बिहार में विधानसभा चुनाव के ऐलान के साथ ही राज्यपाल कोटे से मनोनीत होने वाली 12 विधानसभा परिषद सदस्य (एमएलएसी) सीटों पर ग्रहण लग गया है. चुनावी आचार संहिता लागू हो जाने के बाद अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने मनचाहे लोगों को फिलहाल राज्य के उच्च सदन में नहीं भेज पाएंगे. ऐसे में मनोनीत होने वाले एमएलसी के संभावित उम्मीदवारों की उम्मीदों पर पानी फिर गया है. अब बिहार में नई सरकार के गठन के होने के बाद ही 12 सीटों पर फैसला हो सकेगा.
बता दें कि बिहार राज्यपाल द्वारा मनोनीत होने वाली 12 विधान परिषद सीट काफी पहले से खाली हैं. जेडीयू के राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह और एलजेपी के पशुपति कुमार पारस के लोकसभा सदस्य चुन लिए जाने के कारण दो सीटें 2019 के आम चुनाव के बाद से ही रिक्त हो गई थी. इसके अलावा 10 विधान परिषद की सीटें मई के महीने में रिक्त हुई हैं.
मनोनयन कोटे से रिक्त होने वाले सदस्यों में जावेद इकबाल अंसारी, ललन कुमार सर्राफ, रामचंद्र भारती, राम लखन, राम रमण, राम बचन राय, राणा गंगेश्वर सिंह, रणवीर नंदन, संजय कुमार सिंह, शिव प्रसन्न यादव और विजय कुमार मिश्र शामिल थे. इन विधान परिषद सीटों पर राज्यपाल उन्हीं सदस्यों के नाम को मंजूरी देते हैं, जिनके नामों को राज्य सरकार कैबिनेट से प्रस्ताव पास कर भेजती है.
पांच महीने में नाम का प्रस्ताव
नीतीश सरकार के ऊपर था कि अगर वो चाहते तो पिछले पांच महीनों में नामों के प्रस्ताव को भेज सकते थे, लेकिन अब बिहार में विधानसभा चुनाव के ऐलान के साथ ही आचार सहिंता लागू हो जाने के चलते अब कोई फैसला नहीं ले सकते हैं. ऐसे में अब प्रदेश में नई सरकार के गठन के बाद ही इस पर कोई फैसला लिया जा सकता है. ऐसे में एनडीए और महागठबंधन में जिसकी भी सरकार बनेगी, वो अपने मनचाहे लोगों के नाम का प्रस्ताव पास कर राज्यपाल को भेज सकती है.
बता दें कि राज्यपाल कोटे की एमएलसी सीटों पर खेल, कला, विज्ञान, शिक्षा, साहित्य आदि क्षेत्रों से आने वाले विद्वानों को मनोनीत किया जाता है. राज्यपाल द्वारा मनोनीत होने वाले एमएलसी सदस्यों के नामों की सिफारिश राज्य सरकार ही करती है. इसके बावजूद यह राज्यपाल के ऊपर निर्भर करता है कि सरकार के अनुरोध को मानें या नहीं.
हालांकि, राज्यपालों का यह आग्रह रहता है कि जिन नामों की सिफारिश राज्य सरकार कर रही है, वे गैर राजनीतिक हों. इसके बाद भी सत्ता पर काबिज सियासी पार्टियां अपने-अपने नेताओं को ही राज्यपाल कोटे के तहत एमएलसी के लिए नामित करने की सिफारिश करती हैं. ऐसे में सरकार द्वारा भेजे गए किसी नाम पर राज्यपाल को कोई आपत्ति होती है तो वो उसे वापस कर सकते हैं. इसके बाद सरकार फिर किसी दूसरे नाम की सिफारिश कर सकती है.