसभा चुनावों के नतीजों को उलटना चाहती है. 2014 लोकसभा चुनाव में प्रचंड जीत के बावजूद बीजेपी को बिहार 2015 विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) के नेतृत्व वाले महागठबंधन से शिकस्त का सामना करना पड़ा था.  

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बीजेपी ने अपनी रणनीति दो चुनौतियों को मात देने के इरादे से तैयार की है. एक चुनौती राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों की है. वहीं दूसरी चुनौती रैलियों और लोगों तक बड़े पैमाने पर पहुंचने में आड़े आ रही महामारी की बंदिशों की है. 

इस बार बीजेपी ने अपनी रणनीति में दो महत्वपूर्ण पहलू जोड़े हैं. एक, पिछले विधानसभा चुनाव से उलट नीतीश कुमार महागठबंधन को छोड़ने के बाद इस बार बीजेपी के साथ मिल कर ताल ठोक रहे हैं. ऐसे में बीजेपी का बिहार के लिए ‘डबल इंजन एनडीए’ थ्योरी पर जोर रहेगा. यानि राज्य में सीएम के चेहरे नीतीश और केंद्र में पीएम मोदी मिलकर बिहार के विकास को रफ्तार दे सकते हैं.  

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दो, पार्टी का फोकस अपने आधार को बड़ा करना है, बेशक इसका चाहे मतलब राज्य में 2024 लोकसभा चुनाव के लिए जेडी (यू) को अगुआ के तौर पर पुश करना हो.  

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सुपर मेगा कैम्पेन 

कई दशकों में ऐसा पहली बार हो रहा है कि राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के लालू प्रसाद विधानसभा चुनाव के पटल पर नहीं है, इससे विपक्ष की धार प्रभावित हुई है. एनडीए इसे अपने लिए एडवांटेज के तौर पर देख रहा है. ये बात अलग है कि दिवंगत राम विलास पासवान के बेटे चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति (एलजेपी) ने एकजुट एनडीए परिवार की छवि को ध्वस्त कर दिया है.  

इस चुनाव के लिए NDA के 'भरोसा' या ट्रस्ट थीम को उसके नेतृत्व के इर्दगिर्द बुना गया है. कैम्पेन में नेता यह दिखाने के लिए भरसक कोशिश करेंगे कि कैसे दिल्ली में नरेंद्र मोदी और बिहार में नीतीश कुमार लोगों की भलाई के लिए बेहतर तालमेल के साथ काम कर सकते हैं. मोदी-नीतीश की जोड़ी के रणनीतिक रूप से एक साथ पेश होने से बीजेपी को मतदाताओं के बीच एकजुटता का संदेश जाने की उम्मीद है. 

बीजेपी के बिहार कैम्पेन के अहम सदस्यों में शामिल पार्टी के आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने इंडिया टुडे से कहा, "पूरे कैम्पेन में भरोसा या ट्रस्ट की मजबूत और सकरात्मक गूंज सुनाई देगी. ये पीएम मोदी और सीएम नीतीश की सरकारों की ओर से किए गए विकास और कल्याण कार्यों पर आधारित होगा. एनडीए मतदाताओं को यह बताने की कोशिश करेगा कि नीतीश के शासन के 10 साल ऐसे समय में गुजरे जब केंद्र में विपरीत रुख वाली कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार थी.” 

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बीजेपी के शीर्ष सूत्रों का कहना है कि हालांकि नीतीश बिहार के सबसे प्रमुख नेता बने हुए हैं, लेकिन इस बार उन्हें गंभीर एंटी इंकम्बेंसी (सत्ता विरोधी रुझान) फैक्टर का सामना करना पड़ रहा है. बीजेपी ऐसी धारणाओं को जोर देकर खारिज करती है कि कमजोर नीतीश पार्टी के लिए अच्छी खबर है. 

पार्टी के एक वरिष्ठ रणनीतिकार ने कहा, "बीजेपी जेडीयू की कम हुई छवि को उभारने के लिए काम करेगी. अगर केंद्र की योजनाओं और लॉकडाउन के दौरान उपायों ने मोदी के लिए एक सकारात्मक प्रभाव पैदा किया है, तो बीजेपी एनडीए के लिए इसका इस्तेमाल करेगी. साथ ही, कैम्पेन को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि बीजेपी और पीएम को जेडीयू की ओर से सामना किए जा रहे सत्ता विरोधी रुझान से अलग रखा जाए.” 

कंट्रास्ट दिखाने के लिए एनडीए कैम्पेन का एक समानांतर ट्रैक दिखाने के लिए तैयार है. इसमें वोटरों को, मुख्यमंत्री के रूप में, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से, लालू प्रसाद के तहत कथित "कुशासन" की याद दिलाई जाएगी.  

कैम्पेन के बड़े चेहरे 

NDA ताबड़तोड़ सार्वजनिक रैलियों के लिए पूरी तरह तैयार है. एनडीए के लिए पीएम मोदी, सीएम नीतीश, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ जैसे सुपरस्टार प्रचारक हैं. 

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पार्टी पहले ही पीएम मोदी की 12 रैलियों का कार्यक्रम घोषित कर चुकी है. इन सभी रैलियों में नीतीश पीएम मोदी और अन्य बीजेपी नेताओं के साथ मौजूद रहेंगे. 

नड्डा 25 रैलियों, शाह 25, राजनाथ 18 और योगी 20 को संबोधित करने वाले हैं. रैली के स्थानों को बेतरतीब ढंग से नहीं चुना गया है. उन सीटों पर ध्यान केंद्रित किया गया है जहां बीजेपी का आकलन कमजोर स्थिति की ओर इशारा करता है. 

कौन सा नेता, किस क्षेत्र में कितनी रैलियों को संबोधित करेगा, यह फैसला वहां की प्रभावी जाति और सामुदायिक फैक्टरों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है. एक या अधिक स्टार प्रचारकों को हर उस निर्वाचन क्षेत्र में रैलियों को संबोधित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है जहां बीजेपी उम्मीदवार खड़ा है.  

पीएम मोदी की ओर से संबोधित की जाने वाली हर रैली के लिए एक सब प्लान है. हर रैली स्थल 25-निर्वाचन क्षेत्रों के कैचमेंट एरिया को कवर करेगा. इसका मतलब है कि 12 रैलियों के माध्यम से, पीएम बिहार की सभी सीटों के मतदाताओं को लक्षित करेंगे.  

रैलियों के लिए वर्चुअल पुश  

चूंकि चुनाव आयोग ने सार्वजनिक बैठकों में भीड़ पर प्रतिबंधों की घोषणा की है, इससे ‘महा रैली’ का आयोजन मुमकिन नहीं है. ऐसे में बीजेपी ने प्रधानमंत्री से संदेश को दूर दूर तक पहुंचाने के लिए प्रौद्योगिकी और पार्टी कैडर के इस्तेमाल का फैसला किया है.  

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पार्टी ने पीएम और एनडीए में अन्य वरिष्ठ नेताओं, जिनमें नीतीश कुमार और पूर्व सीएम जीतन राम मांझी शामिल हैं, की ओर से संबोधित की जाने वाली रैलियों को बड़ा वर्चुअल पुश देने की तैयारी की है.  

पार्टी ने अपने जिला और निर्वाचन क्षेत्र के कार्यकर्ताओं को प्रधानमंत्री या एनडीए के बड़े नेताओं की प्रत्येक रैली के लिए लक्षित विधानसभा सीटों में 100 चुने हुए स्थानों पर बड़ी वीडियो स्क्रीन स्थापित करने का आदेश दिया है. इन स्थानों को वर्चुअल रैली स्थलों में बदल दिया जाएगा और कार्यकर्ता वहां लोगों को लाएंगे. 

इसका मतलब है, अगर प्रत्येक रैली स्थल पर सोशल डिस्टेंसिंग प्रोटोकॉल के अनुसार 1,000 लोगों को अनुमति दी जाती है, तो 100 वर्चुअल स्थानों के माध्यम से एनडीए कुछ लाख श्रोताओं को लक्षित करेगा.  

दूर तक पहुंच के लिए डिजिटल रास्ता  

पीएम मोदी और अन्य एनडीए नेताओं की रैलियों का तीसरा आयाम डिजिटल पुश है. यह परत अंतिम हर मतदाता तक पहुंचने की उम्मीद है. चुनावी ब्लॉक, बूथ और शक्ति केंद्र (5 पोलिंग बूथों का कलस्टर) स्तर पर बीजेपी कार्यकर्ताओं को इंटरनेट सुविधा वाले लैपटॉप, कंप्यूटर और टीवी सेट के जरिए रैलियों को गांव-कस्बों के वोटरों तक पहुंचाने के लिए कहा गया है. 

बिहार में रैलियों के लाइव टेलीकास्ट का लिंक पहले ही बना दिया गया है और पूरे सदस्यों के डेटाबेस में भेज दिया गया है. जो कोई भी पार्टी का पंजीकृत सक्रिय सदस्य है, वह लाइव रैली लिंक का उपयोग करके घर या मुहल्ले में एक डिजिटल रैली स्थल स्थापित कर सकता है.  

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बीजेपी प्रवासियों पर अधिक ध्यान देती है. पीएम मोदी और सीएम नीतीश सरकारों द्वारा लॉकडाउन के दौरान प्रवासियों को होने वाली कठिनाइयों को दूर करने के लिए किए गए उपायों के बारे में बात करने के अलावा, बीजेपी की योजना उन 3 लाख अतिरिक्त प्रवासियों के बीच बड़े पैमाने पर काम करने की है जिन्होंने इस बार मतदाता के रूप में नामांकन किया है. 

बैटलग्राउंड बिहार के लिए अतिरिक्त बल 

इस विशाल प्रयास के लिए बीजेपी ने डेक पर बड़ी संख्या में हाथों को जोड़ा है. डिजिटल और वर्चुअल कैम्पेन के लिए, जिनमें सोशल मीडिया शामिल हैं, बीजेपी लगभग 10,000 आईटी पेशेवरों का आयात कर रही है. यह 2015 के सोशल मीडिया और आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर की कमजोर स्थिति का शार्प कंट्रास्ट है.

 

पार्टी ने 500 कार्यकर्ताओं और नेताओं को भी जोड़ा है जो कैम्पेन और मतदाता प्रबंधन में विभिन्न राज्यों के विशेषज्ञ हैं. उन्हें विशिष्ट निर्वाचन क्षेत्र सौंपा गया है. चूंकि चुनाव आयोग ने उन लोगों की संख्या को प्रतिबंधित किया है जो डोर-टू-डोर अभियान का हिस्सा हो सकते हैं, ये नेता बूथ प्रभारियों को ट्रेंड करेंगे कि कैसे महामारी के समय में कैसे-कैसे प्रचार कर सकते हैं?  

एनडीए के अहम घटको – बीजेपी और जेडीयू ने सभी स्तरों पर समन्वय के लिए नेताओं की विशिष्ट टीम बनाई है. इस समन्वय में शीर्ष नेताओं द्वारा रैलियां, कैम्पेन के नारे, पोस्टर और होर्डिंग्स और यहां तक ​​कि सोशल मीडिया संदेश भी शामिल हैं. 

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माइक्रो और मैक्रो-लेवल रणनीति 

बीजेपी ने नीतीश को सीएम चेहरे के रूप में प्रचारित करने का फैसला किया है. पार्टी को अभी लगता है कि उनके पक्ष में मोमेंटम है. कैम्पेन का मुख्य फोकस 24-25 प्रतिशत मतदाताओं पर हैं जो बीजेपी के आंतरिक सर्वेक्षण के मुताबिक अभी अनिर्णय की स्थिति में हैं कि किसे वोट देना है. बीजेपी प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में एनडीए के उम्मीदवारों के बारे में जीत की धारणा को बेहतर बनाने पर काम कर रही है. आकलन यह है कि यदि अनिर्णय की स्थिति वाले मतदाताओं को लगता है कि एनडीए के उम्मीदवार कोई सीट जीतने के करीब हैं, तो वे नीतीश को छोड़ने की जगह अपने वोट को स्विच कर सकते हैं.  

शीर्ष सूत्रों का कहना है कि पीएम की ओर से एलजेपी और चिराग पासवान को निशाना बनाए जाने की संभावना नहीं है. ये ऐसी आशंकाओं के बावजूद है कि एलजेपी कई सीटों पर जेडीयू के खिलाफ "वोट कटवा" या वोट कटर के तौर पर काम कर सकती है.  

शुक्रवार को, बीजेपी के वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री प्रकाश जावड़ेकर और पार्टी के प्रदेश प्रभारी भूपेंद्र यादव को फील्ड में उतार कर एलजेपी की चुनावी महत्ता को कम करने के लिए उनकी तरफ से ‘वोटकटवा’ शब्द का इस्तेमाल कराया.   

दोनों ने एलजेपी अध्यक्ष चिराग पासवान पर आरोप लगाया कि उन्होंने बीजेपी और उसके नेताओं नरेंद्र मोदी और अमित शाह की सराहना करते हुए मतदाताओं को भ्रमित करने की कोशिश की, जबकि जेडीयू प्रमुख और सीएम नीतीश कुमार पर हमला किया.

बीजेपी ने उन निर्वाचन क्षेत्रों पर विशेष ध्यान केंद्रित करने की योजना बनाई है जहां एलजेपी ने उन शक्तिशाली व्यक्तिगत नेताओं को मैदान में उतारा है जो पहले पार्टी के सदस्य नहीं थे. 

हालांकि, शाह और नड्डा के नेतृत्व में अन्य बीजेपी नेता यह संदेश देते रहेंगे कि एलजेपी अब पार्टी की सहयोगी नहीं है और मतदाताओं को चिराग बयानों से भ्रमित नहीं होना चाहिए, जिनमें वो खुद को पीएम मोदी और बीजेपी के करीब बताते हैं.  

प्रमुख प्रतिद्वंद्वी आरजेडी को निशाना बनाने के लिए, बीजेपी ने एक व्यापक योजना तैयार की है, जिसमें कुछ रणनीतिक वीडियो शामिल हैं जिन्हें सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर प्रसारित किया जाएगा और मोबाइल वीडियो वैन द्वारा चलाया जाएगा. इस तरह के पहले वीडियो का शीर्षक 'लालू की डिक्शनरी' है. यह 1990 से सीएम के रूप में लालू प्रसाद की राजनीतिक यात्रा को ट्रेस करता है. वीडियो में बीजेपी के उन दावो को दिखाया गया है जो लालू के 15 साल के शासन में बिहार की हुई स्थिति को लेकर है. इसमें हिंदी वर्णमाला के प्रत्येक अक्षर को नकारात्मक पहलू से जोड़ा गया है. जैसे क से क्राइम, ख से खतरा, ग से गोली और घ के लिए घोटाला का इस्तेमाल किया गया है.

 

दूसरा वीडियो महागठबंधन के सदस्यों- आरजेडी और कांग्रेस को निशाना बनाता है जो 2015 में एक सफल इंद्रधनुष गठबंधन बनाने में कामयाब रहे थे. बीजेपी का वीडियो 29 सीटों को सीपीआई (एमएल) को सौंपने के लिए भी महागठबंधन को कटघरे में खड़ा करता है. पार्टी ने सीपीआई (एमएल) को ही लालू के शासन के दौरान 38 जिलों में से 32 पर वामपंथी चरमपंथियों का नियंत्रण होने के लिए जिम्मेदार ठहराया. 


 

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